Desk Report बीते मंगलवार को
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बाजार नियामक सेबी को कारोबारी सुगमता बढ़ाने के लिए के अगली पीढ़ी के सुधार करने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कदमों से बाजार में किसी भी तरह की उठापटक से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा है. आखिर क्यों सीतारमण ने सेबी के निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए कहा, कि अभी नियमों के पालन बोझ कम करने, बाजार मध्यस्थता लागत के अलावा निवेशकों के हितों को अधिक सुरक्षित करने की दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है. दरअसल इस बात को तब बल मिला जब देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी पर सेबी ने 74,894.6 करोड़ रुपए के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर बकाया होने का दावा किया वो भी तब जब मार्च में एलआईसी 75 हजार करोड़ रुपए की आईपीओ लाने की तैयारी में है और सेबी के पास सूचीबद्ध करने के लिए आवेदन किया है. दरअसल आईपीओ के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, एलआईसी पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के 74,894.6 करोड़ रुपये के कुल 63 मामले चल रहे हैं. इनमें बीमा कंपनी पर प्रत्यक्ष कर के 37 मामलों में 72,762.3 करोड़ और 26 अप्रत्यक्ष कर मामलों में 2,132.3 करोड़ रुपये बकाया है, जिनकी वसूली होनी है. आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) लाने की तैयारियों में जुटी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी पर आयकर विभाग का करीब 75,000 करोड़ रुपये बकाया है. खास बात है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) टैक्स की देनदारियां चुकाने के लिए अपने फंड का इस्तेमाल नहीं करना चाहती है. आईपीओ के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, एलआईसी पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के 74,894.6 करोड़ रुपये के कुल 63 मामले चल रहे हैं. इनमें बीमा कंपनी पर प्रत्यक्ष कर के 37 मामलों में 72,762.3 करोड़ और 26 अप्रत्यक्ष कर मामलों में 2,132.3 करोड़ रुपये बकाया है, जिनकी वसूली होनी है. इस तरह, कंपनी पर आयकर विभाग का कुल 74,894.4 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया निकल रहा है. यह देश की किसी भी एक कंपनी पर सबसे ज्यादा टैक्स बकाया है. वैसे दस्तावेज में एलआईसी ने दो टूक कहा है कि वह बकाया टैक्स का भुगतान अपने फंड से नहीं करेगी क्योंकि कई मामलों में कोर्ट की ओर से आए फैसले सही नहीं हैं. वह इनके खिलाफ आगे भी अपील करेगी.
वहीं आयकर विभाग का कहना है कि इनमें से अधिकतर मामलों का विवाद इसलिए चल रहा है क्योंकि एलआईसी ने अपनी कुल कमाई का खुलासा नहीं किया है. इनमें से कई मामले वर्षों पुराने हैं. विभाग का कहना है कि बीमा कंपनी ने 2005 के बाद से कई आकलन वर्ष में अपनी सही आय का खुलासा नहीं किया है. बताया गया कि वित्तीय वर्ष 2008- 09 में कंपनी ने 5,9552009-105,808 करोड़, 2010-11 में 6,881 करोड़,
2011-12 में 6,269 करोड़ और
2012- 13 में 5,133 करोड़ टैक्स की जानकारी नहीं दी है.
यहां याद दिला दें कि साल 2008- 09 में सहारा समूह ने भी नियामक के पास सूचीबद्ध करने के लिए सहारा प्राइम सिटी के लिए आवेदन किया था, जिसे सेबी ने खारिज करते हुए उसकी दोनों कंपनियों सहारा इंडिया हाउसिंग इन्वेस्टमेंट और सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड पर प्रतिबंध लगा दिया था, और उनके निवेशकों को फर्जी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में सहारा के खिलाफ अर्जी लगायी थी, उसके बाद जो हुआ उससे न केवल सहारा बल्कि पूरी दुनिया के कारपोरेट घरानों में खलबली मच गई. सहारा समूह पर एंबार्गो लगा दिया गया और 25000 करोड़ रुपए चुकाने तक समूह की सभी देनदारियों पर रोक लगा दी गई. सहारा प्रमुख को अपने तीन सहयोगियों के साथ जेल भी जाना पड़ा. मगर सहारा समूह पर हुए कार्रवाई पर देश के शासक वर्ग और न्यायपालिका मौन रही. मगर आज 11 साल बाद उसी कार्यकाल में एलआईसी द्वारा किए गए कर चोरी सामने आ रहे हैं. क्या यही वजह है कि वित्त मंत्री डॉक्टर निर्मला सीतारमण सेबी को कारोबारी सुगमता बढ़ाने का निर्देश दे रही है. वित्त मंत्री डॉ निर्मला सीतारमण की बातों पर अगर गौर करें, तो उन्हें अमेरिका की सबसे बड़ी बीमा कंपनी फेडरल बैंक के तर्ज पर एलआईसी के भी डूबने का खतरा मंडरा रहा है. यही वजह है कि उन्होंने नियामक को फेडरल बैंक से सबक लेने की सलाह दी है. तो क्या भारत सरकार एलआईसी की चोरी पर पर्दा डालने का काम कर रही है ! क्या 75 हजार करोड़ टैक्स चोरी मामले में सरकार एलआईसी को बचाना चाह रही है ? अगर एलआईसी को क्लीन चिट तो सहारा को सजा क्यों ! जबकि सहारा ने शुरू से ही सेबी की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं, और समय- समय पर समूह ने अखबारों एवं विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए सेबी की हरकतों पर खुलकर प्रहार किए हैं. ऐसे में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका मौन क्यों रही, यह समझ से परे है. जिसका नतीजा आज सहारा समूह बर्बादी के कगार पर पहुंच चुका है. तो क्या समूह को न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका ने साजिश के तहत बर्बाद किया !
जानकारों का कहना है कि एलआईसी अगर केस हार जाती है तो उसे बकाया टैक्स का भुगतान करना होगा. इसके लिए उसने अलग से कोई फंड नहीं रखा है. इसके तरह के कुल मामले 24,728.03 करोड़ रुपये के हैं. सरकारी बीमा कंपनी मार्च, 2022 में शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने की तैयारी में है. वह करीब 75,000 करोड़ रुपये का आईपीओ लेकर आ रही है.
माना जा रहा है कि केस हारने पर कंपनी को टैक्स के रूप में बड़ी रकम खर्च करनी पड़ सकती है. इससे कंपनी के शेयरधारकों को मिलने वाले रिटर्न में गिरावट आ सकती है. इसकी बाजार हिस्सेदारी भी घटकर नीचे आ सकती है. भविष्य की कमाई पर भी असर होने की आशंका है. सितंबर, 2021 तक कंपनी के पास 26,122.95 करोड़ की नकदी होने की जानकारी दी गई है.
3 Comments
Everything is possible in India,,, here a innocent company
sahara india ruined by Union of sebi,sc,& govt.,, now it time for lic,, then someone else,, after that anyone… It’s not democracy, it is beurocrcy,, in this country justice is a ball playing by politician and beurocrat people…A discission made by supreme court against sahara,,,, million & billions of peoples of india pushed a darkwell….. 😭😭😭
Ham chathay ki sahara parivear ke shabe payament ko jald hi sharu. Kieya jay.
Sabi shara ka kash hi niptaya jay niwsako ko pasha ho