केंद्र सरकार ने आयुष्मान योजना के माध्यम से गरीब और निर्धन लोगों को स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में बड़ी राहत दी है. मगर क्या जरूरतमंदों को उसका लाभ मिल रहा है ! जरा इस लाचार, बेबस बुजुर्ग महिला को देखिए… जिसके बुढ़ापे का सहारा उसका 30 वर्षीय एकमात्र कमाऊ बेटा पिछले 5 महीने से पैरालिसिस का शिकार हो गया है. लाचार और बेबस बूढ़ी मां अपने बेटे के इलाज को लेकर दर- दर की ठोकरें खा रही है. उसके पास इतने पैसे नहीं है, कि वह अपने बेटे का इलाज करा सके और अपने बुढ़ापे की बैसाखी को दुरुस्त करा सके. बूढ़ी महिला हर संबंधित दरवाजे को खटखटा कर थक चुकी है. अब महिला चमत्कार की उम्मीद लिए बैठी है.
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महिला सरायकेला- खरसावां जिले के आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड 20 स्थित गुमटी बस्ती की रहनेवाली है. इसका 30 वर्षीय बेटा अजय लोहरा टाटा स्टील में ठेकाकर्मी था पांच माह पूर्व अचानक पैरलासिस का शिकार हो गया. अपने जवान बेटे के ईलाज को लेकर महिला हर संभावित दरवाजे पर फरियाद लगायी, मगर महिला के बेटे का किसी बड़े अस्पताल में ईलाज नहीं हुआ. जबकि महिला के पुत्र के पास आयुष्मान कार्ड भी मौजूद है.
राज्य सरकार 2 साल के जश्न में डूबी हुई है. घूम- घूम कर पंचायत- पंचायत शिविर लगाकर जरूरतमंद लाभुकों को सरकारी योजनाओं से आच्छादित करने का दावा कर रही है. ऐसे में अहम सवाल ये है कि इस लाचार, बेबस बुजुर्ग महिला पर सरकार और सरकारी बाबुओं की नजर क्यों नहीं पड़ी. महिला ने बताया कि स्थानीय पार्षद से भी उसने अपने बेटे की ईलाज में मदद की गुहार लगाई थी, मगर उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया. जबकि नगर निगम की ओर से उक्त वार्ड में भी “आपके अधिकार- आपकी सरकार- आपके द्वार” शिविर लगाए गए थे. बहरहाल केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं गरीबों के लिए बनती जरूर है मगर जरूरतमंदों तक उन योजनाओं का लाभ कितना पहुंचता है उसका जीता जागता उदाहरण यह लाचार बेबस बूढ़ी महिला है.