सरायकेला जिले के आदित्यपुर स्थित दिंदली बस्ती में 1818 ईसवी में ग्रामीणों ने चडक पूजा की शुरुआत की थी वो आज 203 वर्ष बीत जाने के बाद भी कायम है. भले ही लगातार 2 वर्ष से कोरोना संक्रमण की वजह से पूजा व मेले का आयोजन धूमधाम से नहीं हो पा रहा है लेकिन ग्रामीणों में भक्ति और आराधना की कोई कमी नहीं है. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार और मंगलवार को होनेवाली इस चडक पूजा के बाद ही ग्रामीण अपनी खेती गृहस्थी का कार्य शुरू करते हैं. यह परम्परा आज भी कायम है. आज सोमवार को विधिवत ग्रामीणों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर भगवान शिव की आराधना की. मंगलवार को अहले सुबह 4 बजे खरकई नदी से जलभराई कर यात्रा घट लाया जाएगा. फिर शिव के नाम मंदिर प्रांगण में ग्रामीण बकरे की बलि देंगे. वहीं मन्नत रखने वाले अपने शरीर में लोहे की सुइयां चुभोकर रजनी फोड़ा कराएंगे. जानकारी देते हुए मेला समिति के संरक्षक छवि नाथ महतो व पार्षद राजरानी महतो ने बताया, कि इस वर्ष भी मेले का आयोजन नहीं हो रहा है केवल पूजा अर्चना और मन्नत मांगनेवाले रजनी फोड़ा कराएंगे. बता दें, कि हर वर्ष मेले के साथ 2 दिनों तक यहां विभिन्न छऊ नृत्य शैलियों का आयोजन होता था जिसे देखने दूर दूर से लोग आते थे, लेकिन 2 वर्षों से यह आयोजन नहीं हो रहा है.
1817 में महामारी व सुखाड़ पड़ने के बाद 1818 में शुरू हुआ था चडक पूजा
बताते चलें कि दिंदली बस्ती में चड़क पूजा का आयोजन वर्ष 1818 से लगातार किया जा रहा है। यह पूजा खास तौर पर अच्छी बारिश के साथ ही बस्ती के लोगों को संक्रमित बीमारियों से बचाने के लिए की जाती है। बस्ती के बुजुर्ग बताते हैं कि 1917 में भीषण अकाल के बाद 1818 में यह पूजा शुरू हुई थी। उस वर्ष भीषण गर्मी के दौरान महामारी फैली थी जिसके कारण कई लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी। इसके बाद वर्षो पुराने शिव मंदिर में भक्तों द्वारा चड़क पूजा का आयोजन किया गया था, जिससे पूरे गांव में हरियाली व खुशहाली आई थी। इस वर्ष पूजा सम्पन्न कराने में रितेन महतो, अध्यक्ष लालटू महतो, संजय महतो, मनोज मंडल, छुटुन महतो आदि सक्रिय हैं.
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