आदित्यपुर: बीते गुरुवार को आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया के फेज चार और फेज छः स्थित क्रॉस लिमिटेड कंपनी में हृदय गति रुकने से मृत ठेका मजदूर स्वपन कुमार बेरा और सुरक्षा कर्मी प्रेम सागर महतो के मौत मामले को लेकर जारी गतिरोध शनिवार देर रात त्रिस्तरीय वार्ता के बाद समाप्त हो गया. वार्ता में मृतक के परिजनों को आठ- आठ लाख एकमुश्त मुआवजा के लिए प्रबंधन राजी हुआ जिसके बाद परिजनों ने आंदोलन समाप्त कर दिया. उसके बाद दोनों के परिजन मृतकों के शवों को लेकर चले गए.
क्या वाकई इंसाफ मिल गया परिजनों को ?
भले झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) के क्रांतिकारियों ने मृतकों के आश्रितों को मुआवजा दिलाने में कड़ा संघर्ष किया. उनके आंदोलन की वजह से क्रॉस प्रबंधन मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने पर मजबूर हुआ. जबकि मृतक न तो कंपनी के स्थायी मजदूर थे न यहां के स्थानीय थे. स्वपन बेरा पश्चिम बंगाल का राहनेवला था और प्रेम सागर महतो रामगढ़ के गोला का रहनेवाला था. प्रेम सागर महतो एक निजी सुरक्षा एजेंसी का गार्ड था जबकि स्वपन कुमार बेरा ठेकाकर्मी था. ऐसे में यदि जेबीकेएसएस दबाव नहीं बनाता तो प्रबंधन परिजनों को एक दो लाख लेकर सलटा देता. जेबीकेएसएस के दबाव की वजह से प्रबंधन वार्ता के लिए मजबूर हुआ. मगर यहां कंपनी की कूटनीति जीत हुई इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. आपको बता दें कि करीब सात घंटे तक क्रॉस कंपनी यूनिट- 1 के मुख्य गेट पर जेबीकेएसएस के क्रांतिकारी दोनों मृतकों के शवों के साथ डटे रहे. इस दौरान कई बार वार्ता विफल होने के बाद हालात बेकाबू होते रहे. यहां पुलिस- प्रशासन ने काफी संयम और धैर्य का परिचय दिया. अंततः रात लगभग 10:30 के आसपास मृतकों के आश्रितों को आठ- आठ लाख रुपये एक मुफ्त देने पर सहमति बनी. जिस पर क्रांतिकारियों ने अपनी मुहर लगा दी. उसके बाद आंदोलन समाप्त हो गया. परिजन मृतकों के शवों को लेकर अपने- अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गए.
मंथन करे जेबीकेएसएस के क्रांतिकारी
बता दें कि शनिवार की शाम करीब चार बजे जेबीकेएसएस नेता तरुण महतो, सृजन हाईबुरु, राजा कालिंदी, प्रदीप कुमार महतो, बिंदेश्वर महतो, तपन महतो आदि के नेतृत्व में मृतकों के परिजन शव के साथ कंपनी गेट पर 25 लाख मुआवजा, नौकरी और बच्चे की इंटर तक पढ़ाई की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए. प्रबंधन इसपर राजी नहीं हुआ. प्रबंधन की ओर से जो प्रस्ताव दिए गए यदि उसे जेबीकेएसएस के क्रांतिकारी मान लेते तो शायद मृतकों के परिजनों को वास्तविक इंसाफ मिल जाता. प्रबंधन की ओर से तीन दौर के वार्ता के दौरान अंत में जो निर्णय निकलकर सामने आया उसके तहत प्रबंधन मृतकों के आश्रित को पांच- पांच लाख रुपए, ढाई वर्ष तक बगैर काम के आश्रित को वेतन, उसके बाद नौकरी एवं मृतकों के बच्चों के इंटर तक की पढ़ाई का खर्च उठाने पर राजी हुआ, जिसे क्रांतिकारियों ने समझने की भूल कर दी. क्रांतिकारी 15- 15 लाख, नौकरी और बच्चों के इंटर तक की पढ़ाई की मांग पर अड़े रहे. जब प्रशासन ने सख्ती दिखाई तब बंद कमरे में हुई त्रिपक्षीय वार्ता के बाद एक मुफ्त 8- 8 लाख रुपए देने पर सहमति बनी और आंदोलन समाप्त हो गया. इसे प्रबंधन की कूटनीतिक जीत कहें या जेबीकेएसएस क्रांतिकारियों के अनुभव की कमी. पैसे आज हैं कल नहीं. कल जब पैसे समाप्त हो जाएंगे तब मृतकों के आश्रितों का कौन सहारा बनेगा, इस पर मंथन की जरूरत है. हालांकि बाद में जेबीकेएसएस के क्रांतिकारियों ने इस फैसले पर परिजनों की सहमति बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया. सवाल ये उठता है कि परिजनों को समझाने की जिम्मेदारी किसकी थी ? विदित हो कि झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के क्रांतिकारी मजदूरों से जुड़े मुद्दों पर अपनी आवाज मुखर जरूर करते हैं, मगर अनुभव की कमी के कारण उनका आंदोलन कहीं ना कहीं रास्ते से भटक जाता है. इसके लिए उन्हें संयम से काम लेने की जरूरत है.