सरायकेला: सिंचाई कालोनी हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित साप्ताहिक श्रीमद् भागवदगीता ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन भागवद गीता के प्रसंग वृंदावन से पधारे अनुपानंद जी महाराज ने भक्तो को भगवान कृष्ण के जन्म, कथा और प्रायोजन को बताया. उन्होंने कहा कि जब द्वापर युग में धरती पर कंस के पाप, अत्याचार और आतंक का साम्राज्य कायम कर दिया. तब भक्तों ने अपनी रक्षा के लिए अपने तारणहार को पुकारा. भक्तों की करुण पुकार सुनकर भगवान श्री हरि ने कृष्ण रूप में अवतार लिया, और पापी कंस का संहार कर धरती को पाप से मुक्ति दिलाई. अनुपानन्द जी महाराज ने भक्तों को बताया कि “मानुष तन पावा” अर्थात कई जन्मों के पुण्य फल से ही मानव जीवन पाना संभव हो सका है. इस मृत्यभुवन पर चौरासी लाख जीवन है, किंतु मानव जीवन ही एक ऐसा जीवन है जिसके लिए देवता भी तरसते हैं. यह एक ऐसा जीवन है जिसमे स्वयं भगवान ने अवतार लेकर धरती पर लीलाएं की हैं. मानव जीवन पुण्य कर्म करने के लिए है, लेकिन कलियुग में लोग इस जीवन के मूल्य को भुलाकर पाप में लीन होते जा रहे हैं. पाप कर्म से मानव जीवन को मोक्ष कभी नही प्राप्त हो सकता. मोक्ष की प्राप्ति के लिए सभी को भागवद् गीता में कहे गए सभी वचनों का अनुसरण करना होगा तब जाकर मोक्ष की प्राप्ति संभव है. मोक्ष नहीं मिलने से यह जीवन इसी धरती पर चौरासी लाख योनियों में घूमता रहेगा.
महाराज जी ने श्रीमद् भागवदगीता ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन सभी भक्त जन को भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा सुनाई जिसके पश्चात भव्य झांकी निकाली गई. जिसमे भगवान के जन्म के पश्चात बासुदेव जी के द्वारा भगवान के बाल रूप को टोकरी में भर कर यमुना नदी पार कर गोकुल पहुंचाया गया.
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