आदित्यपुर: सरायकेला- खरसावां जिला के सबसे मालदार थानों में से एक आदित्यपुर थाना है. यहां की थानेदारी अधिकारियों के लिए मक्का की तरह है. मगर मलाई के साथ कांटो भरा ताज भी है. सावधानी हटी दुर्घटना घटी.
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हाल के दिनों में जिस तरह से आदित्यपुर में गैंगवार की घटनाएं हुई है, उससे साफ हो गया है, कि आदित्यपुर में स्क्रैप, बालू और अवैध जमीन के कारोबार में वर्चस्व को लेकर द्वंद जारी है. कभी एक पक्ष भारी तो कभी दूसरा पक्ष. मगर सरगना अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर चल रहा है. सरगना कौन है यह पुलिस बताना नहीं चाहती, मगर अपराध और अपराध की दुनिया की खबर रखने वाले अच्छी तरह से जानते हैं, कि इस गैंगवार के असली खिलाड़ी कौन- कौन हैं. जहां तक पुलिस के लिए पहुंचना फिलहाल नामुमकिन साबित हो रहा है.
गैंगस्टर सागर लोहार बना पहेली
आदित्यपुर थाना क्षेत्र में ज्यादातर हुए आपराधिक घटनाओं में सागर लोहार गिरोह और मनोज सरकार गिरोह के गुर्गे आपस में टकरा रहे हैं. करण स्क्रैप, बालू और अवैध जमीन के खेल पर वर्चस्व कायम करना रहा है. बीते साल छठ के दूसरे अर्ध्य के दिन विक्की नंदी पर बमबारी से शुरू हुआ गैंगवार का सिलसिला अबतक जारी है. विक्की नंदी तो घटना में बाल- बाल बच गया, लेकिन बीते 24 मार्च को टीचर्स ट्रेनिंग मोड़ के समीप अपराध कर्मी देवव्रत गोस्वामी उर्फ देबू की हत्या, उसके बाद 3 मई को सतबोहनी में कार्तिक गोप उर्फ बाबू की हत्या के बाद पुलिस की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर रही है. हालांकि देबू हत्याकांड का पुलिस ने खुलासा जरूर कर दिया है, मगर किंगपिन अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर है. इधर मंगलवार को अपराधकर्मी कार्तिक गोप हत्याकांड के 24 घंटे बीत जाने के बाद भी नामजद अपराधियों की गिरफ्तारी अब तक नहीं हो सकी है. परिजनों ने सुभाष प्रमाणिक, बजरंग गोराई, मुकेश दास उर्फ गुलटू को नामजद अभियुक्त बताया है, जबकि 8- 10 को अज्ञात बताया है. सुभाष प्रमाणिक दीपक मुंडा का सहयोगी रह चुका है. फिलहाल संतोष थापा गिरोह के सदस्य के रूप में काम करता है.
उधर 14 अप्रैल को स्वर्ण रेखा परियोजना के आवासीय परिसर में महिला कर्मी उषा रानी महतो की उसके कथित पति राजेश ने हत्या कर डाली थी. घटना के बाद से आजतक फरार है. उसकी तलाश में पुलिस जमशेदपुर के चाकुलिया सहित कई जगहों की खाक छान चुकी है. आरोपी का अब तक सुराग हाथ नहीं लगा है.
आईपीएस अधिकारी एसडीपीओ हरविंदर सिंह जो दोनों घटनाओं की खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं. थाना प्रभारी आलोक कुमार दुबे गैलंट्री अवॉर्ड पा चुके हैं, मगर 2- 2 हत्याकांड मामले का उद्भेदन करने में अब तक नाकाम साबित हुए हैं. आखिर पुलिस का खुफिया तंत्र कहां है ? जांबाज़ टाइगर मोबाइल के जवानों की धार कहां है ! आधा दर्जन एएसआई रैंक के अधिकारियों की भूमिका क्या है ? माना जा रहा है कि हाल के दिनों में कई दक्ष एवं योग्य अधिकारियों के तबादले से नए अधिकारियों का टीम वर्क ठीक-ठाक नहीं है. ऐसे में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है.
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