चांडिल: एक पुरानी कहावत है कि “जिसके घर कांच के बने हों उसे पत्थर से नहीं खेलना चाहिए” ऐसा ही एक कहावत इन दिनों चांडिल से लेकर आदित्यपुर सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के कार्यालय में खूब हो रही है. जहां ईचागढ़ अंचल के आंशिक प्रभावित बाकोलतोड़िया गांव निवासी धूंदी देवी को निर्गत विकास पुस्तिका का अचानक से जिक्र शुरू हो गया है. विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर छोटे अधिकारी विकास पुस्तिका संख्या 538- 2004 को लेकर चर्चा करते सुने जा रहे हैं. संभावना जताई जा रही है कि परियोजना के प्रशासक इसकी जांच करा सकते हैं.
क्यों अचानक होने लगी विकास पुस्तिका संख्या 538- 2004 की चर्चा
दरअसल इसकी नौबत इसलिए आई क्योंकि इन दिनों चिलगु पुनर्वास स्थल में परियोजना के विस्थापितों और बंदोबस्ती धारकों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ है. इस विवाद में परियोजना और जिला प्रशासन के बीच रस्साकशी चल रही है. परियोजना उक्त भूखंड को अपना बता रहा है, जबकि जिला प्रशासन इसे बंदोबस्ती जमीन मानकर आवेदक की शिकायत पर विस्थापित कब्जाधारी के खिलाफ हाथ धोकर पड़ी है. इसके पीछे सरकार के आदेश का हवाला दिया गया है. अंचल से लेकर जिलाधिकारी मामले में गंभीरता दिखा रहे हैं. पिछले करीब एक हफ्ते से चिलगु पुनर्वास स्थल की मापी चल रही है, अबतक कोई सटीक निष्कर्ष सामने नहीं आया है. सूत्रों की मानें तो विकास पुस्तिका संख्या 538- 2004 धारक के पुत्र ने ही बंदोबस्त धारको को आगे कर तीस साल पुराने मामले को तूल दिलवा दिया. अब अपनी किरकिरी होता देख विभाग के आलाधिकारी विकास पुस्तिका संख्या 538-2004 की फ़ाइल खंगालने की तैयारी में जुट गए हैं ऐसी सूचना मिल रही है.
क्या कहता है नियम
सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के तहत चांडिल डैम निर्माण के लिए आंशिक प्रभावित गांवों में केवल भूमि अधिग्रहण करने का प्रावधान किया गया है और पूर्ण डूबी गांवों में भूमि के साथ- साथ घर, खलिहान, तालाब सबकुछ अधिग्रहण का प्रावधान है. परियोजना द्वारा आंशिक और पूर्ण डूबी गांव के विस्थापित को अलग अलग श्रेणी में रखा गया है और उन्हें अलग- अलग प्रकार की सुविधाएं एवं मुआवजा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है. वैसे जब धुंआ उठा है तो लपट दूर तक जाएगी. परियोजना के प्रशासक यदि इस मामले को गंभीरता से लेते हैं तो स्वर्णरेखा परियोजना में हुए भ्रष्टाचार की कलई खुल जाएगी और इसकी जद में कई नामचीन चेहरे भी सामने आएंगे.