सरायकेला: झारखंड में भाषा विवाद को लेकर नायक के तर्ज पर उभरे युवा क्रांतिकारी जयराम महतो पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत सोमवार को सरायकेला पहुंचे. जहां झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के बैनर तले जयराम महतो का गर्मजोशी से स्वागत किया गया.
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जयराम महतो का स्वागत करते झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के सदस्य
उसके बाद जयराम महतो खरसावां शहीद स्थल पहुंचे. जहां उन्होंने खरसावां के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए झारखंड की एकता, अखंडता और पहचान के लिए संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया.
खरसावां शहीद बेदी पर श्रद्धांजलि देते जयराम महतो
वहीं शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद जयराम महतो बड़ा कांकड़ा पहुंचे. जहां एक विशाल जनसभा को उन्होंने संबोधित किया. अपने संबोधन में जयराम महतो ने झारखंडियों से अपने पहचान और अस्मिता की लड़ाई के लिए एक और आंदोलन की तैयारी करने का उलगुलान किया. उन्होंने कहा, कि जब देश में कोई सभ्यता नहीं थी उस वक्त राड़ सभ्यता थी, और मूलवासी राड़ सभ्यता के वाहक हैं. हर हाल में राज्य सरकार को मूल वासियों के साथ न्याय करना होगा. झारखंडी कौन है, हमारी पहचान क्या है. इसे बगैर परिभाषित किए राज्य में नियोजन नीति किसी कीमत पर स्वीकार नहीं होगी. हजारों की संख्या में कोल्हान के कोने-कोने से जुटे मूलवासियों ने जयराम महतो के साथ हुंकार भरी.
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सभा को संबोधित करते जयराम महतो
हालांकि भाषा विवाद के बाद उपजे हालात को देखते हुए राज्य सरकार ने फैसला में संशोधन करते हुए भोजपुरी, मगही और अंगिका को धनबाद और बोकारो जिले क्षेत्रीय भाषा की सूची से अलग कर दिया है. मगर इस आंदोलन का उलगुलान करने वाले युवा क्रांतिकारी नेता जयराम महतो ने खतियान आधारित नियोजन नीति बनाने तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है.
सभास्थल पर जुटी भीड़
वहीं मीडिया को संबोधित करते हुए जयराम महतो ने कहा भाषा एक बहाना है. सरकार को उनके वायदे के अनुसार घेरने के लिए राज्य के मूलवासियों ने कमर कस ली है. उन्होंने कहा, कि सरकार के मेनिफेस्टो के आधार पर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है. मतलब खतियान आधारित नियोजन नीति जो उनके मेनिफेस्टो में था, उसे लागू किए बगैर यहां किसी तरह की नियोजन नीति स्वीकार्य नहीं होगी. वहीं उन्होंने झारखंड के युवाओं से हर घर से एक क्रांतिकारी, एक बिरसा बनकर निकलने का आह्वान किया.
ताकि अपने हक और हुकूक की लड़ाई को आगे जारी रख सके, नहीं तो सवा तीन करोड़ जनता को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे. उन्होंने कहा भोजपुरी, मगही और अंगिका भाषा का भी सम्मान करते हैं, मगर हमारी भी अपनी पहचान होनी चाहिए. इस पर राजनीति करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा. उन्होंने कहा, कि हम अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर सड़क पर आंदोलन करते हैं मगर भोजपुरी मगही और अंगिका भाषी बगैर आंदोलन किए भाषाई दर्जा प्राप्त कर रहे हैं, जिसे अब स्वीकार नहीं किया जाएगा.
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जयराम महतो
वहीं उन्होंने कहा, कि आज अगर यहां के आदिवासी और मूलवासी नहीं चेते तो राज्य पूंजीपतियों के हाथों बिक जाएगा. यहां के आदिवासी और मूलवासी पहचान के लिए मोहताज हो जाएंगे. यहां के आदिवासियों मूलवासियों को अधिकार दिलाने तक उनका आंदोलन जारी रहेगा. वही राजनीति में आने के सवाल पर उन्होंने दो टूक लहजे में कहा, कि नेता बनने के लिए उन्होंने इस आंदोलन को खड़ा नहीं किया है. नेता वैसे लोग बने जो गांव, गरीब और किसान की बात करे.
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जयराम महतो
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