ADITYAPUR सरायकेला के आदित्यपुर दिंदली बस्ती में सदियों से चली आ रही परंपरा का आज 204 सालों बाद भी यहां के लोग भक्ति भाव के साथ निर्वहन कर रहे हैं. बता दें कि हर साल जून महीने के पहले सोमवार और मंगलवार को यहां पौराणिक शिव मंदिर में हर्षोल्लास के साथ चड़क पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तों की गहरी आस्था होती है.
बताया जाता है कि 1818 ईसवी से निरंतर यहां चड़क पूजा का आयोजन किया जा रहा है. इसके पीछे मानव जीवन से जुड़े कई पौराणिक और धार्मिक मान्यताएं हैं. आयोजित पूजा के संबंध में बताया जाता है कि 1818 ईसवी में एक बार भीषण गर्मी में बिना बारिश के लोग त्राहिमाम कर रहे थे. इस बीच गांव में भयंकर महामारी फैल गई और लोग उसकी चपेट में आकर अकाल काल के गाल में समा रहे थे. इस बीच ग्रामीणों ने अपने आराध्य और पौराणिक शिव मंदिर में कई मन्नते मांगी और चड़क पूजा का आयोजन किया. तब से लेकर आजतक लोग प्रतिवर्ष भक्ति भाव से चड़क पूजा का आयोजन करते आ रहे हैं. अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए यहां भक्त शरीर को कड़े धूप में शरीर कील से छेद कर तपस्या करते हैं और नाचते झूमते भगवान भोलेनाथ की आराधना में लीन हो जाते हैं. वहीं परंपराओं का निर्वहन करते हुए बस्तीवासी बकरे की बलि देकर ग्राम देवता को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि जिनकी मन्नते पूरी होती है, वे बकरे की बलि देते हैं. प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस पूजा का आयोजन दिंदली शिव मंदिर कमेटी द्वारा किया जाता है. जो कि इस वर्ष भी किया जा रहा है. इसमें मुख्य रूप से अध्यक्ष लाल्टू महतो, संरक्षक छवि महतो, सचिव रितेन महतो व स्थानीय वार्ड पार्षद राजरानी महतो का विशेष रूप से भूमिका निभा रहे हैं.
आज होगा पुरुलिया शैली का छऊ
कल से शुरू हुए इस धार्मिक अनुष्ठान में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. सोमवार को जहां सरायकेला शैली में छऊ की प्रस्तुति दी गई वहीं मंगलवार यानी आज पुरुलिया शैली में छऊ कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे.
पार्षद ने की श्रद्धालुओं की सेवा
इधर पार्षद राजरानी महतो ने प्रचंड धूप को देखते हुए श्रद्धालुओं के लिए शीतल पेय और शर्बत वितरण कराया. उन्होंने बताया कि चड़क पूजा मूल रूप से ग्राम देवता की पूजा है. विगत दो सालों से कोरोना महामारी के कारण इस पूजा का बृहद आयोजन नहीं किया गया था, इस साल राहत मिलने पर आयोजन किया जा रहा है.