india news viral editorial झारखंड की सियासत एकबार फिर से हिचकोले खा रही है. इसबार इसके केंद्र में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सबसे अनुभवी और कद्दावर नेताओं में शुमार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन हैं. एक ऐसा चेहरा जिसके इर्द- गिर्द न केवल झारखंड, बल्कि दिल्ली की राजनीति भी अचानक से घूमने लगी है. हालांकि इसकी शुरुआत खुद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने की है. जिसका खामियाजा भी आने वाले दिनों में पार्टी को भुगतना पड़ सकता है. यूं कह सकते हैं कि पार्टी एक बार फिर से टूट के कगार पर जा पहुंची है.
वैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा का यह पुराना इतिहास रहा है, कि जो भी नेता सोरेन परिवार से ऊपर उठा उसका राजनीतिक रूप से या तो पतन हो गया या वह दुनिया से रुखसत हो गया. ऐसे अनेकों नाम भरे पड़े हैं. इनमें सबसे पहला नाम सूरज मंडल का आता है. सूरज मंडल झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. उन्हें दिशुम गुरु शिबू सोरेन का सबसे विश्वास पात्र माना जाता था. आज वे हाशिये पर है. सूरज मंडल को करीब से जानने वाले बताते हैं कि जब सूरज मंडल का राजनीतिक कैरियर उफान पर था तभी उनके पर कुतर दिए गए और उनकी राजनीतिक धार को कुंद कर दिया गया. संथाल में शिबू सोरेन को स्थापित करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी.
इस फेहरिस्त में आजसू के संस्थापक और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले अध्यक्ष शहीद निर्मल महतो का भी नाम आता है. निर्मल दा ने महाजनी प्रथा और अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई थी. 8 अगस्त 1987 को उनकी हत्या जमशेदपुर के चमरिया गेस्ट हाउस के पास कर दी जाती है आज तक निर्मल महतो के हत्यारे बेनकाब नहीं हो सके हैं. इसी फेहरिस्त में जमशेदपुर के पूर्व सांसद सुनील महतो का नाम भी आता है. झारखंड मुक्ति मोर्चा में इनका कद काफी बड़ा हो चुका था. सांसद रहते 4 मार्च 2007 को एक फुटबॉल मैच के दौरान उनकी हत्या कर दी गई. आजतक सुनील महतो की हत्या क्यों हुई यह राज बरकरार है. ऐसे कई नाम हैं जिनकी हत्या के बाद उनके चेहरों के बल पर झारखंड मुक्ति मोर्चा कोल्हान से लेकर संथाल परगना तक खुद को स्थापित करने में कामयाब हुई. मगर कभी भी सत्ता या पार्टी की चाबी सोरेन परिवार से बाहर नहीं गया. सारे नेता सोरेन परिवार की चरण वंदना में डूबे रहे.
इसमें एक नाम चंपाई सोरेन का भी आता है. चंपाई सोरेन शिबू सोरेन के इतने बड़े भक्त थे जिनके बारे में लिखा जाए तो कलम की स्याही कम पड़ जाएंगे. कह सकते हैं कि चंपाई दा शिबू सोरेन के भरत की भूमिका में रहे. उनकी भक्ति की पराकाष्ठा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि लागभग चार दशकों तक वे सक्रिय राजनीति में रहते कई मौकों पर न केवल शिबू सोरेन को संभाला बल्कि पार्टी को टूट से भी बचाया. त्रेता के भरत ने तो 14 वर्षों तक प्रभु श्रीराम के खड़ाऊं की पूजा कर गद्दी संभाला मगर कलियुग के चंपाई रूपी भरत ने शिबू सोरेन के पूरे राजनीति बागडोर को अपने हाथों में लेकर उनके पुत्र हेमंत सोरेन का राज्याभिषेक करा दिया और इसे गुरुजी का गुरु दक्षिणा मानकर चुपचाप पार्टी की सेवा करते रहे. हालांकि इस दौर में कई ऐसे अवसर आये जब चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री बनते- बनते रह गए मगर उन्होंने हर मौके पर संगठन और पार्टी सुप्रीमो शिबु सोरेन को अहमियत दी. मगर बीते दिनों राज्य के बदले हालात में जब हेमंत सोरेन को सेना के जमीन खरीद- बिक्री के आरोप में ईडी ने हिरासत में लिया उसके बाद हेमंत सोरेन को एकमात्र चेहरा चंपाई सोरेन का नजर आया जिसपर वे आंख बंद कर भरोसा कर सकते थे. उन्होंने अपनी विरासत चंपाई सोरेन को सौंप दी और जेल चले गए. इधर चम्पाई सोरेन ने न केवल ईमानदारी पूर्वक सरकार चलाया बल्कि अपने कुशल नेतृत्व में लोकसभा चुनाव और गांडेय उपचुनाव में इंडिया गठबंधन को अभूतपूर्व सफलता के सूत्रधार भी बने. लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को चार सीटों पर प्रचंड जीत दिलाया तो गांडेय उपचुनाव में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को जीत दिलाई. इसके अलावा राज्य की जनता के लिए कई योजनाओं का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया. “झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना और शिक्षक नियुक्ति पत्र बांटने की योजना उनकी ही थी जिसे जेल से निकलने के बाद आनन- फानन में हेमंत सोरेन ने रुकवा दिया और चंपाई सोरेन को कुर्सी की चाबी सौंपने का दबाव बना दिया. मन मसोसकर चंपाई सोरेन ने बगैर किसी झल्लाहट के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपमान का घूंट पीकर सत्ता के साथ बने रहे. मगर अब उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर एक मार्मिक पोस्ट डालकर खलबली मचा दिया है जिसके बाद झारखंड की राजनीति में एक सूनामी की आहट सुनाई देने लगी है. नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गयी है मगर सस्पेंस बरकार है.
कभी चम्पाई के बीजेपी में जाने की तो कभी अपनी अलग राह चुनने की खबर आ रही है. फिलहाल वे तीन दिनों से दिल्ली में जमे हुए हैं. वैसे तो उन्होंने इसे निजी दौरा बताया मगर सूत्रों की मानें तो उनके दिल्ली में बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ गुप्तगू चल रही है. ऐसे में यदि उनकी बीजेपी में एंट्री होती है तो तय मानिए झारखंड की सियासत में एकबार फिर से भूचाल मचेगा और इसकी तपिश में लागभग सभी राजनीतिक दल झुलसेंगे. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी का होगा तो वह झारखंड मुक्ति मोर्चा को होगा, हालांकि भारतीय जनता पार्टी भी इससे अछूता नहीं रहने वाली है. इसमें तीन तीन पूर्व मुख्यमंत्री पहले से ही टकटकी लगाए बैठे हैं. ऐसे में चंपई सोरेन को पचा पाना इतना आसान नहीं होगा. हालांकि, बीजेपी के आंतरिक कलह की वजह से झारखंड में भाजपा कमजोर हुई है. यदि चंपई सोरेन की एंट्री पार्टी में होती है तब समीकरण में थोड़ा बदलाव जरूर आएगा और बीजेपी झारखंड में खासकर कोल्हान में फिर से वापसी कर सकती हैं. चंपई सोरेन का राजनीतिक जीवन बिल्कुल बेदाग रहा है और उनकी छवि दूसरे नेताओं की तुलना में आदिवासियों के बीच अलग है.
अब रही बात चंपई सोरेन के नफा- नुकसान की तो यदि वे भाजपा में जाते हैं तो बीजेपी उनका इस्तेमाल किस तरह करती है यह देखना दिलचस्प होगा. यदि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को हो सकता है, इसके लिए भाजपा के बड़े नेताओं को संयम बरतने की जरूरत होगी. हालांकि बीजेपी आलाकमान परिस्थितियों को समझ रही है. अब झारखंड के तीन बड़े नेताओं अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी और मधु कोड़ा तीनों ही झारखंड का नेतृत्व कर चुके हैं उन्हें मनाना और संगठन में उनकी भूमिका सुनिश्चित करना बीजेपी आलाकमान के लिए चुनौतियों भरा हो सकता है. पार्टी के जमीनी नेता और विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे नेताओं को भी झटका लग सकता है. यहां पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, मगर राजनीति के धुरंधर चंपई सोरेन सभी को साधने की क्षमता रखते हैं. बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ा मगर अपेक्षित सफलता नहीं मिली. अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा दोनों ही अपनी सल्तनत बचा पाने में नाकाम रहे. यही वजह है कि तीनों ही नेता चंपई सोरेन के मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, मगर कयास लगाए जा रहे हैं कि तीनों ही नेताओं की दिल्ली दरबार में गुप्त ग चल रही है.