जनजातीय समुदाय का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है. जिसे आदिवासी समुदाय के लोग धूमधाम से मनाते आ रहे हैं. वर्षों से चली आ रही परंपरा आज भी आदिवासी समाज के घरों और गांवों में देखने को मिलती है. जहां जनजातीय समुदायों के लोग दिवाली के दूसरे दिन जब शेष भारत गोवर्धन पूजा करता है उसी दिन से आदिवासियों का पर्व सोहराय प्रारंभ हो जाता है. आदिवासी समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है. जनजातीय समाज इस पर्व को उत्साह और सामाजिक सौहार्द के साथ मनाता है. आदिवासी समाज की स्थिति काफी रोचक है. गांव में इसकी झलक साफ देखी जा सकती है. घरों की रंगाई पुताई देखने लायक होती है. रंगाई देखकर लोग उनकी कारीगरी का तारीफ करते हैं. एक दूसरे के घर जाकर लोग जब नाच गान करते हैं उसे देख कर उल्लास और रोमांच की झलक साफ दिखाई पड़ती है.
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गांव के लोगों के साथ सोहराई पर्व उत्साह का आनंद ले रहे बुरुडीह पंचायत के पंचायत समिति सदस्य भादो माझी ने ग्रामीणों के साथ नाच गान करते हुए पर्व के विषय में बताया कि
भादू माझी (पंचायत समिति सदस्य)
मुख्य रूप से जनजातीय समुदाय के गांव और घरों में सोहराय 6 दिनों तक मनाया जाता है. जिसकी धूम पूरे क्षेत्र में देखने को मिलती है. साथ ही पर्व में गाय- बैल की पूजा आदिवासी समाज काफी उत्साह से करते हैं.