लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा में छठ व्रत करने वाले दंपति की कोई मन्नत या मनोकामना पूरी होती है तो इसकी खुशी में वह कोसी भरते हैं. षष्ठी की संध्या सूर्य को अर्घ्य देकर घर में या छत पर कोसी भरने की परंपरा निभाई जाती है.
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छठ पूजन के दौरान कोसी भरने की भी परंपरा निभाई जाती है. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है, कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. पहले अर्ध्य के बाद घर के आंगन पर कोसी भराई किया जाता है. इसमें पांच सात गन्ने की मदद से छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलो का अर्कपात केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है. जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल ठेकुआ, अदरक सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती हैं. उसके बाद कोसी के चारों और अर्ध की सामग्री से भरे हुए डलिया तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रख कर दीपक जलाए जाते हैं. धूप डालकर हवन किया जाता है. छठी मैया के सामने माता से आशीर्वाद भी मांगा जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी घाट या कृतिम जलाशय मैं दुहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मैया का आभार जताती है.
बताया जाता है कि कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस रात रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठकर पारंपरिक गीत गाती है.