आदित्यपुर: सरायकेला जिले के आदित्यपुर नगर निगम के प्रशासक अपने अजीबोगरीब कारनामों के लिए याद किए जाएंगे. जब से उन्होंने निगम का कार्यभाल संभाला है शायद ही आम जनता के उन्होंने सार्वजिक तौर पर मुलाकात की हो. यहां तक कि निवर्तमान पार्षदों को भी उनसे मिलने के लिए प्रोटोकॉल का पालन करना पड़ता है. हां दलाल और पसंदिदा ठेकेदार उनसे कभी भी मिल सकते हैं. उनके लिए हमेशा ग्रीन कार्पेट बिछा रहता है. बिल्डरों पर उनकी खास मेहरबानी होती है. चाहे कितना भी बड़ा अपराध उनके द्वारा क्यों न किया गया हो सब मैनेज हो जाता है. आम आदमी को नक्शा पास कराने से लेकर किसी भी काम के लिए जहां एड़ी- चोटी का पसीना बहाना पड़ता है, वहीं बिलडरों और डेवलपरों का काम चुटकियों में हल कर दिया जाता है, चाहे नियमों को ताक पर पी क्यों न रखनी पड़े. अब तो निगम क्षेत्र में यह चर्जा आम हो चला है कि साहब पर सरकार मेहरबान है. आज एक ऐसे मामले की जानकारी हम दे रहे है जो हमारे दावों पर मुहर लगाने के लिए काफी है. वैसे ऐसे दर्जनों मामले हमारे पास हैं, जिसे हम नियमित रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं. आज जिस प्रकरण की हम बात करने जा रहे हैं वह एक बड़े डेवलपर से जुड़ा है.


दरअसल नगर निगम के वार्ड 17 में समय कंस्ट्रक्शन का सहारा सनराईज प्रोजेक्ट चल रहा है. इसके तहत एक टाउनशिप डेवलप किया जा रहा है. जिसपर विवाद है, बावजूद नगर निगम द्वारा नियमों को ताक पर रखकर न केवल नक्शा पास कर दिया गया बल्कि विवाद की जानकारी होने के बाद भी डेवलपर को एक्टेंशन दे दिया गया. इसमें रेरा और आरओसी के नियमों की भी अनदेखी की गई है. जिसका खामियाजा इसमें बुकिंग कराने वाले ग्राहकों एवं जनता को उठाना पड़ सकता है.
आइए आपको अब सिलसिलेवार ढंग से बताते हैं क्या है पूरा मामला. दरअसल जिस जमीन पर उक्त टाउनशिप के निर्माण की अनुमति दी गई है उस जमीन पर दो पक्षों में विवाद है. एक पक्ष मशहूर बिल्डर सह समाजसेवी रवींद्र कुमार सिन्हा (आरके सिन्हा) और दूसरा पक्ष समय कंस्ट्रक्शन है. प्रथम पक्ष यानि आरके सिन्हा का दावा है कि खाता संख्या 44, 101 एवं 79 के प्लाट संख्या 868, 1570, 1571 एवं 1572 में नव निर्माण के लिए उक्त डेवलपर को विवाद के बाद भी 12 फरवरी 2025 तक के लिए नगर निगम द्वारा एनओसी प्रदान की गई. समय अवधि पूर्ण होने के बाद पुनः उन्हें एक साल के लिए नियमों को ताक पर रखकर एक्सटेंशन दे दिया गया. उनका दावा है कि उक्त खाता संख्या और प्लॉट संख्या सर्वे सेटेलमेंट 1976- 77 का है, जबकि 1958- 59 के सर्वे के अनुसार प्लॉट संख्या 1379, 1384, 1385, 1386, 1387, 1437, 1438 एवं 1448, खाता संख्या 59, 90 एवं 48 अलग है. जिसमें उनकी प्रॉपर्टी भी समाहित है. उनका दावा है कि खाता संख्या 90 के प्लॉट संख्या 1385 में 30 डिसमिल और प्लॉट संख्या 1386 में 25 डिसमिल यानी कुल 55 डिसमिल जमीन पंजी- 2 में उनके नाम पर दर्ज है जो अंचल अमीन द्वरा प्रमाणित भी किया जा चुका है. इसका जिक्र नगर निगम के पत्रांक संख्या 1508 दिनांक 13/ 06/ 2024 में है. यह मामला उपायुक्त के कोर्ट में लंबित है, बावजूद इसके निगम द्वारा डेवलपर को एनओसी प्रदान कर दिया गया जो नियम के विरूद्ध है.
अब सवाल ये उठता है कि निगम के संज्ञान में मामला होने के बाद भी डेवलपर को कैसे एक्सटेंशन दे दिया गया ? जबकि रेरा के नियम के मुताबिक तय समयावधि में निर्माण कार्य पूर्ण नहीं होने की स्थिति में डेवलपर को किसी भी विभाग से बगैर रेरा की अनुमति के एक्सटेंशन नहीं दिया जा सकता. यहां तक कि बैंक को भी रेरा से अनुमति लेने के बाद ही लेनदेन करना है. इसका मतलब साफ है कि नगर निगम में नियम नहीं पैरवी और पैसा बोलता है. प्रशासक खुद को उपायुक्त से बड़ा मानते है. क्योंकि उनपर सरकार की मेहरबानी है.
वैसे इस मामले सें एक और कानून का उल्लंघन किया गया है. मालूम हो कि उक्त डेवलपर कंपनी के पार्टनरों के बीच भी विवाद चल रहा है. मामला एनसीएलटी और झारखंड हाईकोर्ट में लंबित है. आरओसी के वेबसाईट पर आज भी सभी पार्टनर के नाम का जिक्र है. मगर कुछ पार्टनरों ने नियमों को ताक पर रखकर कुछ पार्टनर को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. और सारा वित्तीय संचालन अपने हाथों में ले लिया है. इसमें करोंड़ों का घोटाला हुआ है जिसमें बैंक भी फंस सकता है. ऐसे में उक्त सोसायटी में प्रॉपर्टी बुक कराने से पहले ग्राहकों को सारे तकनीक पहलुओं पर जांच कर लेनी चाहिए कहीं आपकी जमा पूंजी बिल्डरों के विवाद में डूब न जाएं. इस विवाद और फर्जीवाड़े की अगली कड़ी अगले अंक में… क्रमशः
