DESK “चम्पाई सोरेन बनाम केपी सोरेन” दोनों नेताओं के गृह क्षेत्र सरायकेला के राजनगर से उठ रहे चुनावी दंगल के चर्चा की हवा का रुख अब सरायकेला विधानसभा क्षेत्र में फैलने लगा है. दरअसल चम्पाई सोरेन के भगवाकरण के बाद सरायकेला विधानसभा क्षेत्र के वातावरण में व्याप्त राजनीतिक शून्यता को भरने के लिए “इंडी” गठबंधन की ओर से चली कांग्रेसी नेता केपी सोरेन की हवा अब किस शक्ल में, किस गति से आगे बढ़ेगी और किस अंजाम तक पहुंचेगा, यह राजनगर से ही पता चल रहा है.
राजनगर के कई प्रबुद्ध युवा कार्यकर्ताओं ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए बताया कि चम्पाई दादा ने राजनीतिक अपमान के प्रतिशोध के लिए भगवा धारण कर लिया लेकिन बचपन से भाजपा नीति के विरोध में दादा से कहानियां सुनते- सुनते युवा हुए कार्यकर्ताओं के खून की एक- एक बूंद में जेएमएम है, उसका क्या करें ! ये प्रबुद्ध युवा अब नीति को लेकर नेता से समझौता करने के मूड में नहीं हैं. इनका सहज झुकाव केपी की ओर है.
हमेशा से राजनगर के मत पेटी के वोटों की गिनती चम्पाई सोरेन को विधायिकी का सर्टिफिकेट दिलाती आई हैं. वहां केपी सोरेन की सेंध अब इंडी गठबंधन के लिए एक सुखद सम्भावना है. चम्पाई बनाम केपी के विश्लेषण का दूसरा पहलू यह है कि महतो वोटर्स जो चम्पाई की नजरों में कथित रुप से, दोयम दर्जे की दशा के बावजूद दादा के पावर सर्किल के अंदर घुटन महसूस कर रहे थे, वह अब छिटक रहे हैं. खबर है कि जोबा माझी के चुनाव प्रचार के दौरान जिन महतो नेताओं ने सरायकेला क्षेत्र में केपी सोरेन के नेतृत्व में कमान सम्भाली थी वे अब असंतुष्ट महतो खेमा को साधना शुरु कर चुके हैं.
सिर्फ महतो समुदाय ही क्यों, गम्हरिया में आदिवासियों का एक धड़ा चम्पाई सोरेन के विरुद्ध डटकर खड़ा हो गया है. यह धड़ा पहले से ही अंदर ही अंदर चम्पाई से दूरी बनाये हुए था. आज की तारीख में वे मुखर हो गए हैं और अलग से लॉबिंग कर रहे हैं. चम्पाई दादा की ओर से इनका मान- मनौवल का परिणाम सिफर है. आगे केपी सोरेन यदि इन्हें अपने पाले में लाने में सफल होते हैं तो दादा और कमजोर हो जायेंगे.
सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से भाजपा कोटा से विधायक बनने का सपना पाल रहे कई युवा नेता पूरे क्षेत्र में काम करते हुए अपनी जवानी खपा दी थी, अब उनका सपना चकनाचूर हो गया है. उनमें से कई तो चम्पाई के हाथ ही नहीं आ रहे हैं और जो हाथ आ रहे हैं वे चम्पाई से हाथ तो मिला रहे हैं, पर दिल नहीं मिल रहा है. वे चुनाव में भितरघात कर सकते हैं, चर्चा है कि केपी सोरेन उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर गड़ाये हुए हैं.
तमाम सम्भावनाओं और विश्लेषण के अलावे चम्पाई के पाला बदलने का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि हेमंत सरकार से बाहर आ चुके चम्पाई दादा चुनाव में ‘खेला खेल पायेंगे, इसकी सम्भावना काफी कम है. दादा को रोकने के लिए चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले ही हेमंत सरकार तमाम कील कांटे दुरुस्त कर चुके होंगे. वोट काउंटिंग के दौरान इस बार दादा का ‘कुदरा भूत’ काम नहीं आने वाला है क्योंकि यह ‘कुदरा भूत’ तब निवर्तमान सरकार के वशीभूत रहेगा.
तमाम मूल्यांकन के मूल में जिस तथ्य को रेखांकित किया जाना है, वह है कि सरायकेला विधानसभा में राजग के उम्मीदवार चम्पाई सोरेन होंगे ! सरायकेला में झामुमो की परम्परागत सीट को इंडी गठबंधन में कांग्रेस को मिल पायेगा ! यदि मिल भी गया तो क्या कंग्रेसी नेता केपी सोरेन अपने ही घर में सर्वमान्य होगें या केपी ही झामुमो की सदस्यता लेकर दावा प्रस्तुत करेंगे. भविष्य के इन प्रश्नों से बाहर इस तथ्य से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि झारखंड टाइगर को जाल में फंसाने के लिए इस बार एक चतुर शिकारी ही सफल हो पायेगा.