सरायकेला: असलो मकर खाबो गुड़ पीठा, दीदी गुड़ पीठा तोर बोड़ो मीठा………., आरे आसलो मकर पोरब, खाबो गुड़ पीठा आर घुरते जाबो मेला….., मकर डुब दिते जाबो संगात, संगे देखा कोरते समेत मकर पर्व व टुसु पर्व से संबंधित गीतों की धुन शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में गूंज रही है. जिससे चारों ओर लग रहा है, कि मकर पर्व पर सवार हो गया है. मकर झारखंड का एक ऐसा त्यौहार है, जिसे सभी सामुदाय व तबके के लोग उत्साह के साथ मनाते हैं. सरायकेला एवं आसपास के क्षेत्र में मकर पर्व 14 जनवरी शुक्रवार को मनाया जाएगा. जिसकी तैयारी जोरों पर चल रही है. मकर को ले सरायकेला के मुख्य बाजार में खरीददारी के लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. विशेष कर गुड़- तेल, कपड़े व सौदर्य प्रसाधन की दुकानों में काफी भीड़ देखी गई. मकर पर्व पर सभी वर्ग के लोग अपने घरों में नये धान के चावल से गुड़ पीठा जरुर बनाते हें. और मकर के दिन आपस में मिलकर प्रसाद के रुप में खाते हैं.
ग्रामीण क्षेत्र में बनता है आग का पेड़
मकर पर्व के दिन लोग जलाशयों में मकर स्नान कर नये वस्त्र पहनने के बाद आग के पेड़ में आग तापते हुए सुर्योदय का इंतजार करते हैं. इसके तहत लोग पेड़ की शाखाओं को काट कर उसे पेड़ का रुप देते हैं और उपर से पुआल ढक देते हैं. इसे ओघिरा भी कहा जाता है. इसे जला कर लोग मकर की पहली किरण को प्रणाम कर परिवार की सुख- समृद्धि की कामना करते है.
नारी सम्मान का पर्व टुसू
टुसू पर्व को नारी सम्मान के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान कुंवारी कन्याओं की भूमिका सबसे अहम होती है. कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं. उसकी सेवा-भावना, प्रेम-भावना, शालीनता के साथ पूजा करती हैं. पूजा के दौरान लड़कियां विभिन्न प्रकार के टुसू गीत भी गाती हैं. इसमें कुंवारी लड़कियों की मां, चाची, फुआ, मौसी सहयोग करती हैं. गांवों में मकर संक्रांति से एक माह पहले अग्रहन संक्रांति से ही टुसू पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. करीब एक माह पहले पौष माह से ही टुसू मनी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा शुरू हो जाती है. इस दौरान टुसू और चौड़ल (एक पारंपरिक मंडप) सजाने का काम भी होता है. इसे सिर्फ कुंवारी लड़कियां ही सजाती हैं.
चावल धुआ के साथ शुरू हुआ टुसू पर्व
12 जनवरी को चाउल धुआ के साथ टुसू पर्व शुरू हुआ. पहले दिन घरों में नये आरवा चावल को भिंगोया गया. लकड़ी की ढेंकी में इसे कूटकर चावल का आटा बनाया गया. फिर इसी आटा से गुड़ पीठा तैयार हुआ. 13 जनवरी गुरुवार को बाउंडी पर्व मनाया जाएगा. बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा की जाती है. इस दिन घरों में गुड़ पीठा बनाकर घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते है. 14 जनवरी शुक्रवार को टुसू के मौके पर जलाशयों में स्नान करके लोग नये वस्त्र धारण करेंगे. इसके बाद ही लोग टुसू मेला में शामिल होने जाते हैं.
गुड़ का पीठा और अन्य खास व्यंजन बनते हैं
टुसू पर्व पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने घरों में गुड़ पीठा, मांस पीठा, मूढ़ी लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल के लड्डू जैसे खास व्यंजन बनाते हैं. इसमें गुड़ का पीठा सबसे खास होता है. गुड़ पीठा के बगैर टुसू का त्योहार मानो अधूरा रह जाता है. व्यंजनों में विशेष रूप से नारियल को शामिल किया जाता है. जगह- जगह मुर्गा लड़ाई प्रतियोगिता और मेला का आयोजन किया जएगा.
टुसू पर्व पर गाये जाते हैं बांग्ला टुसू गीत
टुसू पर्व पर विशेष तौर पर टुसू गीत गाये जाते हैं. टुसू गीत मुख्य रूप से बांग्ला भाषा में होते हैं. टुसू प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए नदी में ले जाते समय टुसूमनी की याद में टुसू गीत गाये जाते हैं. ढोल व मांदर की ताल पर महिलाएं थिरकती हैं. टुसू पर गाये जानेवाले गीतों में जीवन के हर सुख- दुख के साथ सभी पहलुओं को समाहित किया जाता है. ये गीत मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली बांग्ला भाषा में होती है.