चांडिल/ Sumangal Kundu (Kebu) आदिवासी नववर्ष के अवसर पर चांडिल अनुमंडल के आदिवासी समुदाय के लोगों ने सेंदरा यात्रा निकाली. इस यात्रा में युवा, महिला, बड़े बुजुर्ग सभी शामिल थे. इस दौरान युवाओं ने तीर कमान, तलवार, फारसा, टांगी इत्यादि पारंपरिक हथियार अपने हाथों में लिया हुआ था. वहीं, सभी महिला व पुरूष अपने आदिवासी परिधान में शामिल थे.
सेंदरा यात्रा चांडिल प्रखंड के खुदियाडीह स्थित दिशोम जाहेरगाढ़ से चौका मोड़ होते हुए नेशनल हाईवे से मुखिया होटल पहुंची. वहीं, मुखिया होटल से डैम रोड होते हुए चांडिल चौक बाजार होते हुए गोलचक्कर स्थित दिशोम जाहेरगाढ़ में संपन्न हुआ. इस बीच जगह- जगह महिलाओं व पुरुषों ने आदिवासी बाहा गीतों पर पारंपरिक नृत्य किया.
इस दौरान पूरे कार्यक्रम में बिरसा मुंडा अमर रहे, सिदो- कान्हू अमर रहें, तिलका मांझी अमर रहें, चांद- भैरव अमर रहें, फूलो- झानो अमर रहें, आदिवासी एकता जिंदाबाद, एक तीर एक कमान- सभी आदिवासी एक समान इत्यादि के नारे लगाए गए. विभिन्न प्रकार के नारे और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन से चौका मोड़, डैम रोड, चांडिल बाजार, गोलचक्कर गूंज उठा. आज इस सेंदरा यात्रा में शामिल आदिवासी समुदाय के लोग बड़े ही उत्साह में थे और अपने नववर्ष का स्वागत किया. कार्यक्रम में चांडिल अनुमंडल के विभिन्न आदिवासी संगठनों के लोग भी शामिल थे.
सेंदरा यात्रा में मुख्य रूप से शामिल झामुमो के वरिष्ठ नेता एवं स्वच्छ चांडिल- स्वस्थ चांडिल के संस्थापक सुखराम हेम्ब्रम ने सभी लोगों को नववर्ष की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा कि सदियों से आदिवासी समाज में सेंदरा की परंपरा चली आ रही हैं. यह हमारी परंपरा का हिस्सा है, इसका निर्वहन करना जरूरी है. उन्होंने कहा कि इस आधुनिक युग में सेंदरा के महत्व को युवा पीढ़ी को जानना जरूरी है. उन्होंने कहा कि सदियों से आदिवासी समाज सेंदरा करके अपने नववर्ष का स्वागत करते हैं. सरहुल पर्व और उसके बाद सेंदरा से प्रकृति संरक्षण का संदेश देने का काम किया जाता हैं, लेकिन आधुनिक युग में लोग अपनी इस परंपरा को भूल रहे हैं.
सुखराम हेम्ब्रम ने कहा कि पहले की तुलना में अब जंगलों में जानवरों की संख्या कम हो गई हैं. आदिवासी समाज भी यह समझती हैं कि जानवरों को भी जीने का अधिकार है लेकिन परंपरा का निर्वहन भी जरूरी है, इसलिए सांकेतिक सेंदरा यात्रा निकालकर अपना परंपरा निर्वहन किया गया. उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में कितने भी परिवर्तन हो जाए, लेकिन आदिकाल से चली आ रही आदिवासियों की परंपरा और सभ्यता से आज भी बेहतर जीवन यापन करने की शिक्षा मिलती हैं. सेंदरा का अर्थ केवल जानवरों की हत्या नहीं माना जाता है, बल्कि इसके माध्यम से लोगों की सुरक्षा और शांति व्यवस्था स्थापित करने का संदेश दिया जाता है. आदिकाल में जब इंसानों के सामने किसी न किसी रूप से कोई विपत्ति सामने आता था, तब एकमात्र आदिवासी समाज ही है जो मानव जाति की रक्षा के लिए सामने आकर लड़ाई लड़ते थे. जब भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी गई, तब भी आदिवासियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था, आजादी की लड़ाई में अनगिनत आदिवासी योद्धाओं ने अपना जीवन बलिदान दिया है. वहीं, अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में आदिवासी समुदाय के योगदान और संघर्ष को पूरा देश जानता है. उन्होंने कहा कि हमें अपने योद्धाओं के स्मृति को सदैव याद रखने की जरूरत है. अपने योद्धाओं के संघर्ष भरे जीवनकाल से प्रेरित होकर समाज के लिए काम करना ही मूल कर्तव्य है.