सरायकेला/ Election Desk झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 कई मायनों में अहम होने जा रही है. पांच साल सत्ता से दूर रहने के बाद एनडीए जहां सत्ता हथियाने की जीतोड़ कोशिशों में जुटी है वहीं सत्ता सुख भोग चुकी इंडिया गठबंधन किसी कीमत पर सत्ता से दूर होना नहीं चाहेगी. इंडिया भी यहां पूरे दमखम से मुकाबले को तैयार है. वैसे इस चुनाव में दोनों ही गठबंधन के बागी मुख्य भूमिका निभाएंगे यह तय है. यहां हम बात कर रहे हैं सरायकेला विधानसभा की.
इस विधानसभा में दो बागी एकबार फिर से आमने- सामने होंगे. यहां मुद्दों पर चुनाव होगी इसकी संभावना कम है. क्योंकि दोनों ही गठबंधन के प्रत्याशी वही हैं बस सिंबल बदल गया है. एनडीए के प्रत्याशी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के बागी चंपाई सोरेन मैदान में हैं, जबकि इंडिया गठबंधन से प्रत्याशी के रूप में भाजपा के बागी गणेश महाली उनके सामने होंगे. गणेश महाली इससे पहले दो- दो बार भाजपा के टिकट से चुनाव हार चुके हैं. उन्हें झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ चुके चंपाई सोरेन ने पराजित किया था. मगर इसबार परिस्थियां अलग हैं. इसबार दोनों ही प्रत्याशी अलग- अलग सिंबल से चुनावी मैदान में कूदे हैं जिससे दोनों ही दलों के समर्थक और मतदाता असमंजस की स्थिति में है.
सरायकेला सीट में संथाल मतदाता 40 फीसदी है जबकि 60 फीसदी मतदाता अन्य समुदाय के हैं. इसमें मूलवासी, ओबीसी और सामान्य श्रेणी के मतदाता शामिल हैं. इस विधानसभा में तीन प्रखंड पड़ते हैं. आदित्यपुर नगर निगम को भाजपा का गढ़ माना जाता है, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट से चुनाव लड़ रहे चंपई सोरेन ने बढ़त बनाई थी. इस बार चंपई सोरेन भाजपा के टिकट से चुनावी मैदान में है जो भाजपा के लिए प्लस पॉइंट है, मगर भीतराघात के खतरे से उन्हें सावधान रहना होगा. क्योंकि गणेश महाली का भी यहां जबरदस्त पकड़ है. उनको झामुमो का कैडर वोट और आदित्यपुर मुस्लिम बस्ती के वोटर का समर्थन मिलेगा हालांकि भीतराघात का खतरा उनके लिए भी उतना ही रहेगा.
सरायकेला और राजनगर प्रखंड पूरी तरह कृषक बहुल क्षेत्र है. पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र का नेतृत्व झामुमो के दिग्गज नेता चंपई सोरेन करते आ रहे हैं. अपने क्षेत्र में विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए वे हमेशा सक्रिय रहे. पिछले पांच साल के दौरान जितनी सड़कों का निर्माण शुरू हुआ था, बनकर तैयार हो गई हैं. हर सड़क गांव से जुड़ती है. इस कारण अब गांवों में पहुंचना आसान हो गया है. यही नहीं गांव में पुल- पुलिया का जाल भी बिछ गया है, लेकिन खेतों तक अबतक पानी नहीं पहुंचा है. गंजिया बराज का पानी किसानों के खेतों तक लिफ्टिंग कर पहुंचाने का भगीरथ प्रयास उनके द्वारा ही किया गया है. फिलहाल लेफ्ट कैनाल से दर्जनों गांवों के हजारों एकड़ खेतों में पानी पहुंच रहा है. वहीं राइट कैनाल का काम भी जोर- शोर से चल रहा है. इसके अलावा सीतारामपुर जलाशय में भी पानी पहुंचाया जा रहा है जिससे शहरी जलापूर्ति को फायदा मिलेगा. मगर ये सब उन्होंने झारखंड सरकार के जल संसाधन मंत्री रहते किया. जिसमें सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चुनाव में इसका श्रेय चंपाई लेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है. देखना यह दिलचस्प होगा कि जनता इसका श्रेय किसे देती है.
वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी चंपाई सोरेन ने बढ़िया काम किया. राजनगर में मेसो अस्पताल और सरायकेला में 100 बेड का अनुमंडलीय अस्पताल इसका उदाहरण है. वहीं सदर अस्पताल में लिफ्ट, आईसीयू और अत्याधुनिक सुविधाओं की सौगात चंपाई सोरेन ने ही दी. मगर मंत्री वे झारखंड सरकार के थे. जनता इसका श्रेय किसे देगी झारखंड सरकार को या चंपई सोरेन को यह देखना दिलचस्प रहेगा. रोजगार और शिक्षा इस विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है. जबकि यहां एशिया का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया है. बावजूद इसके स्थानीय युवा पलायन को विवश है. हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद चंपई सोरेन ने इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया और राजनगर और गम्हरिया में डिग्री कॉलेज की स्थापना को मंजूरी दी. चंपई सोरेन और गणेश महाली की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि दोनों ही क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे. दोनों ही ग्रामीणों के हर सुख- दुख में शमिल होते रहे. इंडस्ट्रियल एरिया के कई कंपनियों में सैकड़ो युवाओं को गणेश महली ने रोजगार मुहैया कराया. ऐसे में सरायकेला सीट राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील हो गयी है. इस बार झामुमो की पहली रणनीति चंपाई सोरेन को उनके अपने ही गढ़ हराने पर केंद्रित रहेगी. चंपाई सोरेन का जनाधार और उनके राजनीतिक कद को देखते हुए झामुमो के लिए यह लड़ाई आसान नहीं होगी. झामुमो से भाजपा में आने के बाद चंपाई सोरेन ने अपने पुराने साथियों और समर्थकों के साथ संपर्क बनाये रखा है. जिससे उनके खिलाफ किसी भी रणनीति को अंजाम देना चुनौतीपूर्ण साबित रहा है. चंपाई सोरेन सरायकेला विधानसभा सीट से 1991 के उपचुनाव में झामुमो से बगावत कर पहली बार चुनाव में विजयी रहे. उसके बाद 1991 से लेकर 2019 तक एक बार छोड़ कर हर चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की. इससे पहले खरसावां राजपरिवार के सदस्य आदित्य प्रताप सिंह देव और नृपंद नारायण सिंह देव भी यहां से विजयी रहे. जबकि 1967 में पहली बार जनसंघ के रुद्र प्रताप षाड़ंगी को जीत मिली. इसके बाद 1985 और 1990 में झामुमो के कद्दावर नेता रहे कृष्णा मार्डी विजयी हुए.