चांडिल: आज जय पूरे भारत में जगन्नाथ का उद्घोष हो रहा है. ओडिशा के जगन्नाथ धाम से महाप्रभु जगन्नाथ जी की रथयात्रा निकल रही हैं. इसके अलावा देश के विभिन्न स्थानों पर रथयात्रा निकाली जा रही है. श्रद्धालु आज के दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं और जगन्नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. रथयात्रा का उत्साह और श्रद्धा देखने लायक होती हैं. पर, झारखंड का एक ऐसा रथयात्रा आज होने जा रहा है जो इससे पहले इतिहास में कहीं नहीं हुआ.
हम बात कर रहे सरायकेला- खरसावां जिले के चांडिल की. जहां साधु बांध मठिया आश्रम से रथयात्रा निकलती हैं. चांडिल में तीन दशक पहले चांडिल के स्थानीय लोगों ने मिलकर रथयात्रा शुरू किया था. लेकिन धीरे- धीरे आश्रम में जूना अखाड़ा ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया और सभी कार्यक्रम को अपने हिसाब से संचालित करने लगा. अब पिछले 15 वर्ष से जूना अखाड़ा के महंत विद्यानंद सरस्वती रथयात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं. हालांकि, स्थानीय लोगों के सहयोग से ही सभी धार्मिक आयोजन होते हैं, लेकिन इस बार की रथयात्रा चर्चा में है. रथयात्रा को लेकर आयोजनकर्ता विवादों में घिरते जा रहे हैं.
अब बात करते हैं आज शाम को चांडिल में निकलने वाली रथयात्रा की. जहां तीन अलग- अलग रथ पर महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा विराजमान होकर निकलने वाले हैं. इससे पहले जितनी रथयात्रा निकाली गई हैं, उसमें लकड़ी से निर्मित रथ का ही उपयोग होता आया है, लेकिन इस बार लोहे से निर्मित रथ पर महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा विराजमान होंगे. इतना ही नहीं लोहे से बनी रथों के पहिए पर टायर लगवा दिया गया है. इसके कारण चांडिल की रथयात्रा चर्चा में है.
अब बात करें जगन्नाथ पुरी की, तो वहां केवल शुद्ध लकड़ी से रथों का निर्माण किया जाता है. इतना ही नहीं केवल नीम की लकड़ी का ही उपयोग किया जाता हैं. यह जगजाहिर है कि जगन्नाथ पुरी धाम से बड़ा रथयात्रा का आयोजन देश में कहीं नहीं होता है. वहीं, जगन्नाथ पुरी धाम ट्रस्ट के पास इतने फंड हैं कि वह सोने और हीरे से रथों का निर्माण करवा सकती हैं, वावजूद जगन्नाथ पुरी धाम में हर साल नीम के लकड़ी का उपयोग किया जाता है. यहां चांडिल में आयोजनकर्ता द्वारा लोहे का रथ बनवा दिया गया है और उनमें विभिन्न प्रकार के केमिकल से बनने वाले टायर के पहिए भी लगवा दिया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार लोहे और टायर का उपयोग करके रथों का निर्माण करने से पहले आयोजनकर्ता ने स्थानीय लोगों तथा विद्वानों की सहमति भी नहीं ली है. वर्तमान समय में नीम के लकड़ी की कमी भी नहीं है और रथ निर्माण में सहयोग करने के लिए श्रद्धालु भी एक पैर पर खड़े रहते हैं. इसके बाद भी ऐसी क्या मजबूरी थी कि अशुद्ध लोहे और टायर का उपयोग करके महाप्रभु जगन्नाथ जी का रथ बना दिया गया है.
अब हम अपने पाठकों पर छोड़ देते हैं कि वह इस खबर पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे. पर अंतिम में आपके सामने कुछ सवाल छोड़ देते हैं, जिसका उत्तर आपको खोजना चाहिए. क्या यह सनातन धर्म और संस्कृति के विरुद्ध किया गया कार्य नहीं है ? क्या यह वर्षों पुरानी सनातन परंपरा के विरुद्ध नहीं है ? ऐसे ही धर्म के ठेकेदारों द्वारा हमारे सनातन संस्कृति और धर्म के विरुद्ध कार्य किया जाता रहेगा तो दुनिया में सनातन धर्म का सम्मान कैसे स्थापित होगा ? क्या ऐसे हिन्दुराष्ट्र बनेगा भारत ! जब जगन्नाथ पुरी धाम समेत देश के किसी भी कोने में रथ निर्माण में किसी प्रकार के धातु का उपयोग नहीं किया जाता हैं तो चांडिल साधु बांध मठिया आश्रम के आयोजकों ने ऐसा क्यों किया ? आयोजकों द्वारा परंपरा के विरुद्ध काम करने तथा मनमानी के कारण चांडिल बाजार के कई गण्यमान्य लोगों ने रथयात्रा से खुद को अलग कर लिया है. पिछले दिनों महाप्रभु जगन्नाथ जी के नवजीवन अनुष्ठान में अनेकों लोगों ने दूरी बना लिया था. वहीं, आज रथयात्रा के अवसर पर प्रसाद वितरण में भी काफी कम लोग ही पहुंचे. बता दें कि चांडिल में रथयात्रा करीब 75 साल पहले शुरू हुआ था. उस समय केवल एक ही रथ पर महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन शुभद्रा विराजमान होते थे. उसके बाद तीन दशक पहले ब्रह्मलीन परमानंद सरस्वती महाराज अनेकों वर्ष तक तीन रथ चलाने का संकल्प साधना में खड़े रहे, जब तीन रथ का यात्रा शुभारंभ हुआ तो उन्होंने आसन ग्रहण किया था.