झारखंड: कोरोना महामारी से तड़प रहा है. केंद्र और राज्य सरकार के बीच जारी गतिरोध के कारण झारखंड उपलब्ध संसाधनों के साथ इस वैश्विक त्रासदी से निजात पाने में जुटा हुआ है.
झारखंड अलग राज्य हुए 22 साल बीत चुके हैं, इसमें से लगभग 15 साल एनडीए नीत सत्ता झारखंड में रही. वर्तमान झामुमो- कांग्रेस- राजद समर्थित पूर्ण बहुमत वाली सरकार भले झारखंड के सत्ता पर काबिज है, लेकिन पिछले साल से ही कोरोना महामारी की चपेट में आने के बाद झारखंड कराह रहा है.
राज्य सरकार को पाक- साफ कहना उचित नहीं होगा, लेकिन केंद्र से अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिलने के कारण राज्य और बदहाल हो चुका है. खासकर स्वास्थ्य को लेकर जो हालात उतपन्न हुए हैं उसमें तो कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह गई है.
राज्य का स्वास्थ्य सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. हर ओर तबाही और त्रासदी का भयानक मंजर साफ नजर आ रहा है. अस्पतालों में बेड नहीं दवाओं की जमकर कालाबाजारी हो रही है.
श्मशानों में शव जलाने के लिए जगह नहीं. शव का दाह संस्कार के लिए चार- चार दिन का वेटिंग. इसे हम क्या कह सकते हैं. इसके लिए दोषी कौन हो सकता है, यह भी बताने की जरूरत नहीं.
अब हम बात कर लेते हैं झारखंड के सरायकेला जिले की. झारखंड के औद्योगिक मक्का के रूप में विख्यात सरायकेला का आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया. अलग राज्य बनने के बाद यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के बड़े- बड़े दावे हुए.
हाथी उड़ाने से लेकर सेना, रेलवे और डिफेंस के समान बनाने के दावे किए गए. मगर आज भी निर्भरता टाटा मोटर्स के इर्द- गिर्द घूम रही है. सुपर मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल के नाम पर पूरे जिले में एकमात्र ब्रम्हानंद नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल है, वो भी आमजनों की पहुंच से कोसों दूर. मशहूर उद्यमी एसके बेहरा द्वारा एक अस्पताल खोला जाना प्रस्तावित है, अभी दूर- दूर तक कहीं कुछ नहीं. खरसावां में 2010 तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पहल पर 500 बेड के सरकारी अस्पताल का आधारशिला रखा गया था.
आज तक वह अस्पताल शुरू नहीं हो सका. पूरा सिस्टम सरकारी लूटखसोट के फाइलों में दबकर रह गया.
वहीं आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र की हम बात कर लेते हैं. यहां के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाजशास्त्रियों के एक से बढ़कर किस्से- कहानियां प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से ज्यादा अखबारों में सुर्खियां बटोरते हैं, कोरोना महामारी के पहले दौर में मुफ्त राशन भोजन- पानी बांटने के नाम पर यहां के नेताओं की ऊर्जा सरकारी तंत्र से भी तेज दौड़ती नजर आ रही थी.
लेकिन वैश्विक आपदा के इस घड़ी में सभी नेता भूमिगत हो गए हैं. हां इनके लिए इस वैश्विक आपदा में करने के लिए कुछ नहीं ऐसा कहना बेमानी होगा. अगर सभी एकजुटता दिखाते तो *आदित्यपुर नगर निगम, आदित्यपुर स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एसिया), लघु उद्योग भारती, झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जियाडा), स्वर्णरेखा परियोजना, आवास बोर्ड, ऑटो क्लस्टर, नागरिक समन्वय समिति, जनकल्याण मोर्चा, आदित्यपुर विकास समिति* सरीखे सरकारी और गैर सरकारी संस्था मिलकर कोविड अस्पताल निर्माण कराकर कोरोना संक्रमितों का उपचार कराने में बड़ी भूमिका निभा रहे होते.
इससे जमशेदपुर के अस्पतालों पर दबाव कम होता. हैरानी की बात तो ये है कि सरकारी स्तर पर वैक्सिनेशन अभियान चलाया जा रहा है जहां बुजुर्ग और महिलाएं घण्टों लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते देखे जा रहे हैं. धूप में खड़े होकर घंटों लाइन में रहने के कारण वैक्सीन लेने के बाद लोग बीमार भी पड़ रहे हैं यहां के सामाजिक संस्थाओं में इतनी भी गैरत नहीं रह गई कि वे अपने स्तर पर अस्पतालों के बाहर वैक्सीन लेने पहुंच रहे बुजुर्गों एवं महिलाओं के लिए टेंट- शामियाने या कुर्सियों का प्रबंध करा दें.
थोड़ी बहुत सामाजिक स्तर पर मानवता उद्गम और नरेंद्र मोदी फैंस क्लब जरूर दिखा रहे हैं. चूंकि इनके द्वारा बड़े पैमाने पर रक्तदान शिविर आयोजित कराया जाता है इसलिए इनसे लोगों को अपेक्षाएं हैं. वैसे दोनों संस्थाओं द्वारा हर जरूरतमंद लोगों को खून और प्लाज्मा मुहैया कराया जा रहा है. बीजेपी का युवा तुर्क नेता अनुराग जायसवाल इस वैश्विक आपदा की घड़ी में पूरे ऊर्जा के साथ अपने टीम के सदस्यों के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से सक्रिय भूमिका में दिख रहे हैं. उनकी टीम के द्वारा जरूरतमंद लोगों को ऑक्सीजन और अस्पतालों में बेड मुहैया कराया जा रहा है.
लेकिन बड़े-बड़े दिग्गज नेता जो हर दिन अखबारों की सुर्खियां बनते रहे वे सभी भूमिगत हो चुके हैं. नगर निगम के चुनाव के दौरान बड़े-बड़े दावे करने वाले नेता भी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे. स्थानीय विधायक जो राज्य के कद्दावर मंत्री भी हैं, उनकी पार्टी के लोग भी पूरी तरह से निष्क्रिय ही नजर आ रहे.
सहयोगी दल कांग्रेस के बड़े नेता नदारद हैं. वैसे आदित्यपुर की जनता सब कुछ समझ रही है. जिला प्रशासन विरासत में मिले व्यवस्था पर जितना बन पा रहा है उसे जरूरतमंदों तक पहुंचाने में जुटी है. लेकिन आदित्यपुर की सामाजिक संस्थाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और नेता जिला प्रशासन के साथ सहयोगी की भूमिका में नजर नहीं आ रहे.
उधर पड़ोसी जिला जमशेदपुर की बात करें, तो वहां सरकारी सिस्टम को छोड़ दिया जाए तो भी कई सामाजिक संगठन अपने अपने स्तर से आगे आ चुके हैं. मारवाड़ी समाज की सभी इकाइयां, सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, मुस्लिम समाज, गुजराती कम्युनिटी, मुखी समाज सरीखे सामाजिक और धर्मिक संस्थाओं ने जिला प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना शुरू कर दिया है. मारवाड़ी समाज की ओर से हजारों कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों के घरों पर पौष्टिक भोजन पहुंचाने का काम किया जा रहा है.
इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर भी जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा रहा है. सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से 20 बेड के कोविड-19 अस्पताल का निर्माण कराया गया है. साथ ही ऐलान किया गया है, कि सभी गुरुद्वारों में कोविड-19 अस्पताल बनाया जाएगा.
जिसमें ऑक्सीजन युक्त बेड लगे होंगे और डॉक्टर भी मरीजों की निगरानी करेंगे. निश्चित तौर पर जमशेदपुर कम्युनिटी के इस प्रयास का असर आने वाले दिनों में दिखेगा. लेकिन आदित्यपुर कम्युनिटी के रहनुमाओं को क्षेत्र की जनता लंबे वक्त तक याद रखेगी. नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर की भूमिका को भी क्षेत्र की जनता याद रखेगी.
पूर्व उपाध्यक्ष हो, या पूर्व के कई मेयर पद प्रत्याशी सभी की भूमिकाओं पर आदित्यपुर कम्युनिटी की पैनी निगाह है. उद्यमी, व्यापारी और कारोबारियों के अलावा आदित्यपुर में प्रवास कर रहे डॉक्टरों की भूमिका पर भी यहां के लोगों की निगाह है. सब का हिसाब जनता लेने को आतुर है. बस इंतजार वक्त का है.