गया: विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी गयाजी में विशेष मिष्ठान के रूप में तिलकुट की एक अलग पहचान होती है. विदेशी प्रर्यटक भी तिलकुट का स्वाद चखने के लिए बेताब रहते है. वैसे तो यहां सालों भर तिलकुट की ब्रिकी होती है, लेकिन सर्द मौसम आते ही इसकी मांग बढ़ जाती है. जनवरी माह में तिलकुट की मांग बढ़ते ही सन्नाटे को चिरती धम- धम की आवाज और सोंधी महक से शहर गुलजार हो जाता हैं. यह किसी फैक्ट्री या किसी अन्य मशीनों की आवाज नही होती है, बल्कि हाथ से तिलकुट कुटने की आवाज होती है. तिलकुट को गया का प्रमुख सांस्कृतिक मिष्ठान के रूप में जाना जाता है, लेकिन अपनी विशिष्टता के कारण राष्ट्रीय- अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाला तिलकुट सरकार की उपेक्षा व जिला उद्योग केन्द्र के असहयोगगात्मक रवैये के कारण अपेक्षा के अनुरूप फैलाव नहीं हो पा रहा है. वही कोरोना की तीसरी लहर व महंगाई के कारण तिलकुट व्यवसाय पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है. महंगाई के कारण लोग बहुत कम खरीदारी कर रहे हैं. 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार है. इस दिन तिलकुट खाने का धार्मिक महत्व होता है. इसे लेकर गया शहर का तिलकुट बिक्री के लिए माने जाने वाला मुख्य बाजार रामना रोड व टिकारी रोड गुलजार हो चुका है. लोग अभी से ही तिलकुट की खरीदारी कर रहे है.
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स्थानीय दुकानदार मनीष कुमार प्रसाद गुप्ता बताते है कि
भौगलिक दृष्टिकोण से गया का जलवायु, आबोहवा व पानी इस उद्योग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है. 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व है. मंकर संक्राति जैसे महापर्व पर तिल की बनी वस्तुओं के दान व खाने की धार्मिक परंपरा रही हैं. इसी महत्व को ध्यान में रखकर अरसे से तिलकुट का निर्माण किया जाता है. करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गया शहर के रमना रोड मुहल्ले में तिलकुट बनना शुरू हुआ था. तिलकुट के शुरूआत करने वाले लोगों के वंशज भी इसी मौसमी कुटीर उद्योग को आगे बढ़ा रहे है. अब तो शहर के रमना रोड, टिकारी रोड, कोयरीबारी, राजेन्द्र आश्रम, चांदचौरा, सरकारी बस स्टैड, स्टेशन रोड आदि में तिलकुट का निर्माण किया जा रहा हैं. वैसे तो तिलकुट देश के कई हिस्सों में बनाया जाता है, लेकिन गया में बने तिलकुट की खास बात होती है, यहां चीनी की अपेक्षा तिल को ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है. जिस कारण यह शरीर के लिए भी फायदेमंद होता है. तिलकुट खाने से कब्जियत दूर होती है. इसे बनाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. गुड़ या चिनी की चासनी बनाकर उसे कूट- कूट कर तिलकुट तैयार किया जाता था. फिर तिल को बड़े पात्रों से भुनकर चासनी के ठंढे टुकडों के साथ मिलाकर उसे कूट- कूट कर तैयार किया जाता था. यहां निर्मित तिलकुट का देश भर में कोई शनी नही है.
यहां के तिलकुट बिहार के शहरों के अलावा पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाण, महाराष्ट्र आदि राज्य के छोटे-बड़े शहरों में भेजे जाते है. बावजूद इसके सरकार इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कोई मदद नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि ओमिक्रान की तीसरी लहर को लेकर रात्रि 8 बजे तक ही दुकान खोलने की अनुमति है. इस कारण लोग ख़रीदारी कम कर रहे है. हम लोगों ने जिलाधिकारी से मांग की है कि रात्रि 10 बजे तक दुकान खोलने की इजाजत दी जाए, लेकिन अभी तक अनुमति नहीं मिली है.
जो लोग विदेशों में रहते हैं, वे अपने स्तर से तिलकुट खरीद कर ले जाते हैं, लेकिन सरकार अगर हम लोगों को जीआई टैग उपलब्ध करा देती है, तो हम लोग विदेशों तक डायरेक्ट तिलकुट को भेज सकते हैं. इसके लिए भी हमलोग विगत कई महीनों से मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से जीआई टैग देने को लेकर अब तक कोई पहल नहीं की गई. महंगाई के कारण जो लोग पहले 5 किलो खरीदते थे, अब मात्र ढाई किलो ही खरीद रहे हैं. गया के बाजार में चीनी का तिलकुट 260 रुपये प्रति किलो, गुड़ से निर्मित तिलकुट 280 रुपये प्रति किलो, नारियल का तिलकुट 340 रुपये प्रति किलो एवं खोवा का तिलकुट 360 रुपये प्रति किलो बिक रहा रहा है. हम सरकार से मांग करते हैं कि तिलकुट व्यवसाय से जुड़े लोगों की मदद करें.
मनीष कुमार गुप्ता (दुकानदार)
वहीं झारखंड के कोडरमा जिले के झुमरी तिलैया से तिलकुट खरीदने आए प्रीतम कुमार सिंह ने बताया कि गया का तिलकुट बहुत ही मशहूर है. इसके बनाने की विधि सबसे उत्तम है. यही वजह है कि प्रतिवर्ष अपने रिश्तेदारों के लिए तिलकुट खरीद कर ले जाते हैं. महंगाई है इसके बावजूद तिलकुट खरीद रहे है. मकर संक्रांति पर तिलकुट खाने की परंपरा है, इसलिए यहां खरीदारी करने आए हैं. यहां के तिलकुट परिजनों के साथ अन्य रिश्तेदारों को भी भेजेंगे. तिलकुट की तासीर गर्म होती है. अभी ठंड का मौसम चल रहा है, ऐसे में तिलकुट खाने से शरीर में गर्माहट पैदा होती है और फायदा होता है.
प्रीतम कुमार सिंह (खरीददार)
गया से प्रदीप कुमार सिंह की रिपोर्ट
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