सरायकेला: झामुमो ने दिग्गज नेता और कोल्हान टाईगर पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद बड़े- बड़े राजनीतिक विश्लेषक अपने- अपने हिसाब से समीक्षा कर रहे हैं, हालांकि ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि चंपाई कोल्हान में जेएमएम की लंका को को कितना नुकसान पहुंचाएंगे. मगर सबसे पहले बात सरायकेला विधानसभा की कर लें.
सरायकेला विधानसभा सीट पर पिछले 20 साल से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अपराजेय रहे हैं. 1991 में पहली बार उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उस जमाने के दिग्गज झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और सिंहभूम के सांसद कृष्णा मार्डी की पत्नी मोती मार्डी को इस सीट से हराकर सबको चौंका दिया. उसके बाद साल 1995 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर भाजपा के पंचु टुडू को 15246 वोटो से हराया. अलग झारखंड राज्य बनने के बाद साल 2000 में बीजेपी लहर के कारण अनंत राम टुडू से वे 8783 वोटो से चुनाव हार गए. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2005 में भाजपा के लक्ष्मण टुडू को 882 वोटो से हराया. 2009 में भाजपा के ही लक्ष्मण टुडू को 3246 वोटो से हराया. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के गणेश महाली को 1115 और 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के ही गणेश महाली को 15667 वोटो से हराकर इस सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का झंडा बुलंद रखा. आपको बता दें कि यह दौर मोदी लहर का था, बावजूद चंपाई सोरेन ने इस सीट पर बीजेपी को एक अदद जीत के लिए तरसा दिया. इस दौरान वे एक बार मुख्यमंत्री और चार बार मंत्री रहे.
मगर अब हालात बदल चुके हैं. अचानक से राज्य की सियासत ने रंग बदल लिया है. जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी राज्य में वो हो गया है. नाटकीय घटनाक्रम के बाद चंपई सोरेन अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं. जिससे राजनीतिक विश्लेषकों का गणित बिगड़ गया है. अब वे सरायकेला विधानसभा के गणित का नया फार्मूला ढूंढ रहे हैं.
ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए चंपाई सोरेन की कमी को कौन पूरा करेगा इस पर मंथन शुरू हो चुका है. झामुमो में नेताओं की कोई कमी नहीं है मगर चंपाई के कद का नेता फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. इसी बीच पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से गम्हरिया के रापचा मैदान में भाजपा नेता वास्को बेसरा ने मुलाकात कर एक नई राजनीति को हवा दे दिया है. बास्को बेसरा ने भले इसे एक शिष्टाचार मुलाकात बताया मगर राजनीतिक जानकारों को इस शिष्टाचार मुलाकात के मायने समझते देर न लगी. चूंकि बास्को बेसरा का राजनीतिक इतिहास ही दल बदलू नेता का रहा है इस वजह से ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि झामुमो का रुख कर सकते हैं. धनबल और बाहुबल में उनको कोई चुनौती नहीं दे सकता इसमें कोई दो राय नहीं है. झामुमो के कोर वोटरों को वे कितने रिझा सकेंगे यह गौर करने वाली बात होगी. उनके दावेदारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2005 के विधानसभा चुनाव में वे सरायकेला विधानसभा से आजसू के टिकट से चुनाव लड़े और 15096 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे. वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में पाला बदला और खरसावां सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में उतरे और 27219 वोट से भाजपा के मंगल सिंह सोय ने उन्हें करारी शिकस्त दी. उसके बाद उन्होंने फिर सरायकेला का रुख किया और 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा. इसमें वे तीसरे स्थान पर रहे. उन्हें मात्र 6890 वोट मिले. उसके बाद उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम जॉइन किया फिर बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि इस बार अंदर ही अंदर वह विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे थे इसी बीच चंपई सोरेन के भाजपा में एंट्री होने के बाद न केवल बास्को बेसरा का समीकरण गड़बड़ाया बल्कि गणेश महाली और रमेश हांसदा भी चारों खाने चित्त हो गए हैं जैसे ही चंपई सोरेन ने पाला बदला वास्को बेसरा भी हेमंत सोरेन के संपर्क में आने की कवायद में जुट गए हैं. रापचा में उनकी हेमंत सोरेन से शिष्टाचार मुलाकात के यही मायने लग रहे हैं.
इधर भाजपा के दो और बड़े नेता गणेश महाली और रमेश हांसदा भी उधेड़बुन में नजर आ रहे हैं. वैसे तो दोनों ही नेता खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं, मगर सूत्रों की माने तो दोनों ही नेता झामुमो के संपर्क में हैं. इसके अलावा चौथा चेहरा जो चौंकाने वाला हो सकता है वह चेहरा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कालीपद सोरेन हैं.
केपी सोरेन भी संथाल के एक बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं. स्वच्छ छवि और शिक्षित होने के साथ सांसद जोबा मांझी के बेहद करीबी माने जाते हैं. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के ग्रामीण प्रभारी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जोबा माझी के जीत में अहम योगदान दिया. उनकी दिवंगत पत्नी ओलिभ ग्रेस कुल्लू राजनगर प्रखंड प्रमुख रहते दुनिया से चल बसीं. उन्होंने जेल सुपरिंटेंडेंट से सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति में कदम रखा था और पहके ही प्रयास में चुनाव जीतकर प्रखंड प्रमुख बनी थी. केपी सोरेन दो बार खिजरी विधानसभा और एक बार सरायकेला विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं, हालांकि तीनों ही बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. मगर उनकी गिनती एक साफ- सुथरे नेता के रूप में होती है. इनका पूरा परिवार शिक्षित है. एक पुत्र है जो डॉक्टर है. धनबल के साथ संथाल समुदाय पर इनकी पकड़ मजबूत होने के कारण यदि वे झामुमो का रुख करते हैं तो पार्टी उनके नाम पर विचार कर सकती है. हालांकि यदि गणेश महाली झामुमो का रुख करते हैं तो वे एक बड़ी चुनौती बीजेपी के लिए पेश कर सकते हैं, मगर फिलहाल इसके कयास ही लगाए जा रहे हैं.