कल जहां बसती थी खुशियां, आज है मातम वहां… भले यह गाना किसी जमाने में महान गीतकार मोहम्मद रफी साहब ने गाए थे, मगर तब का गाया हुआ गाना आज भी प्रासंगिक है.
झारखंड के सरायकेला स्थित आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया को एसिया का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल सेक्टर होने का दावा किया जाता है. दावा यह भी किया जाता है कि यहां छोटी- बड़ी ढाई हजार कंपनियां हैं, जिसमें लाखों लोग रोजगार पाते हैं.
भले सरकार लाख दावे कर ले, मगर आज भी कामगारों और मजदूरों का शोषण जारी है. हम बात कर रहे हैं इंडस्ट्रियल एरिया के सबसे पुराने और बड़े औद्योगिक समूह जेएमटी ऑटो प्राइवेट लिमिटेड की. एक समय हुआ करता था, कि जेएमटी ग्रुप में काम करने के लिए लोग लालायित रहते थे. बड़े- बड़े नेता, मंत्री, विधायक और ब्यूरोक्रेट्स यहां अपने लोगों को नौकरी पर रखने की पैरवी करते थे. मगर आज कंपनी के कामगार और मजदूर भुखमरी के कगार पर हैं. जी हां बीते 5 महीने से यहां के लगभग 800 मजदूरों को ना तो वेतन मिला है, ना पीएफ ईएसआईसी का लाभ ही इन्हें मिल रहा है. हताश निराश मजदूर बेबस होकर कंपनी परिसर में धरने पर बैठ गए हैं.
मजदूरों का कहना है, कि पिछले 15 महीने से उन्हें पीएफ और ईएसआईसी भी इन्हें नहीं मिल रहा है. आलम यह है, कि मजदूर दाने- दाने को मोहताज हो चुके हैं. बाहर से यहां आकर किराए पर रहकर नौकरी करने वाले कामगारों को मकान मालिकों ने घरों से निकाल दिया है. वही प्रबंधन खुदको दिवालिया घोषित कर चुकी है.
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मिली जानकारी के अनुसार प्रबंधन और मजदूर का विवाद एनसीएलटी में चला गया है. जहां से फैसला आने के बाद ही मजदूरों को उनका वेतन और भत्ता मिल सकेगा. अब सवाल यह उठता है कि आखिर जब 5 महीने से मजदूरों को वेतन नहीं मिल रहा है, तो मजदूर यहां काम क्यों कर रहे हैं जवाब में मजदूरों ने बताया, कि सीईओ एसएन शुक्ला और एचआर हेड अभय कुमार सिन्हा द्वारा हर बार कामगारों को गुमराह किया जाता है, और प्रबंधन के साथ वार्ता करने नहीं दिया जाता है. कामगारों ने बताया, कि प्रबंधन की मनमानी के खिलाफ डीएलसी में शिकायत की गई थी, जहां से डीएलसी द्वारा प्रबंधन तो तलब किया गया, मगर प्रबंधन ने यूनियन को नहीं मानने का हवाला देते हुए डीएलसी कार्यालय में स्पष्टीकरण देना जरूरी नहीं समझा. इस बीच प्रबंधन ने यूनियन के साथ वार्ता कर बीच का रास्ता निकालते हुए 31 जनवरी तक वेतन देने का भरोसा दिलाया. मगर 31 जनवरी को भी प्रबंधन ने वेतन नहीं दिया. फिर से वार्ता में तय हुआ कि 8 फरवरी को 8000 रुपए सभी के अकाउंट में दे दिए जाएंगे, ताकि काम बाधित ना हो. साथ ही भरोसा दिलाया गया, कि 15 फरवरी तक बकाया वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा. मगर प्रबंधन अपने वायदे से मुकर गई. नतीजा यह हुआ, कि कामगार आज पुनः वेतन की मांग को लेकर प्रबंधन के साथ वार्ता करने पहुंचे. मगर प्रबंधन ने एनसीएलटी में जाने की बात कहते हुए पल्ला झाड़ लिया, और वार्ता करने से इंकार कर दिया. जिसके बाद मजदूर पुनः धरने पर बैठ गए.
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अजय कुमार सिंह (मजदूर)
धरने पर बैठे मजदूरों ने बताया कि इस उम्मीद के सहारे यहां काम कर रहे हैं, कि आज कंपनी की स्थिति ठीक हो जाएगी, कल कंपनी की स्थिति ठीक हो जाएगी, मगर ठीक होने के बजाय उल्टा कंपनी की स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती चली जा रही है. सरकार और प्रशासन यहां तक कि उद्योग विभाग भी इस मामले में चुप्पी साधे रखी है. कामगारों ने बताया, कि उन्हें आज प्रबंधन की ओर से भरोसा दिलाया गया था, कि वेतन दिया जाएगा मगर आज भी उन्हें वेतन देना तो दूर प्रबंधन की ओर से कोई पूछने तक नहीं आया जिस से हताश मजदूर धरने पर बैठ गए हैं. वहीं मजदूरों ने ऐलान कर दिया है, कि जबतक बकाया वेतन और भत्तों का भुगतान नहीं होगा, वे वापस काम पर नहीं लौटेंगे. बताया जा रहा है, कि 409 मजदूर ऐसे हैं जो नियमित है, वही करीब 400 मजदूर ठेका कर्मी है.
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विश्वनाथ राय (मजदूर)
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