आदित्यपुर: नगर निगम के कामजोड प्रशासक की वजह से सरकार बनते ही सरकार की किरकिरी होने लगी है. वो तो भला हो कि उपनगर आयुक्त पारुल सिंह ने मौके की नजकता को भांपते हुए समय रहते गरीब फुटपाथी दुकानदारों के दर्द को समझते हुए अतिक्रमण हटाओ अभियान टाल दिया. जिसके बाद फुटपाथी दुकानदारों ने राहत की सांस ली है. मगर इस अधूरे और बगैर पूरी तैयारी के अभियान को लेकर नगर निगम प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.
आपको बता दें कि पिछले हफ्ते नगर निगम की ओर से नगर निगम क्षेत्र में हुए सड़कों के अतिक्रमण को लेकर अभियान की शुरुआत की गई थी. इससे पूर्व निगम प्रशासन की ओर से क्षेत्र में माइकिंग कर अवैध अतिक्रमण को हटाने की जानकारी दी गयी थी. तय समयसीमा के तहत बीते गुरुवार को उपनगर आयुक्त पारुल सिंह दंडाधिकारी के साथ पूरे लाव लश्कर को लेकर आ धमकी और अभियान की शुरुआत थाना रोड से किया. दर्जन भर फुटपाथी दुकानदारों को उजाड़ने के बाद झामुमो नेता भोगलु सोरेन के अनुरोध पर दो दिन की मोहलत देकर अभियान को यह कहकर स्थगित कर दिया गया कि सभी फुटपाथी दुकानदारों को दिंदली बाजार के अंदर व्यवस्थित किया जा रहा है सभी वहां शिफ्ट कर जाएं. उसके बाद काफिला सतपथी होटल से लेकर आकाशवाणी चौक पहुंचा इस दौरान जो भी फुटपाथी दुकानदार बुल्डोजर की जद में आये उन्हें जमींदोज कर दिया गया. फिर उप नगर आयुक्त के निर्देश पर पूरे नगर निगम के सफाई कर्मियों को दिंदली बाजार में चिन्हित स्थल के साफ- सफाई में लगा दिया गया. यह सिलसिला अगले दिन भी जारी रहा. इस दौरान एकबार भी प्रशासक नजर नहीं आये. इसबीच छुटभैये नेताओं को आगे कर सफेदपोश नेताओं ने ऐसी राजनीति चली की नगर निगम की पूरी योजना पर ग्रहण लग गया और पूरे अभियान को स्थगित कर मंगलवार को उपनगर आयुक्त बैरंग वापस लौट गई. जिसके बाद वैसे फुटपाथी दुकानदार जिनके दुकानों को उजाड़ा गया वह यही सवाल कर रहे हैं कि हमने सरकार का क्या बिगाड़ा था जो हमारे पेट पर सरकारी बाबुओं ने लात मारी, क्या हमारे बच्चे नहीं थे, क्या हमने लोन नहीं लिए थे, क्या हमारे ऊपर कर्ज नहीं थे, क्या हमारे पेट में भूख नहीं थे… दरअसल छुटभैये नेताओं ने कुछ ऐसे ही लोगों को उकसाकर आगे कर इस अभियान पर ग्रहण लगाया. इसमें वैसे नेताओं ने भी रोटी सेंकी जिसका इस अभियान से दूर- दूर तक कोई लेनादेना नहीं था.
आखिर बगैर मुकम्मल तैयारी के नगर निगम ने क्यों चलाया अभियान ?
यह एक बड़ा और गंभीर सवाल है. दरअसल लड़ाई दो विभागों के बीच की है. आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र के वार्ड- 20 में सबसे ज्यादा अतिक्रमण है. इसी वार्ड में आदित्यपुर थाना, आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र, बिजली विभाग का कार्यालय, वन विभाग का कार्यकाल, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का कार्यालय, जियाडा जैसे महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय हैं. शायद ही कोई सरकारी कार्यालय होगा जहां अतिक्रमण न हुआ हो. सड़क के दोनों ओर फुटपाथी दुकानदारों को कृषि उत्पादन बाजार समिती के ठेकेदार द्वारा बसाकर उससे महसूल वसूले जा रहे हैं. जबकि बाजार समिती को 5.3 एकड़ जमीन दिंदली बाजार के भीतर अलॉट किया गया है, जिसे अतिक्रमकरियों ने अवैध कब्जा कर बड़े- बड़े दुकान बना लिए हैं. रखरखाव और साफ- सफाई नगर निगम कराती है. मगर महसूल बाजार समिती का ठेकेदार वसूलता है. इससे आम लोगों यहां तक कि थाना आने- जाने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. सैकड़ों बार इसकी शिकायत विभिन्न माध्यमों से नगर निगम और जिला प्रशासन से की गई. मगर कभी किसी ने कार्रवाई करने की जेहमत नहीं उठाई. इसबार उपनगर आयुक्त, ट्रैफिक प्रभारी और थाना प्रभारी के तिकड़ी ने यह बीड़ा उठाया और थाना रोड से इस अभियान की शुरुआत की. पहले ही दिन इसका भेद खुल गया कि ठेकेदार द्वारा रोड पर दैनिक सब्जी विक्रेताओं को बैठाकर उनसे महसूल की वसूली की जाती है जिसके बाद बाजार समिति के सचिव ने भी इसकी पुष्टि कर दी कि चिन्हित स्थल से ही महसूल वसूलने का आदेश है. सड़क का अतिक्रमण करने जैसा कोई आदेश नहीं दिया गया है इसकी जांच कराई जाएगी. उसके बाद से ही राजनीति शुरू हो गयी. नेताओं और मंत्रियों के फोन का हवाला देकर अभियान को टालने की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी. सोमवार को अभियान के लिए जिला प्रशासन ने फोर्स मुहैया नहीं कराया, उसके बाद माइकिंग के जरिये मंगलवार को अभियान चलाने की मुनादी पिटवाई गयी. मंगलवार आए इससे पहले ही शोषल मीडिया में गरीब फुटपाथी दुकानदारों का दर्द छलकने लगा. किसी को कर्ज का डर सताने लगा, तो किसी के लोन के लाले पड़ने लगे, किसी के बच्चों के स्कूल का फीस भरने का टोटा पड़ गया तो कोई सड़क पर आ गया, मानो नगर निगम ने उन्हें सड़क रजिस्ट्री कर दी है. इस दर्द को नगर आयुक्त सहन न कर सके और उन्होंने अभियान रोकने का मौखिक आदेश दे दिया. इधर मंगलवार सुबह निगम कार्यालय खुलते ही सैकड़ों फुटपाथी दुकानदार निगम कार्यालय पहुंच गए और हंगामा करने लगे. प्रशासक का मन इतना द्रवित हुआ कि उन्होंने अभियान रोकने के लिए हामी भर दी. मगर कोई लिखित आदेश न होने के कारण उपनगर आयुक्त थाना पहुंच गई. यहां वे करीब एक घंटे तक फोर्स, जेसीबी और दंडाधिकारी का इंतजार करती रही, मगर न जेसीबी आया, न पर्याप्त फोर्स मिला. इसबीच फुटपाथी दुकानदार थाने के बाहर जमे रहे और नगर निगम मुर्दाबाद, पुलिस- प्रशासन हाय- हाय के नारे लगाते रहे. बीच- बीच में चंपाई सोरेन जिंदाबाद के भी नारे लगते रहे. फुटपाथी दुकानदारों की मांग जायज थी कि बगैर वेंडर ज़ोन के उन्हें क्यों उजाड़ा जा रहा है. जिन्हें उजाड़ा गया उनका क्या कसूर था. अंततः उपनगर आयुक्त ने थाना रोड पर दुबारा अतिक्रमण न करने की चेतावनी देकर अभियान को रोकने की घोषणा कर दिया जिसके बाद भीड़ उपनगर आयुक्त जिंदाबाद, चंपाई सोरेन जिंदाबाद के नारे लगाते हुए चलती बनी. कुल मिलाकर इस अभियान ने न केवल सरकार की किरकिरी करा डाली बल्कि वैसे पत्रकारों की जान खतरे में डाल दिया जिन्होंने इस पूरे अभियान का कवरेज किया.
इसकी एक बानगी उस वक्त सामने आई जब समाचार संकलन के दौरान इंडिया न्यूज वायरल के संपादक पर एक महिला नेत्री पार्वती किस्कू यह कहते हुए टूट पड़ी कि उनकी खबर को तोड़मरोड़ कर प्रकाशित किया गया, वहीं एक महिला सब्जी विक्रेता सुनीता ने तो संपादक पर पैसे मांगने का आरोप मढ़कर हो हंगामा कर भीड़ को उकसाने का प्रयास करने लगी. गनीमत रही कि भीड़ में मौजूद फुटपाथी दुकानदारों और उनके नेतृत्वकर्ताओं ने उनकी चाल समझ लिया और पार्वती किस्कू से कोई वास्ता नहीं होने की बात कहकर उन्हें वहां से खदेड़ दिया. मगर बड़ा सवाल ये है कि यदि ऐसे हालात पैदा किये गए तो पत्रकारिता कैसे जीवित रहेगी और कैसे सच्चाई सामने आएगी. जब- जब बाजार में हो रहे अवैध वसूली से संबंधित खबरें लिखी जाती है उस रिपोर्टर को छुटभैये नेताओं द्वारा डराया- धमकाया जाता है. झूठे मुकदमे में फंसाने का भय दिखाया जाता है. उनके हाउस में पैसे उगाही की झूठी शिकायत कराई जाती है, बड़े मीडिया संस्थानों में चीजें विस्तार से सामने आते नहीं हैं, न ही उनके रिपोर्टर इसे लाने का प्रयास करते हैं. बाजार के ठेकेदार के खिलाफ आखिर कार्रवाई क्यों नहीं कि जाती है जो खुलेआम सड़कों का अतिक्रमण करवाकर अवैध उगाही कर रहा है ? बाजार समिति की भूमिका क्या है ? क्यों बाजार समिति अपने जमीन से बेदखल हो गयी ? क्यों आजतक नगर निगम वेंडर जोन विकसित करने में नाकाम रही ? वैसे इस पूरे प्रकरण में बाजार का ठेकेदार बदनाम जरूर हुआ मगर कई वैसे खिलाड़ी भी बेनकाब हुए हैं जो एक नहीं कई- कई दुकान बनाकर उसे किराए में लगाकर अवैध उगाही कर रहे हैं और वैसे खिलाड़ी ही पार्वती किस्कू जैसी महिला नेत्री को और सुनीता जैसी सब्जी विक्रेता को आगे कर भीड़ को उकसाकर हंगामा करवाने का प्रयास कर रहे थे. खैर अब मामला शांत जरूर हो गया है मगर पत्रकारिता को एक बड़ा सबक भी दे गया है.
देखिये इस video को जिसमें पार्वती किस्कू और सुनीता भीड़ को उकसा रही है
देखिये वह video जिसमें दुकानदार यह कहते देखे जा सकते हैं कि उनका पार्वती किस्कू और सुनीता से कोई लेनादेना नहीं उन्हें तो रोजगार चाहिए