आजादी के सत्तर दशक और झारखंड गठन के बाद 21 बसंत देख चुके झारखंड के लिए इसे विडंबना ही कह सकते हैं. कि सरायकेला- खरसावां जिले में सरकारी मान्यता प्राप्त कॉलेज मात्र तीन हैं, एक चांडिल में दूसरा सरायकेला और तीसरा खरसावां में है. तीन- तीन संसदीय क्षेत्र के अधीन सरायकेला- खरसावां जिले के विद्यार्थियों को उच्च और गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए पड़ोसी जिला जमशेदपुर या रांची का रुख करना होता है. जबकि जिले से वर्तमान में एक केंद्रीय मंत्री देश का और एक राज्य स्तरीय मंत्री राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. जिले के आदित्यपुर, गम्हरिया, कांड्रा, राजनगर, कुकड़ू और ईचागढ़ के छात्रों के पास जमशेदपुर या रांची का ही विकल्प बच जाता है. हर साल पूरे जिले से करीब 15 से 20 हजार छात्र- छात्राएं प्लस टू के लिए निजी कॉलेज और दूसरे जिले का रुख करते हैं. वहीं सरायकेला, चांडिल और राजनगर कॉलेज में गुणवत्तायुक्त शिक्षा नहीं मिलने के कारण कई छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं. जिले की कुल आबादी 10.65 लाख के आसपास है इसमें 25 फीसदी युवा हैं, जिन्हें गुणवत्तायुक्त शिक्षा भी मयस्सर नहीं हो रहा ये दुर्भाग्य है.
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वैसे आपको यह जानकर हैरानी होगी, कि पूरे जिले में कुल 63 देसी, अंग्रेजी और कम्पोजिट लाइसेंसी शराब की दुकानें हैं. इनमें से 19 देसी, 19 विदेशी और 23 कंपोजिट शराब दुकानें संचालित हो रहे हैं, जबकि 5 अभी वेकेंट हैं, इसमे एक देशी, एक विदेशी और तीन कम्पोजिट शराब दुकान शामिल हैं. जबकि अवैध शराब भट्ठियां तो थोक में गली- गली मिल जाएंगे.
अब सवाल ये उठता है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, सामाजिक संगठन और जनता क्या कर रहे हैं. हम अपने भविष्य किस संसाधन के सहारे गढ़ रहे हैं. जिले में प्रतिभाओं की कमी नहीं है मगर उन प्रतिभाओं को निखारने के लिए संसाधन क्या हैं इसपर मंथन करने की जरूरत हैं.
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