‘उड़ल सतुआ भइल पितरन के पइठ….’
पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करने का है विधान.
गया: पितृपक्ष के दूसरे दिन अर्थात प्रतिपदा तिथि को प्रेतशिला, रामशिला व कागबली वेदी पर पिंडदान का विधान है. इनमे प्रेतशिला वेदी को प्रमुख माना गया है. परिवार में किसी के भी आकस्मिक मृत्यु जैसे एक्सीडेंट, आत्महत्या, आग से , पानी मे डूबने से, हत्या वगैरह हो जाने पर उनकी आत्मा भटकती रहती है, ऐसा हमारे शास्त्रों एवं धर्म ग्रन्थों में कहा गया है.
प्रेतशिला में आकस्मिक मृत्यु व जाने- अनजाने परिवार में किसी की मृत्यु हुए लोगों का पिंडदान करने का विधान है. प्रेतशिला वेदी गया शहर से 7 किलोमीटर की दूरी पर कोरमा गांव के समीप प्रेतशिला पहाड़ पर स्थित है. लगभग 676 सीढियां चढ़कर लोग पहाड़ के ऊपर बने ब्रह्मशिला पर पिंडदान करते हैं एवं उस शिला पर सत्तू डालते हैं. कुछ वृद्ध पिंडदानी जो पहाड़ पर नहीं चढ़ सकते हैं, वे लोग प्रेतशिला परिसर में पिंडदान कर कर पितरों के निमित्त पिंड को छोड़ते हैं.
प्रेतशिला पहाड़ के ऊपर जाने के लिए स्थानीय मजदूरों द्वारा खटोली की व्यवस्था रहती है, जो एक निश्चित रकम लेकर यात्री को ऊपर ले जाते हैं और वापस नीचे छोड़ देते हैं. पिंडदान से पूर्व यहां पर अवस्थित ब्रम्ह सरोवर में तर्पण किया जाता है. पहाड़ के ऊपर ब्रह्म शिला पत्थर पर तीन लकीरें है, मान्यता है कि इनमें स्वयं ब्रह्मा, विष्णु व महेश विराजमान हैं. इन तीनों लकीरों पर सत्तू छोड़ने का प्रावधान है. साथ ही पिंडदानी हवा में सत्तू उड़ाते हुए ‘उड़ल सतुआ भईल पितरन के पईठ’ का उच्चारण करते हैं. इसके बाद ब्रह्म शिला की पांच बार परिक्रमा करते हैं. जिसके बाद अकाल मृत्यु हुए पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस तरह से पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान किया जाता है. जिससे असमय मृत्यु को प्राप्त पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष के मौके पर प्रेतशिला पर्वत पर बड़ी संख्या में देश के विभिन्न राज्यों से आए पिंडदानी पिंडदान करते नजर आए.
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वहीं कोलकाता से पिंडदान करने आई अलका अग्रवाल कहती है, कि उनके पिता की आसमयिक मृत्यु हो गई थी. इस कारण अपने पिता का प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान कर रहे हैं. गयाजी के बारे में बहुत सुना था, कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
कनक अग्रवाल (पिंड दानी- कोलकाता)
वहीं स्थानीय पंडा निरंजन बाबा ने बताया कि पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान किया जाता है. सत्तू उड़ाकर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति करने का प्रावधान है. यहां पर पिंडदान करने से असमय मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. शास्त्रों के अनुसार जो लोग यहां पिंडदान करते हैं उनके पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है.
निरंजन बाबा (स्थानीय पंडा)
गया से प्रदीप कुमार सिंह की रिपोर्ट
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