राजनगर: मकर सक्रांति के दूसरे दिन यानी आखान जात्रा के दिन शनिवार को ग्रामीण क्षेत्रों में चिड़ीदाग (तोम्बाआ:) की परंपरा निभाई गई. इसके तहत सूर्योदय के वक्त सुबह- सुबह बच्चों को गर्म लोहे की सींक से नाभि के दोनों तरफ तेल लगाकर चार बार दागा जाता है. प्रखंड क्षेत्र के कालाझरना में भी इस परंपरा का निर्वाहन किया गया. इसमें एक माह से लेकर पन्द्रह वर्ष तक के किशोरों को चिड़ीदाग दिया गया. इसमें 15 साल से अधिक उम्र की महिला पुरुष भी पर दाग लगवाते हैं, जिनको पेट, कमर या नस में दर्द की शिकायत होती है. मान्यता है, कि चिड़ीदाग से पेट दर्द की शिकायत नहीं होती है. पेट संबंधी जो भी विकार होते हैं, ठीक हो जाते हैं. विज्ञान इसे लोगों का अंधविश्वास मानता है, लेकिन लोग इसे अपनी पूर्वजों की परंपरा मानकर आज भी इसका निर्वाहन करते आ रहे हैं.
पहले लगाते हैं सरसों का तेल, फिर दागते हैं चार बार
लोहे व तांबे के सलाखों के अगले हिस्से को चिड़ी के आकार का बनाकर गोइठे की आग में गर्म करने के बाद खटिया पर लेटे बच्चे को उसकी मां और परिवार के दूसरे सदस्य जोर से पकड़कर रखते हैं. जाड़े के मौसम में बच्चे के शरीर से कपड़े उतार दिए जाते हैं. कपड़ा खुलने के बाद ओझा पहले नाभि के चारों ओर सरसों का तेल लगाता है, फिर गर्म सलाखों से नाभि के चारों ओर एक एक कर चार बार दागता है. बच्चा जोर- जोर से रोता है, लेकिन परिजन उसे इतनी जोर से पकड़कर रखते हैं, कि वह तड़प भी नहीं पाता है. दागने के बाद दाग वाले स्थान पर पुन: सरसों तेल लगा दिया जाता है.