कांड्रा लैंपस लिमिटेड से ऋण के रूप में मोटी रकम लेकर वर्षों से चुकता नहीं करने वालों पर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं होने से खाताधारकों में आक्रोश व्याप्त है. वहीं इसका खामियाजा लैंपस में मानदेय पर कार्यरत कर्मियों को भुगतना पड़ रहा है. ऐसा ही एक मामला गुरुवार को प्रकाश में आया. जब कांड्रा के एक व्यवसाई विनोद दयाल के फर्जी हस्ताक्षर से जिले के उपायुक्त से लैंपस कर्मियों द्वारा गड़बड़ी किए जाने की शिकायत की गई. इस संबंध में जब आवेदक विनोद दयाल से पूछा गया तो उन्होंने हस्ताक्षर को ही फर्जी बताया और इसे पूरी तरह गलत करार देते हुए फर्जी हस्ताक्षर करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की. इधर लैंप्स कर्मियों का कहना है, कि पूर्व में कई बार उनके द्वारा सहायक निबंधक, जिला सहकारिता पदाधिकारी से लेकर रजिस्ट्रार और कृषि एवं पशुपालन विभाग के सचिव को पत्र लिखकर ऋण धारकों से ऋण वसूली की गुहार लगाई गई थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिसके कारण आए दिन खाताधारकों द्वारा लैंपस कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है. कुछ खाताधारकों के नाम पर जिले के वरीय अधिकारियों को फर्जी हस्ताक्षर युक्त पत्र देकर सारा आरोप मानदेय पर कार्यरत कर्मियों पर मढ़ने की कोशिश की जा रही है. इससे कर्मचारी भी भयभीत हैं. कर्मचारियों ने कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के सचिव को ऋण धारकों पर कार्यवाई करने और अपनी जान माल की सुरक्षा करने की गुहार लगाते हुए पत्र लिखा है. पत्र की प्रतिलिपि जिले के उपायुक्त से लेकर सहकारिता प्रसार पदाधिकारी, सहायक निबंधक और स्थानीय थाने को भी दी गई है. बताया जाता है, कि लैंपस में सदस्य सचिव के रूप में प्रखंड सहकारिता प्रसार पदाधिकारी रहते आए हैं जो प्रबंधक की भूमिका निभाते थे. कांड्रा लैंपस की स्थापना 2001 में हुई थी, जिसके बाद 2011 तक अलग- अलग सहकारिता प्रसार पदाधिकारी कौशल किशोर मिश्रा, सच्चिदानंद प्रसाद और राम बाबू सिंह द्वारा लाखों रुपए ऋण स्वरूप बांटे गए, लेकिन इसकी वसूली के लिए उक्त पदाधिकारियों द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया. उक्त पदाधिकारियों के द्वारा यहां ऋण वितरण के लिए तय किए गए नियम कायदों और मापदंडों को भी नजरअंदाज किया गया. दूसरी तरफ लैंपस से ऋण स्वरूप मोटी रकम लेने के बाद सैकड़ों ऋण धारक कुंभकर्णी निद्रा में सो गए. इससे धीरे- धीरे लैंपस की जमा पूंजी में ह्रास होता गया और वित्तीय लेनदेन भी प्रभावित होने लगा. लैंपस में कार्यरत मानदेय कर्मियों ने घर- घर जाकर भी बांटे गए ऋण की वसूली का काफी प्रयास किया, लेकिन ऋण धारकों ने ली गई रकम चुकता करने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिससे तंग आकर लैंपस के सूचना बोर्ड में बकायदा लोन लेकर चुकता नहीं करने वाले लाभुकों की पूरी सूची प्रकाशित की गई. लैंपस कर्मियों के मुताबिक लैंपस की वित्तीय स्थिति को लेकर कई बार विभागीय अधिकारियों को पत्र लिखा गया, लेकिन किसी ने भी लैंपस की दुर्दशा सुधारने में दिलचस्पी नहीं दिखाई और परिणाम स्वरूप लैंपस की आर्थिक स्थिति दिन- प्रतिदिन खराब होती चली गई. लैंपस में जमा अपनी रकम निकालने के लिए आने वाले खाता धारको द्वारा लैंपस कर्मियों के साथ पैसे नहीं मिलने पर बदसलूकी की जाने लगी. जिसकी शिकायत कर्मियों ने विभाग के आला अधिकारियों से भी की. स्थिति यहां तक पहुंच गई, कि लैंप्स कर्मी लैंपस आने में भी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे. ऐसा नहीं है, कि जिला सहकारिता विभाग पूरे मामले से अनजान है, लेकिन उच्च पदों पर बैठे पदाधिकारियों की रहस्यमय चुप्पी ने लैंप्स कर्मियों के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है. इस बीच कुछ ऋण धारकों ने लिए गए ऋण को चुकता करने से बचने के लिए नए- नए हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं, और उनका प्रयास है, कि किसी तरह लैंपस में ताला लग जाए, ताकि उन्हें लिया गया ऋण वापस ना करना पड़े. इसके लिए खाताधारकों के नाम से फर्जी हस्ताक्षर कर जिले के उपायुक्त को भी पत्र भेजा गया और सारा ठीकरा लैंपस के मानदेय कर्मियों पर फोड़ दिया दिया गया. जब मामले की पड़ताल की गई तो जिसके हस्ताक्षर से उपायुक्त को पत्र भेजा गया था, वह हस्ताक्षर ही फर्जी साबित हुआ. कुल मिलाकर मामला गंभीर होता जा रहा है. ऐसे में अगर शीघ्र ही ऋण धारकों से लिया गया ऋण वसूलने की प्रक्रिया जल्द आरंभ नहीं की गई, तो आने वाले दिनों में मामले के और भी बिगड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है.
Saturday, November 23
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