सिंहभूम कॉलेज चांडिल के संस्कृत एवं संताली विभाग की ओर से 27वें विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी दर्शन, साहित्य, कला और संस्कृति विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन गूगलमीट के माध्यम से किया गया. इस वेबिनार के मुख्य वक्ता सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की कुलपति प्रो. डॉ. सोनाझरिया मिंज ने कहा, कि आदिवासी संस्कृति बचपन से कोड किया हुआ रहता है. बच्चों को बचपन से सिखाया जाए, तो उनको आदिवासी विषयक पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने औरों को भी जीने दो ‘के सिद्धांत को आदिवासी दर्शन का आधारतत्त्व बताया. विशिष्ट वक्ता अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त आदिवासी लेखिका एक्टिविस्ट और आदिवासी दर्शन की विदूषी वंदना टेटे ने वेबिनार-सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आदिवासी प्रकृतिवादी होते हैं. लेकिन पेड़पौधों को माननेमात्र से कोई प्रकृतिवादी नहीं हो सकते. इसके लिये सतत् सहगामी होना पड़ता है. आदिवासी दर्शन किसी भी गैर-बराबरी के खिलाफ़ हमें मार्गदर्शन करती हैं. आदिवासी पुरखा-पूर्वजों की भाषा की अपनी गरिमा होती है जो किसी भी रूप में किसी को गाली नहीं देती. उन्होंने आदिवासी साहित्य पर वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा, कि आदिवासी द्वारा लिखा गया साहित्य भी आदिवासी- साहित्य तबतक नहीं है, जबतक कि उसमें आदिवासियत नहीं है. कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गंगाधर पंडा ने कहा, कि आदिवासी प्रकृतिप्रेमी होते हैं. इनसे प्रकृति के प्रति सम्मान करने के तरीकों को हमें अपनाने की जरूरत है. वेबिनार को संयोजक डॉ. सुनील मुर्मू ने कार्यक्रम का संचालन किया. सिंहभूम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. डीके पांडेय ने स्वागत तथा अध्यक्षीय भाषण दिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ. आर आर राकेश ,डॉ. करूणा पंजियारा, का विशेष योगदान रहा. कार्यक्रम की सह-संयोजिका प्रो. दानगी सोरेन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ वेबिनार कार्यक्रम का समापन हुआ.
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