झारखंड का सबसे बड़े सिंचाई परियोजना स्वर्णरेखा परियोजना आज तक धरातल पर नहीं उतर सका है. 1978 में इस परियोजना की लागत 140 करोड़ की थी, मगर आज यह परियोजना लागभग 12000 करोड़ की हो चुकी है. परियोजना अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है वैसे परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण और विकास पुस्तिका बनाए जाने को लेकर विवाद अभी चल ही रहा है. हर दिन विस्थापितों और विकास पुस्तिका को लेकर विभागीय कार्यालय के चक्कर काटते लोग नजर आते हैं. ताजा मामला ईचागढ़ प्रखंड के बान्दु गांव का प्रकाश में आया है. जहां हरिपदो मंडल ने 30/ 07/ 1986 को खगेंद्र मंडल से खरीदा था. जिसका खाता नम्बर 225, प्लाट नम्बर 1050 रकबा 0.46 एकड़ है. परियोजना ने 1986 में जमीन का अधिग्रहण किया. मगर मुआवजा किसी अन्य रैयत गुरुपदो मंडल और फकीर मंडल को दे दिया गया. इसको लेकर हरिपद मंडल हर प्रशासनिक पदाधिकारियों के दर पर फरियाद लगा चुका है, लेकिन उसे इंसाफ नहीं मिला. इस संबंध में परियोजना के अधिकारियों ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. परियोजना के क्षेत्रीय उपनिदेशक डॉ रंजना मिश्रा ने साफ तौर पर कहा भू- अर्जन विभाग से मिले प्रमाण के आधार पर भुगतान किया गया है. विभाग ने जमीन का अधिग्रहण कर लिया है. इसमें अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है. वैसे सीधे कैमरे पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया. वहीं पीड़ित गुरुपदो मंडल ने इसके पीछे विभागीय कर्मचारियों और स्थानीय जमीन दलालों की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए इंसाफ की गुहार लगाई है. अब सवाल यह उठता है, कि आखिर गुरुपदो को इंसाफ देगा कौन !
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