आदित्यपुर: नगर निगम के वार्ड 17 में पानी को लेकर हर साल गर्मियों में खूब हाय- तौबा मचता है. इस बार भी कमोबेश यही स्थिति है. वार्ड की जनता अलग- अलग गुटों में बंटकर पानी को लेकर रणनीति बना रहे हैं. कोई जुस्को से पानी की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान चला रहा है तो कोई नगर निगम से टैंकर की संख्या और पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए नगर निगम पर दबाव बनाने की रणनीति बना रहा है.
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इधर गुरुवार को पूर्व पार्षद नीतू शर्मा ने वार्ड के लोगों से नगर निगम और उपायुक्त से मिलकर समस्या से अवगत कराने को लेकर ज्ञापन सौंपने की अपील की थी, मगर चंद मुट्ठी भर लोग पूर्व पार्षद के साथ नगर निगम पहुंचे. हालांकि ज्ञापन पर दर्जन भर लोगों के हस्ताक्षर जरूर थे. इतना ही नहीं पूर्व पार्षद के साथ उपायुक्त कार्यालय भी बामुश्किल चार से पांच लोग ही पहुंचे. ऐसे में साफ अंदाजा लगा सकते हैं कि लोगों को पानी से ज्यादा राजनीति जरूरी है. आपको बता दें कि उक्त वार्ड में करीब 4 हजार मतदाता हैं. लागभग 35 हजार की आबादी है. हर कोई पानी की समस्या से जूझ रहा है, मगर जब आंदोलन की बात सामने आई तो मुट्ठीभर लोग ही सामने आए, जबकि उक्त वार्ड को आदित्यपुर का सबसे रईस वार्ड कहा जाता है. इस वार्ड में एक से बढ़कर एक आवासीय सेक्टर और व्यवसायिक प्रतिष्ठान हैं. यूं कह सकते हैं कि इस वार्ड में हर कोई चाहता है कि भगत सिंह पैदा हो मगर पड़ोसी के घर मे. यही वजह है कि उक्त वार्ड की समस्या पर न तो स्थानीय सांसद गंभीरता दिखाती है न विधायक, जो अब सूबे के मुख्यमंत्री बन चुके हैं.
नगर निगम की विफलता का खामियाजा भुगत रही जनता
विदित हो कि आदित्यपुर नगर निगम के लिए लगभग 400 करोड़ की लागत से तत्कालीन रघुवर सरकार ने जलापूर्ति योजना की आधारशिला रखी थी. 5 साल बीतने के बाद भी योजना को धरातल पर नहीं उतारा जा सका, जबकि दो दो बार योजना को एक्सटेंशन दिया गया है. आलम यह है कि योजना के लिए चिन्हित एक भी जल मीनार और ट्रीटमेंट प्लांट अभी अस्तित्व में नहीं आया है. जबकि पानी कनेक्शन घर-घर पहुंचाकर कर नगर निगम भारी भरकम टैक्स वसूल चुकी है. वैसे वार्ड 17 में अभी पानी का कनेक्शन भी नहीं पहुंचा है. लोगों में इसको लेकर भी नाराजगी है.
क्या कहती हैं पूर्व पार्षद
इस संबंध में वार्ड 17 की पूर्व पार्षद नीतू शर्मा ने बताया कि हर साल जनवरी-फरवरी माह से ही वार्ड में पानी की घोर किल्लत शुरू हो जाती है. नगर निगम द्वारा जलापूर्ति कराई जाती है मगर घनी आबादी होने के कारण व्यवस्था ऊंट के मुंह में जीरा के समान होता है. कुछ लोग सुविधा अनुसार निजी खर्च कर पानी की व्यवस्था करते हैं, मगर ज्यादातर लोग नगर निगम की व्यवस्था पर ही आश्रित रहते हैं. उन्होंने बताया कि नगर आयुक्त और उपायुक्त को ज्ञापन सौंप कर समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया है.
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