सरायकेला: सरायकेला एवं आसपास के क्षेत्र में शुक्रवार को पवित्र स्नान के साथ क्षेत्र का प्रमुख त्योहार मकर मनाया गया और लोगों ने बारिश व कड़ाके की ठंड में आस्था की डुबकियां लगाई. शुक्रवार को खरकई व संजय नदी समेत विभिन्न जलाशयों में पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार आस्था की डुबकियां लगा कर पवित्र स्नान किया गया और लोगों ने नए- नए कपड़े पहन कर मकर पाकवान का स्वाद लिया. जानकारी हो कि मकर झारखंड का मुख्य त्योहार है जिसे पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस मौके पर हर तबके एवं सामुदाय के लोग मकर की डुबकियां लगाकर नये वस्त्र पहनते हैं. स्नान घाट पर ओघिरा बनाया गया था जहां शुभ मुहुर्त पर भोर को मकर स्नान कर लोगों ने ठंड से बचने के लिए आग का सेंका. मकर के मौके पर नए अन्न से बने पकवान खाने की परंपरा है. मकर पर्व की शुरुआत गुरुवार को बाउंड़ी के साथ हुई. शुक्रवार को भोर से ही सरायकेला शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र में मकर की धुम आरंभ हुई और गांव-गांव में डीजे की ऊंची आवाज से तरह-ताह के गाने की संगीत गूंजने लगी.भोर से ही लोगों ने अपनी- अपनी सुविधा के अनुसार नदी, नाले एवं जलाशयों में आस्था की डुबकियां लगा कर मकर का पवित्र स्नान किया और नए अन्न से बने तरह- तरह के पकवान का सेवन किया. खरकई एवं संजय नदी में मकर स्नान करने वालों की काफी भीड़ देखी गई. जहा कड़ाके की ठंड में लोग आस्थ्सा की डुबकियां लगा रहे थे. पूरे क्षेत्र में दिन भर मकर पर्व की धूम रही और संगीत की धून पर युवक- युवतियों ने टुसू के साथ जमकर जश्न मनाया. महिलाएं अपने बच्चों के साथ खरकई एवं संजय नदी पर जाकर पवित्र स्नान किया. कहीं- कहीं महिलाएं व युवतियां अपनी टुसू के साथ नदी में जाकर मकर स्नान किया. क्षेत्र में शनिवार को आखान मनाया जाएगा. झारखंड में आखान के दिन को काफी शुभ माना जाता है. इस दिन जहां लोग अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं वहीं किसान हलों की पूजा करते हैं.
नकारात्मक विचार को त्याग करने का संदेश देती है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति को देवताओं का सूर्योदय माना जाता है. यह पर्व आसुरी (नाकारात्मक) विचार को छोड़कर दैवी (सकारात्मक) विचार को अपनाने का संदेश देती है. सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है. संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है. मकर संक्रांति सूर्योपासना का ऐसा ऋतु पर्व है, जो हमारे लौकिक जीवन को देव जीवन की ओर मोड़ता है. यह पर्व हमारे भीतर शुभत्व व नवजीवन का बोध भरकर हमें चैतन्य, जाग्रत, जीवंत व सक्रिय बनाता है. गौरतलब है कि एकमात्र सूर्य ही ऐसे प्रत्यक्ष देवता हैं, जो सतत क्रियाशील रहकर हम धरतीवासियों का भरण-पोषण करते हैं.