चाईबासा/Jayant Pramanik आंबेडकराईट पार्टी ऑफ इंडिया (एपीआई) के सिंहभूम लोकसभा प्रभारी धीमान रामहरि गोप ने बुधवार को झारखंड सरकार को एक पत्र लिखकर झारखंड में यथाशीघ्र जातीय सर्वेक्षण करवाकर जनसंख्या के अनुपात में सभी वर्गों को सेवाओं एवं लाभ के पदों पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किए जाने की मांग की है. बता दें कि विगत वर्ष बिहार सरकार ने भी जातीय सर्वेक्षण करवाकर बिहार में सभी वर्गों को जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया है. इसके बाद से ही झारखंड में भी बिहार के तर्ज पर जातीय सर्वेक्षण करवाने का मांग हो रही थी.
पत्र में लिखा है कि जाति जनगणना अंतिम बार 1931 में की गई थी, हालांकि 2011 में जाति जनगणना करवाई गई लेकिन इसे अब तक आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया.1931 के जनगणना के अनुसार अन्य पिछड़ा वर्गों की जनसंख्या लगभग 52% आंकी गई थी लेकिन इसके पश्चात कोई भी जातीय आंकड़ा किसी भी सरकार के पास नहीं है. इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि चाहे केंद्र हो या राज्य सरकार सभी वर्गों के लिए उपयुक्त नीतियों का निर्धारण एवं क्रियान्वयन कोई भी सरकार नहीं कर पा रही है जिसके कारण आज भी बहुत बड़े जनसंख्या को उसके अधिकारों से वंचित कर गंभीर दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है. इसलिए राज्य सरकार को यथाशीघ्र जातीय सर्वेक्षण करवाने के पश्चात सभी वर्गों को सेवाओं एवं लाभ के पदों पर जनसंख्या के अनुपात में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करनी चाहिए. विगत 17 मार्च 2023 को झारखंड सरकार ने जिलावर नियुक्तियों के लिए आरक्षण रोस्टर तैयार किया था जिसमें लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी, दुमका और पश्चिमी सिंहभूम में अन्य पिछड़ा वर्गों को 0% तथा सभी 24 जिला में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% का आरक्षण निर्धारित किया है जबकि राज्य में ओबीसी की जनसंख्या लगभग 40% से अधिक है और सामान्य वर्गों की जनसंख्या मात्र 10% से भी काम है बावजूद इसके 40% आबादी वाले पिछड़ा वर्गों को अपने ही राज्य के सात जिलों में 0% आरक्षण देना बिलकुल न्याय संगत प्रतीत नहीं होता है.
वहीं हाल ही में झारखंड पुलिस की भर्ती प्रक्रिया चल रही है जिसमें लगभग 4000 पदों पर भर्ती होनी है लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि पश्चिमी सिंहभूम जैसे आदिवासी बहुल जिला में आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए पद शुन्य कर दिया गया है. ऐसे ही पूरे राज्य में आदिवासियों के 10 जिले, अन्य पिछड़ा वर्ग के 13 जिले और अनुसूचित जातियों के 10 जिले शून्य कर दिया गया है, जबकि राज्य के अंदर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्गों की जनसंख्या लगभग 90% है बावजूद इन वर्गों को हमेशा की तरह झारखंड सरकार ने भी उनके मौलिक अधिकारों और संवैधानिक प्रतिनिधित्व से वंचित करने का प्रयास कर रही है. इसीलिए सरकार राज्य में जाति सर्वेक्षण करवाकर जनसंख्या के अनुपात में सभी वर्गों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करे ताकि राज्य के अंदर सभी सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्रों में जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सके.