खरसावां: मुहर्रम का महीना इस्लामी वर्ष का पहला महीना है. ये महीना हिजरत का महीना है. अल्लाह के पैगम्बर मोहम्मद स‐ ने फरमाया कि हिजरत इससे पहले के गुनाहों को मिटा देता है. जिस हिजरत के बाद इस्लाम को एक नई जिंदगी मिली. एक नई सल्तनत कायम हुई और इस्लाम फला- फूला एवं परवान चढा. इस कारण इस्लामिक इतिहास के लिहाज से इस महीने का एक अलग मुकाम है. इस महीने में नफिल के रोजे रखना सुन्न्त है. मोहम्मद स‐ ने कहा कि रमजान के रोजे के बाद सबसे बेहतरीन रोजा मुहर्रम का है. उक्त बाते खरसावां के बेहरासाई मौलाना मो आसिफ इकबाल रजवी ने कही.
उन्होने कहा कि यह वह दिन है जिससे अल्लाहतआला ने बनी इसराइल को उनके दुश्मनों से आजादी दी थी और इस खुशी में हजरत मूसा अ‐ ने रोजा रखा था. इसलिए मोहम्मद स‐ ने भी सहाबा ए इकराम को रोजा रखने का हुक्म दिया. मुहर्रम के रोजे को आशुरा का रोजा भी कहा जाता है. आशुरा का रोजा दसवीं मुहर्रम को रखा जाता है, लेकिन मोहम्मद साहब ने हुक्म दिया कि तुम नौ- दस या दस- ग्यारह मुहर्रम को रोजा रखो यानी दसवीं से एक दिन पहले या बाद में भी रोजा रख लिया करो क्योकि यह रोजा पिछले एक साल के गुनाहों को मिटा देता है.