DESK झारखंड के सभी 14 लोकसभा सीटों पर इस बार मुकाबला रोचक होने जा रहा है. हर सीट हॉट होता जा रहा है. इसमें सबसे ज्यादा रोचक मुकाबला सिंहभूम संसदीय सीट पर होने के आसार हैं. इस सीट को साधने खुद प्रधानमंत्री को उतरना पड़ा. इसी सीट से पीएम ने झारखंड के लोकसभा चुनाव के प्रचार की शुरुआत की. 13 मई को यहां वोट डाले जाएंगे. करीब 14.50 लाख मतदाता प्रत्याशियों के जीत पर अपनी मुहर लगाएंगे.
बीजेपी इस सीट पर पिछला चुनाव हार चुकी है. यहां कांग्रेस प्रत्याशी रही गीता कोड़ा ने प्रचंड मोदी लहर में जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया था. इस बार वही गीता कोड़ा बीजेपी की उम्मीदवार हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि गीता 2019 में जनता के बल पर चुनाव जीती थी इसबार वे मोदी के बल पर चुनावी बैतरणी पार करने की बात कर रही है. एक नहीं दसियों बार गीता कोड़ा यह बोल चुकी हैं कि उन्हें मोदी पर भरोसा है मोदी जी ही उन्हें जीत दिला सकते हैं. मोदी मतलब बीजेपी का कैडर वोट और आरएसएस. उधर गीता कोड़ा के साथ जुड़े कुछ ऐसे कांग्रेसी जिन्हें गीता कोड़ा से मतलब है पार्टी से नहीं. वे गीता कोड़ा के इर्द- गिर्द इस तरह का आभामंडल बना रखे हैं जो बीजेपी और आरएसएस के सिंहभूम स्तरीय नेताओं को गीता कोड़ा तक पहुंचने से रोक रहे हैं. ऐसे में क्या वाकई बीजेपी का कैडर वोट और आरएसएस गीता कोड़ा के साथ खड़ा होगा इसपर शंशय बना हुआ है.
आपको बता दें कि यह वही लोकसभा है जहां मोदी के दौर में एक भी विधानसभा सीट पर बीजेपी का कोई विधायक नहीं है. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत सरायकेला, चाईबासा, मनोहरपुर, जगन्नाथपुर, मंझगांव और चक्रधरपुर विधानसभा आते हैं. एक जगन्नाथपुर को छोड़ सभी पांच सीटों पर झामुमो का कब्जा है. इन्हीं के बल पर पिछले लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा ने बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को करीब 72155 वोट से पराजित किया था. जबकि झारखंड की 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी के लिए दुर्भाग्य कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पिछले दस सालों में बीजेपी अपना बेंच स्ट्रेंथ तैयार कर पाने में विफल रही है. हां इस दौर में बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक दल बनने का गौरव जरूर हासिल कर चुकी है.
अब बात करते हैं क्या गीता कोड़ा को बीजेपी और आरएसएस का कैडर वोट मिलेगा ? इसे समझने के लिए थोड़ा अतीत में चलते हैं. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत सरायकेला विधानसभा सीट एक ऐसी सीट मानी जाती है जहां बीजेपी सबसे मजबूत है. मगर पिछले 10 साल से भाजपा यहां एक अदद जीत को तरस गई है. इसका मुख्य कारण प्रत्याशी का चयन रहा है. बीजेपी ने यहां दो बार गणेश महाली को चुनावी मैदान में उतारा दोनों बार उनकी हार हुई. आदित्यपुर नगर निगम के करीब तीन लाख मतदाता जिसे बीजेपी अपनी जागीर समझती है वे भी महाली को जीत नहीं दिला सके. पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार और आदित्यपुर नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर भाजपा के उम्मीदवार काबिज थे. उस वक्त यहां ट्रिपल इंजन की सरकार थी, बावजूद इसके आदित्यपुर से गणेश महाली करीब 40 हजार मतों से पिछड़े थे जो अंततः महाली को हार के मुहाने पर ले गया. वे करीब 15 हजार मतों से झामुमो के कद्दावर नेता चंपाई सोरेन से हार गए थे. अंदारखाने की मानें तो आरएसएस गणेश महाली के रूप में प्रत्याशी नहीं चाहती थी. अब वही दुविधा इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी और आरएसएस के कैडर वोटरों में नजर आ रही है. भले उन्हें मोदी चाहिए मगर उनके अंदर इस बात की टीस झलक रही है कि पार्टी आलाकमान ने अपनों से ज्यादा उसे तरजीह दी जो गैर थी. इसके अलावा आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में गीता कोड़ा के चुनावी रथ की कमान आदित्यपुर नगर निगम के पूर्व मेयर और उप मेयर को सौंपी गई है जिसे जनता नकार चुकी है. उनके कार्यकाल में यहां की बड़ी आबादी पानी, साफ- सफाई, सड़क और जलजमाव से त्रस्त रही. आज भीषण गर्मी में यहां की जनता पानी के लिए त्राहिमाम कर रही है. इसके लिए खुद गीता कोड़ा भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे क्षेत्र की सांसद थीं. उनके आधा दर्जन प्रतिनिधि इसी क्षेत्र में प्रतिनियुक्त थे बावजूद इसके क्षेत्र की जनता मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसती रही. यही नाराजगी गीता कोड़ा के लिए भारी पड़ सकती है और यही कारण है कि गीता कोड़ा अपनी उपलब्धियों से ज्यादा मोदी की गारंटी का बखान कर रही हैं. वैसे समूचे सिंहभूम संसदीय सीट की अगर बात करें तो गीता कोड़ा जनता को अपने कार्यकाल में किए गए एक भी उपलब्धि बता पाने में विफल साबित हो रही है. इसके अलावा उनके ऊपर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी होने का कलंक भी लगा हुआ है. जिनके ऊपर करीब 400 करोड़ के घोटाले का आरोप है. ये अलग बात है कि उक्त आरोप के बाद भी पिछले लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा ने इस सीट पर जीत हासिल किया था, मगर तब झामुमो उनके साथ थी.
वैसे अब वक्त का पहिया घूम चुका है और चंपाई सोरेन आज सूबे के मुखिया हैं. चंपाई सोरेन सरायकेला विधनसभा से विधायक हैं. इस वजह से सिंहभूम सीट पर सीएम की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी. गीता कोड़ा से मुकाबले के लिए इंडिया गठबंधन ने झामुमो नेत्री और पांच बार मनोहरपुर की विधायक, तीन बार सूबे की मंत्री रह चुकी जोबा मांझी को उतारा है. बेदाग छवि की नेत्री जोबा माझी हर चुनावी सभा में जनता के दम पर चुनावी मैदान में उतरने की बात कर रही है. जोबा यहां की मूलभूत समस्याओं की बात कर रही है. वे आदिवासी नब्ज़ को टटोलकर पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जिक्र कर रही है. वैसे हार- जीत जनता जरूर तय करेगी मगर झामुमो ने दिलेरी दिखाते हुए अपने उम्मीदवारों पर आस्था दिखाया और कहीं भी बाहरी प्रत्यशी को टिकट नहीं दिया जो दर्शाता है कि झामुमो को बाहरी से ज्यादा अपने कैडरों पर भरोसा है और यही उसे मुकाबले में बराबर लाकर खड़ा कर दिया है.