ADITYAPUR सरायकेला जिले के आदित्यपुर थाने में मंगलवार को एक तरफ जहां होली और शब- ए- बारात को लेकर शांति समिति (Peace Commitee) की बैठक की तैयारियां चल रही थी वहीं दूसरी ओर थाना क्षेत्र स्थित सिद्धेश नर्सिंग होम रणभूमि में तब्दील रहा.
जहां डॉक्टर और वकील के बीच छिड़ा जंग करीब चार घंटे तक चला, हाई वोल्टेज चले इस नाटकीय घटनाक्रम को सुलह कराने एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ नकुल प्रसाद चौधरी, समाजसेवी रमण चौधरी, भाजपा नेता शैलेंद्र सिंह, अनुराग श्रीवास्तव सहित आधा दर्जन लोग प्रयासरत रहे. कभी एक पक्ष भारी तो कभी दूसरा पक्ष तो कभी मध्यस्थता कराने पहुंचे पक्ष उलझते रहे. इस बीच जिसको लेकर विवाद उत्पन्न हुआ वह जिंदगी और मौत के बीच जूझती रही. अंततः सभी की मध्यस्थता से मरीज को पुनः भर्ती लिया गया, फिर उसका इलाज शुरू हुआ.
पहले आप इस बोलती तस्वीरों के जरिए जानिए घटनाक्रम video
क्या है मामला
राजकुमारी देवी
दरअसल विवाद का कारण अधिवक्ता मनोज गुप्ता की 42 वर्षीय पत्नी राजकुमारी देवी है. जिनका बच्चेदानी (Uterus) का ऑपरेशन 28 फरवरी को अस्पताल में हुआ था. 6 मार्च को आधा स्टीच काटकर राजकुमारी देवी को डिस्चार्ज कर दिया गया. राजकुमारी देवी का घाव बढ़ता गया इस बीच दो बार 10 मार्च और 12 मार्च को राजकुमारी देवी को चेकअप के लिए बुलाया गया मगर घाव सूखने के बजाय उसमें से पस निकलने लगा.
ऑपरेशन की तस्वीर
मंगलवार 15 मार्च को पुनः राजकुमारी देवी के अधिवक्ता पति मनोज गुप्ता उन्हें लेकर नर्सिंग होम पहुंचे. बतौर मनोज गुप्ता डॉक्टर मनोरमा सिद्धेश ने उन्हें शुगर कम नहीं होने की वजह से घाव बढ़ने की बात कही उन्होंने पांच दिनों के लिए पुनः एडमिट करने की बात कही, जिसमें डॉक्टर ने केवल दवाई के पैसे जमा करने की बात कहीं, मनोज राजी हो गए और अपनी पत्नी को दुबारा भर्ती करा कोर्ट चले गए. इस बीच मनोज गुप्ता की बेटी वहां अपनी मां को देखने पहुंची. जहां रिसेप्शनिस्ट ने उसे मरीज से मिलने से यह कहते हुए मना कर दिया, कि तुम लोगों की वजह से ही केस खराब हुआ है. तुम लोगों ने मरीज का ठीक से ख्याल नहीं रखा.
जिसके बाद दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं होने लगी. पास ही विजिट के लिए आया एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव बीच में बोलने लगा, जिस पर एमपी गुप्ता की बेटी ने उसे बीच में ना बोलने की नसीहत दी. तब तक डॉक्टर मेघा सिद्धेश ने मरीज को वार्ड से बाहर निकाल दिया, और वापस घर ले जाने को कहने लगी.
फिर एमपी गुप्ता, उनके पिता- पुत्र सभी अस्पताल पहुंचे, और इसे अस्पताल की मनमानी बता पुलिस को इसकी जानकारी दी. इस बीच हंगामा बढ़ता चला गया. पुलिस, सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ता एवं डॉ. अस्पताल में जुटने लगे.
करीब 3:30 घंटे तक चले हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद पुनः मरीज को वापस भर्ती लिया गया. बतौर अधिवक्ता मनोज गुप्ता ऑपरेशन से पूर्व कहा गया था, कि मरीज को खून की कमी है, इसलिए 2 दिन खून चढ़ाया गया, फिर कहा गया, कि शुगर लेवल काफी नीचे है, बावजूद इसके ऑपरेट कर दिया गया.
क्या कहा डॉक्टर नकुल चौधरी ने
मामले की जानकारी मिलने के बाद मौके पर पहुंचे एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ नकुल प्रसाद चौधरी ने दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने का प्रयास करते हुए कहा, कि निश्चित तौर पर घर पर समय पर दवाइयां देने में गड़बड़ी हुई है, जिसकी वजह से केस खराब हुआ है. मगर पेशेंट के लिए खतरे की कोई बात नहीं है. सही इलाज होने पर रिकवर किया जा सकता है, लेकिन चूंकि विवाद गहरा गया है, इसलिए मरीज को किसी दूसरे अस्पताल में रेफर कराना ही बेहतर रहेगा, ताकि विश्वसनीयता बनी रहे.
क्या कहा अधिवक्ता ने
विवाद और हंगामे के बीच अधिवक्ता मनोज गुप्ता इस बात पर अड़े रहे, कि जिसने केस खराब किया है, उसकी नैतिक जिम्मेदारी है, कि वह इलाज करें. हमारे बच्चों ने बदसलूकी अगर की है, तो उसकी वजह उनकी मां के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और इलाज में लापरवाही है, जो बच्चे अपनी आंखों से देख रहे थे. मां मां होती है. डॉ मेघा सिद्धेश का व्यवहार भी काफी अमानवीय रहा. आखिर मरीज जो जिंदगी और मौत से जूझ रही थी, उसे वार्ड से बाहर क्यों निकाला गया, जबकि उसे स्लाइन चढ़ रहा था, उसे जानवरों की तरह बाहर निकाल कर छोड़ दिया गया.
क्या कहा सुलह कराने पहुंचे जनप्रतिनिधियों और नेताओं ने
इस बीच हंगामे की सूचना पर पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता रमण चौधरी ने काफी देर तक दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास किया, हालांकि इस दौरान अधिवक्ता के पुत्र के साथ उनकी हल्की नोकझोंक भी हुई, मगर उन्होंने अस्पताल प्रबंधन से वार्ता कर मरीज का पुनः इलाज शुरू कराने का अनुरोध किया, जिसे प्रबंधन ने स्वीकार कर लिया. वहीं हंगामे की सूचना के बाद पहुंचे भाजपा नेता शैलेंद्र सिंह एवं अनुराग श्रीवास्तव ने भी प्रबंधन से वार्ता कर इलाज जारी रखने की अपील की.
दुबारा ईलाज से नहीं हूं संतुष्ट केस करूंगा थाना प्रभारी नहीं कर रहे सपोर्ट कहा वकील हैं तो कुछ भी कीजियेगा
जैसा कि मध्यस्था कराने पहुंचे एमजीएम अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ नकुल प्रसाद चौधरी ने कहा था “कि विवाद होने के बाद अस्पताल में इलाज कराना उचित नहीं, मरीज को अन्यत्र रेफर करने से बेहतर होगा” मगर मध्यस्थता के बाद पुनः शुरू हुए इलाज के बाद अधिवक्ता को इलाज को लेकर संतुष्टि नहीं हुई, और डॉ एनपी चौधरी का बात सत्य हुआ. अधिवक्ता मनोज गुप्ता अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने आदित्यपुर थाना पहुंचे और थाना से सहयोग मांगा. बतौर अधिवक्ता मनोज गुप्ता, थाना प्रभारी ने उनके साथ सही व्यवहार नहीं किया. उन्होंने बताया कि बगैर पूरे मामले को जाने थाना प्रभारी ने उन्हें कहा कि “वकील है तो कुछ भी कीजिए” इसको लेकर उन्हें काफी ठेस पहुंची है, और इसकी शिकायत उन्होंने बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व महासचिव से की है. जिस पर बार एसोसिएशन ने संज्ञान लेने की बात कही है. फिलहाल वे मरीज को रेफर कराने की तैयारी में जुटे हैं. उसके बाद कानूनी प्रक्रिया के तहत लड़ाई लड़ने की बात कही है. हालांकि हंगामे की सूचना पर पहुंची पुलिस ने मध्यस्थता में अहम भूमिका निभाई थी और दोनों पक्षों को शांत कराया था. इस पूरे मामले को लेकर हमने अस्पताल प्रबंधन से भी जानने का प्रयास किया, मगर मीडिया कर्मियों को देख डॉ मनोरमा सिद्धेश एवं डॉ मेघा सिद्धेश ने केबिन से बाहर निकलना भी जरूरी नहीं समझा.