आदित्यपुर में कैलाशपति मिश्र सामाजिक सर्वोदय मंच की ओर से स्वर्गीय कैलाशपति मिश्र की 98वीं जयंती समारोह मनाई गई.
जिसमे धनबाद सांसद पीएन सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की. जहां स्वर्गीय मिश्र को याद करते हुए उन्होंने कहा स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर राजनीति में प्रवेश करने वाले स्वर्गीय कैलाशपति मिश्र जातिवादी नहीं राष्ट्रवादी नेता थे. उन्होंने 1990 में मेरी नामांकन यह कहते हुए वापस लेने को मजबूर कर दिया था कि मैं कोयला माफिया हूं, लेकिन 1995 में उन्होंने ही टिकट दिलवाया और तब से आज तक मैं जीतता आ रहा हूं. मौके पर विशिष्ट अतिथि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोश्वामी ने उन्हें कर्मयोगी की संज्ञा दी. समारोह को भाजपा नेता जेबी तुबिद, वंदे शंकर और संरक्षक एके श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया. अध्यक्षता शैलेन्द्र सिंह ने और धन्यवाद ज्ञापन चंद्रमा पांडेय ने किया. कार्यक्रम के आयोजन को लेकर कुछ दिन पूर्व कैलाशपति मिश्र सामाजिक सर्वोदय मंच का गठन हुआ था. मौके पर मंच द्वारा समाज के हर वर्ग के वैसे लोग जिन्होंने कैलाशपति मिश्र के सानिध्य में उत्कृष्ट कार्य किए थे ऐसे करीब 50 लोगों को अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया.
कैलाशपति मिश्र का जीवन परिचय
5 अक्टूबर 1923 को बिहार के बक्सर जिले के दुधारचक गांव में जन्मे स्वर्गीय कैलाशपति मिश्र ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सक्रिय भागीदारी निभाई थी एवं अपनी गिरफ्तारी भी दी थी. 1945 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर प्रचारक जीवन में प्रवेश किया. 1945 से 1946 तक आरा में प्रचारक के रूप में काम किया. 1947 से 1952 तक पटना में प्रचारक रहे. 1952 से 1957 तक कटिहार, पूर्णिया किशनगंज और अररिया में प्रचारक की भूमिका निभाई। 1958 में शाहबाद जिला के प्रचारक रहे. 1959 में बिहार प्रदेश जन संघ के संगठन मंत्री बने. 1977 से 80 तक विक्रम विधानसभा क्षेत्र से विधायक एवं तत्कालीन राज्य सरकार में वित्त मंत्री रहे. 1980 में बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने. 1983 से 1987 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे. 1984 से 90 तक राज्यसभा सदस्य रहे. 1988 से 1993 तक भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री रहे. 1993 से 95 तक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहे. 1995 से 2003 तक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे. उसके बाद बिहार झारखंड के संगठन प्रभारी बनाए गए. 7 मई 2003 से 7 जुलाई 2004 तक गुजरात के राज्यपाल रहे इसी दौरान राजस्थान के राज्यपाल भी रहे. 2004 से 2012 तक रांची एवं पटना में रहकर कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया. 3 नवंबर 2012 को पटना स्थित निवास स्थान पर उनका निधन हुआ.