JHARKHAND DESK झारखंड अलग राज्य गठन के बाद पहली सिपाही बहाली (2005) के करीब बीस साल बाद भी अनुसूचित जाति, ओबीसी और सामान्य वर्ग के सिपाहियों को न तो प्रमोशन का लाभ मिला है न ही आर्थिक लाभ मिल रहा है, जिससे सिपाहियों में घोर नाराजगी है. हालांकि 10 मई 2005 तक बहाल हुए अनुसूचित जनजाति वर्ग के कांस्टेबलों को प्रोन्नति मिल चुकी है. इतना ही नहीं 2005 के आईपीएस आज आईजी बन चुके हैं और 2012 बैच के दारोगा इंस्पेक्टर बन चुके हैं. बता दें कि राज्य में कुल सिपाहियों की संख्या करीब 30 हजार है, जबकि अधकारियों की संख्या लागभग 40 हजार है.
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पुलिस सूत्रों की मानें तो प्रमोशन नहीं मिलने से कांस्टेबलों में घोर निराशा है. बताया जा रहा है कि कांस्टेबलों को उम्मीद जगी थी कि लोकसभा चुनाव के बाद उनके प्रमोशन पर सरकार विचार कर सकती है, मगर लोकसभा चुनाव के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया है. अब सरकार विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी में जुट गई है. बताया जा रहा है कि विभाग के वरीय अधिकारी मामले में न दिलचस्पी दिखा रहे हैं न सरकार ही सिपाहियों के मामले में गंभीर है. पिछले रघुवर दास की सरकार ने कनीय से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के अधिकारियों को 13 महीने का वेतन देने की घोषणा की थी, जिसे हेमंत सरकार ने 20 दिन के सीएल का लाभांश देते हुए लागू किया, मगर कांस्टेबलों का कहना है कि उन्हें प्रमोशन का लाभ दिया जाए, या उसके एवज में आर्थिक लाभ दिया जाए, जैसा बिहार में दिया जा रहा है.
*पुलिस मेंस एसोसिएशन के प्रति नाराजगी*
नाम नहीं छापे जाने की सूरत में एक कांस्टेबल ने बताया कि राज्य के सिपाहियों की दुर्दशा पर पुलिस मेंस एसोसिएशन के अधिकारी मौन हैं. इसको लेकर सिपाहियों में नाराजगी व्याप्त है. चुनाव के वक्त बड़े- बड़े वादे कर सत्ता में आते हैं उसके बाद प्रदेश एसोसिएशन के साथ मिलकर सरकार की चापलूसी में जुट जाते हैं. उन्होंने बताया कि हर कार्यक्रम के जिला से चंदा वसूली की जाती है जिसका उपयोग अधिकारियों और सरकारी मशीनरी को खुश करने में किया जा रहा है. हालांकि इस संबंध में सरायकेला- खरसावां पुलिस मेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश चंद्र पाड़ेया ने बताया कि प्रदेश महासंघ मामले को लेकर गंभीर है. कांस्टेबलों की नाराजगी जायज है. संभवतः इसी महीने संघ का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी समस्याओं से अवगत कराएगा. वैसे प्रमोशन की उम्मीद लगाए बैठे राज्य के सिपाहियों को विभाग के अधिकारियों से ज्यादा उम्मीद अब मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन से बंध गई है.
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