जमशेदपुर/ सरायकेला विद्या की देवी सरस्वती की पूजा आज धूमधाम से मनाई जा रही है. शिक्षण संस्थानों के अलावा घरों और मुहल्लों में छात्र- छात्राएं पूरे भक्ति भाव से मां सरस्वती की भक्ति करते देखे गए. दो साल से जारी कोविड महामारी के कारण लागभग सभी धार्मिक अनुष्ठान पाबंदियों के साथ संपन्न हो रहे हैं. इस बार थोड़ी नरमी बरती गई है, जिससे छात्र- छात्राओं में थोड़ा उत्साह है और वे पूरे भक्तिभाव से मां सरस्वती की आराधना कर रहे हैं.
सुबह से ही जमशेदपुर और सरायकेला भक्ति रस में रमा रहा. सरायकेला जिला मुख्यालय व आसपास के क्षेत्रों में शनिवार को सरस्वती पूजा को लेकर पूजा समितियो एवं शिक्षण संस्थानों में विशेष तैयारी की गई थी. साथ ही भीड़ नही लगने देने के साथ पूजा स्थल पर मास्क, सेनेटाइजर, हैंड- वाश की व्यवस्था की गयी. विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति नहीं रही महज औपचारिकता के साथ पूजा अर्चना की गई. मान्यता के अनुसार मां की पूजा करने से अज्ञानी व्यक्ति भी ज्ञानी बन जाता है. इनकी आराधना करने से संबंधित व्यक्ति को हर प्रकार का ज्ञान, कला, संगीत व वाणी की वरदान मिल जाती है. वसंत पंचमी के दिन राशि के अनुसार अलग-अलग रंग की कलम मां सरस्वती को चढ़ाने से विद्या की प्राप्ति होती है.
पुराणों में लिखा है सृष्टि को वाणी देने की परंपरा
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती पूजा के रूप में मनाने की परंपरा है. धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन शब्दों की शक्ति ने मनुष्य के जीवन में प्रवेश किया था. पुराणों में लिखा है सृष्टि को वाणी देने के लिए ब्रह्मा जी ने कमंडल से जल लेकर चारों दिशाओं में छिड़का था. इस जल से हाथ में वीणा धारण कर जो शक्ति प्रकट हुई, वह सरस्वती देवी कहलाई.
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उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में ऊर्जा का संचार हुआ और सबको शब्दों में वाणी मिल गई. वह दिन बसंत पंचमी का ही दिन था. इसलिए बसंत पंचमी को विद्या की देवी सरस्वती देवी का दिन भी माना जाता है. शास्त्रों में बसंत पंचमी के दिन कई नियम बनाए गए हैं, जिसका पालन करने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं. बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए और मां सरस्वती की पीले और सफेद रंग के फूलों से ही पूजा करनी चाहिए.