हामाके जोयदा जाबार मोन छीलो… टिकीस बाबू टिकिट नाई दिलो…
सरायकेला जिले के राजनगर में टुसू की तैयारी जोरशोर से जारी है. परंपरा के नाम पर आधुनिकता हावी जरूर हो चुकी है, मगर आज भी पारंपरिक ढेकी चावल के आटे का पीठा का चलन यहां जीवंत है. video
टुसू के पारंपरिक गीतों के साथ घरों से गुड़ की सोंधी- सोंधी खुशबू मन मोह रहे हैं. टुडू से एक दिन पूर्व बावड़ी के दिन पीठा के लिए चावल के आटे की तैयारी की जाती है. मशीन के आटे की तुलना में ढेकी के आटे का पीठा का अलग ही स्वाद होता है.
परशुराम महतो
टुसू क्या है….
मकर संक्रांति कल है. देशभर में मकर संक्रांति को अलग- अलग रूप में मनाया जाता है. कोल्हान में इसे टुसू के रूप में मनाया जाता है. कोल्हान में टुसू पर्व की खास अहमियत होती है. टुसू क्या है, इसकी अहमियत क्या है, इसके विषय में पड़ताल करने पर पता चला, कि टुसू बेटी, बहन और सहेली है… मान्यता है कि 17 वीं शताब्दी में जब मुगलों का आतंक चरम पर था उस वक्त टुसू ने अपने प्राणों की आहुति देकर आदिवासियों और मूलवासियों की रक्षा की थी. मकर संक्रांति के मौके पर टुसू के रूप में घर में बेटी, बहन और सहेली का आगमन होता है. जिसका आदिवासी- मूलवासी समाज गर्मजोशी से स्वागत करता है और पूरे हर्षोल्लास से इस पर्व को मानता है. वैसे टुसू को लेकर कई किस्से समाज में प्रचलित हैं. टुसू की पूजा कर खुशहाली की कामना की जाती है. हालांकि विगत दो वर्षों से वैश्विक त्रासदी कोरोना के कारण टुसू पर लगने वाले मेलों पर पाबंदियां लग रही है. मगर टुसू का उत्साह कम नहीं हुआ है लोग अपने- अपने घरों में ही इसकी तैयारी में जुटे हैं.
मानिक लाल महतो ( शाहिद निर्मल महतो विद्यालय प्रधानाचार्य)
पारंपरिक ढेकी से चावल कुटाई का आज भी चलन जिंदा है
टुसू पर गुड़- पीठा, मांस- पीठा, नारियल- पीठा का विशेष महत्व होता है. आधुनिकता के चकाचौंध में कोल्हान के आदिवासी- मूलवासी समाज में आज भी ढेकी का प्रचलन जीवंत है. ढेकी से चावल की कुटाई कर आंटा तैयार किया जाता है. जिससे पीठा बनाया जाता है और मेहमानों को परोसा जाता है. पीठा को लोग संदेश के रूप में भी प्रयोग करते हुए. आदिवासी- मूलवासी समाज इस दिन को नया साल के रूप में भी मनाते हैं. सूर्य के मकर रेखा में प्रवेश करने के साथ ही खरमास का समापन हो जाता है और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.