जमशेदपुर मूलनिवासी संघ ने राज्यपाल के नाम जिले के उपायुक्त के माध्यम से एक ज्ञापन सौंपा है. इसके माध्यम से संघ के सदस्यों ने बताया कि संस्था भारत देश के मूलनिवासी बहुजन समाज का एक सामाजिक संगठन है. हम देश के संविधान और संसदीय लोकतन्त्र पर पूर्ण आस्था रखते हैं, इसलिए हम भारत की सभी समस्याओं का समाधान संविधान मे दी हुई व्यवस्था और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत चाहते हैं. इसके तहत राज्यपाल से इन्होंने अपने महापुरुषों तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, राष्ट्रपिता फुले, बाबासाहब आंबेडकर, माता सावित्रीबाई फुले, नारायणा गुरु, संतकबीर, संतरदास, गुरुघासीदास रामासामी परियार, साहूजी महाराज, रामस्वरूप वर्मा, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, ललई सिंह यादव, जोगेन्द्रनाथ मण्डल की विचारधारा को आगे बढ़ा रहा है. इन सभी महापुरुषों ने लोकतन्त्र को समाज एवं गणराज्य संचालन का सबसे बेहतर तरीका माना है. बाबासाहब ने लोकतन्त्र को परिभाषित करते हुये कहा है कि वाल्टर बैघोट ने लोकतंत्र को चर्चा से सरकार के रूप में परिभाषित किया. अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को लोगों द्वारा और लोगों के लिए लोगों की सरकार के रूप में
परिभाषित किया. मेरी परिभाषा है कि लोकतंत्र सरकार की एक ऐसी विधि एवं रूप है जिससे सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन बिना रक्तपात के लाया जाता है. भारत लोकतन्त्र को मजबूत करने के लिए और लोकतन्त्र में विश्वास बनाए रखने के लिए सबसे आवश्यक है “निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया. परंतु जब से भारत में बैलट पेपर के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से युनाव सम्पन्न होने लगा है, तब से विभिन्न राजनीतिक दलों सहित आम जनता में इसके प्रति विश्वास कम होता जा रहा है और अधिकतर लोगों का यह मत बन रहा है कि ईवीएम से छेड़छाड़ कर कुछ राजनीतिक दलों को चुनाव जिताया जा रहा है और कुछ को हराया जा रहा है. 24 अप्रैल 2010 को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बारे में भारत के 13 राजनीतिक दलो द्वारा संयुक्त रूप से चीफ इलेक्शन कमिश्नर नवीन चावला को पत्र लिखा था और इसमें उन्होंने कहा था कि देशभर में ईवीएन को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में इस पर विचार होना चाहिए. इस पत्र में उन्होंने जर्मनी, आयरलैंड, हॉलंड और अमेरिका में ईवीएन बैन किए जाने का हवाला दिया था. उन्होंने लिखा था कि उपरोक्त देश सिर्फ इसी वजह से ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करते क्योकि इसमें हेर-फेर संभव है. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी हार गयी थी जिसके बाद बीजेपी के तमाम नेताओं ने ईवीएम के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था और इन इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के खिलाफ बोलने की कमान संभाली थी. बीजेपी सांसद किरीट सोमैया और पार्टी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो ईवीएम को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए एक किताब लिख डाली. इस किताब में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी का विस्तार से खुलासा किया गया साथ ही यह मांग भी की गयी है कि दुनिया के तमाम विकसित देशों की ही तरह ईवीएम से मताधिकार का प्रयोग बंद कराया जाए. इस किताब का नाम है “Democracy at Risk, Can We Trust Our Electronic Voting Machines?” यह किताब 2010 में प्रकाशित हुई थी. इसकी भूमिका और प्रस्तावना तत्कालिन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी. जैसा कि शीर्षक ही बता रहा है बीजेपी को ईवीएम पर बिलकुल भरोसा नहीं है और पार्टी इन मशीनों को ‘लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में देख रही है. बीजेपी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका (WRIT PETITION (C) NO. 406 OF 2012) लगाई थी. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कोर्ट के कार्यवाही के दौरान ईवीएम के जरिए गड़बड़ी की संभावनाओं को विस्तार से बताया था. ईवीएम में गड़बड़ी न हो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी से सुझाव मांगा तब स्वामी ने अमेरिका और यूरोप के कई देशों के नाम गिनाये थे, जहां आज भी बैलेट पेपर से मताधिकार का प्रयोग होता है. उपरोक्त केस को आए फैसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को विश्वसनीय न मानते हुये मशीनों में वोटर वेरिफाइड पेपर ट्रेल (वीवीपीएटी) लगाने का आदेश दिया था. हमारे देश में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम का माइक्रोकंट्रोलर चिप जापान से आता है. जापान की कंपनी रेनेसास इसे बनाती है और भारतीय कंपनियों केवल इन्हें असेंबल करती है, लेकिन जापान में वोटिंग बैलेट पेपर पर होती है. जापान ईवीएम छोड़कर 2005 मे बैलेट पेपर प्रणाली पर वापस चला गया. इस मामले में भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को बैलेट पेपर के ऊपर प्राथमिकता दी है. हाल में हुए लोकसभा चुनाव के सम्पन्न होने के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के ऊपर से सभी राजनीतिक दलो एवं जन सामान्य का विश्वास समाप्त हो गया है. एक सुर मे बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस सहित कांग्रेस पार्टी के नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ की शिकायत की है. इस तरह से हम देख रहे है कि सभी राजनीतिक दलों का विश्वास ईवीएम से समाप्त हो रहा है. आखिर क्या कारण है जब बीजेपी जैसे राजनीतिक दल जब विपक्ष में होते हैं तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की मुखालफत करते हैं और जब सत्ता में होते हैं तो चुप रहते है. ईवीएम में पारदर्शिता न होने का आरोप लगाते हुए जर्मनी में बैन कर दी गई है. नीदरलैण्ड ने भी जर्मनी के कदम पर चलते हुए ईवीएम बैन कर दिया है. ईवीएम के नतीजों को आसानी से बदला जा सकता है, ये आरोप लगाते हुए इटली ने भी ईवीएम को चुनाव प्रक्रिया से हटा दिया है. आयरलैण्ड ने तो ईवीएम को संवैधानिक चुनावों के लिए बड़ा खतरा बताते हुए बैन कर दिया. बिना पेपर ट्रेल के यूएस के कैलिफोर्निया सहित दूसरे राज्यों ने ईवीएम का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था. सम्पूर्ण विश्व के तकनीकी सम्पन्न एवं लोकतान्त्रिक देशों ने ईवीएम मशीन को एक सिरे से नकार दिया तो भारत में इसका प्रयोग क्यो ? ईवीएम मशीन दूसरे देशों में बैन की जा चुकी है जिनमें जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड जैसे तकनीकी रूप से विकसित देश शामिल है. अमेरिका, जर्मनी, हॉलैण्ड, आयरलैण्ड आदि देशों में यह तय किया गया, कि प्रत्येक वोटर द्वारा दिये गये वोट का भौतिक सत्यापन होना जरूरी है, इसलिए वहां आज भी बैलट पेपर इस्तेमाल होता है क्योंकि उनका मानना है कि, इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन भरोसेमन्द नहीं है. यूनाइटेड स्टेट्स के कुछ प्रान्तों में इस मशीन का उपयोग होता है, लेकिन वो भी कागजी बैकअप के साथ विकसित देश जैसे यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जापान और सिंगापुर अभी भी अपने बैलट पेपर पर ही टिका हुआ है जिससे की वोटर का भरोसा बरकरार रखा जा सके. लेकिन इस मामले में भारत एकमात्र ऐसा देश है. जिसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को बैलट पेपर के ऊपर प्राथमिकता दी है, परंतु अब धीरे- धीरे भारत के लोगों का विश्वास इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से समाप्त हो रहा है. अतः मूलनिवासी संघ की स्पष्ट मांग है, कि चुनाव प्रणाली में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए और निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव के लिए अब इन मशीनों के स्थान पर पुनः मतपत्र अर्थात बैलट पेपर द्वारा ही मताधिकार का प्रयोग होना चाहिए, जिससे लोगो के मन में अपने मत के प्रति निष्पक्ष चुनाव के प्रति और लोकतन्त्र के प्रति पुनः विश्वास बहाल हो.