DESK झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के राजनीतिक भविष्य को लेकर राजनीतिक पंडित सोच में पड़ गए हैं. चंपाई को करीब से जानने वाले भी चंपाई के भविष्य पर अब सोच में पड़ गए हैं क्योंकि जिस बीजेपी को उन्होंने अपना दोस्त बनाया है उसी बीजेपी के नीति- सिद्धांतों पर चंपाई फिट नजर नहीं आ रहे हैं. विधानसभा में सत्र की कार्रवाई हो या पार्टी के कार्यक्रम चंपाई दूर- दूर रह रहे हैं.

संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों और धर्मांतरण के मुद्दे को छोड़ चंपाई किसी भी मुद्दे पर बात नहीं कर रहे जबकि झारखंड बीजेपी से लेकर केंद्रीय नेतृत्व का इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं आ रहा है. क्योंकि इस मुद्दे को उठाकर बीजेपी बड़ा खामियाजा भुगत चुकी है. संथाल परगना में भाजपा का सूपड़ा साफ हो चुका है. इस मुद्दे को हवा देनेवाले प्रदेश भाजपा प्रभारी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा का अब कोई अता- पता नहीं.
राजनीतिक जानकारों की मानें को बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के दौरान चंपाई को तोड़कर जो नैरेटिव सेट किया था वह विफल रहा. अब चंपाई बीजेपी के लिए किसी काम के नहीं रह गए हैं. जानकर मानते हैं कि चंपाई चाह कर भी बीजेपी छोड़ नहीं सकते क्योंकि ईडी और सीबीआई उनके पीछे छोड़ दिए जाएंगे. इधर भाजपाई दिग्गज चंपाई को भाव नहीं दे रहे न प्रदेश के कार्यक्रमों में उन्हें बुलाते हैं न जिला के कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी होती है. न विधानसभा में चंपाई पार्टी के विधायकों से रायशुमारी करते नजर आते न उनका कोई बयान आ रहा है सिवाय घुसपैठ और धर्मांतरण के. जिस कार्यक्रम में वे होते हैं उसमें उनका कुनबा अधिक होता है बीजेपी के रजिस्टर्ड कार्यकर्ता नदारद होते हैं.
संथाल के दिग्गज नेता बिरसा हांसदा ने बताया कि चंपाई यदि बीजेपी के साथ नहीं जाते तो उन्हें संथाल में सम्मान मिलता मगर बीजेपी के साथ जाकर उन्होंने बड़ी भूल कर दी है. संथाल परगना में मुसलमानों को दरकिनार कर आप राजनीति नहीं कर सकते यदि यहां चुनाव जीतना है तो अल्पसंख्यक समुदाय को साथ लेना जरूरी है. बीजेपी को अल्पसंख्यक कभी साथ नहीं देगा इसलिए चंपाई सोरेन की रणनीति कारगर साबित नहीं होगी. वे भाजपा के भ्रम जाल में फंस गए और बीजेपी चुनाव के बाद इस मुद्दे पर मौन हो गयी जबकि चंपाई अल्पसंख्यक के निशाने पर आ गए. रही बात संथाल परगना में घुसपैठ और धर्मांतरण के मुद्दे पर उन्हें समर्थन करने की तो मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर उन्हें यहां कोई खास सफलता मिलने जा रही है. यह एक चुनावी जुमला था जिसे भाजपा के साथ चंपई सोरेन के भविष्य को भी कटघरे में खड़ा कर दिया.
अब सवाल चंपई के उस नई दोस्ती को लेकर उठ रहे हैं. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जिस अंदाज में बीजेपी को अपना नया दोस्त बनाया था चुनाव में मिली करारी हार के बाद भाजपा ने चंपई से दूरी बना ली है. अब ना तो पीएम मोदी चंपई सोरेन का जिक्र करते हैं ना गृह मंत्री अमित शाह. ना शिवराज सिंह चौहान ना हिमंता बिसवा सरमा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस दोस्त का क्या होगा ? क्योंकि पार्टी नेतृत्व ने नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी को बना दिया. अब बारी प्रदेश अध्यक्ष की है. इस पद पर पार्टी किसी ओबीसी को लाने की तैयारी कर रही है. इसके लिए भी कई दिग्गज लाईन में लगे हैं. हालांकि उन सभी दिग्गजों पर अकेले चंपाई भारी होंगे मगर बीजेपी के लिए एक कहावत फिट बैठती है “गज के चक्कर में थान हारने की” बीजेपी जमीन से जुड़े मुद्दों पर अक्सर हार जाती है. भाजपा आलाकमान चंपाई के औरा को अच्छे से जान रही है मगर दिग्गजो से भरी पार्टी चंपाई सोरेन को आसानी से पार्टी में फिट बैठने देगी इसकी संभावना कम है. हालांकि चंपाई सोरेन को करीब से जाननेवाले मानते हैं कि टाइगर वापसी करेगा और दमदार वापसी होगी. वैसे इसका हमें भी इंतजार रहेगा.
