DESK झारखण्डी भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) के मुखिया टाईगर जयराम महतो आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज कराने की जुगत में जुटे हैं, मगर उनके संगठन से जुड़े कुछ बदमिजाज कार्यकर्ता उनकी छवि को बिगाड़ने में तुले हैं.
हर मामलों में अपनी टांग फंसाकर उनके कार्यकर्ता मामले को बाहरी- भीतरी का तूल देकर सामाजिक समरसता बिगाड़ने में जुटे हैं. न उनके कार्यकर्ताओं में भाषाई शालीनता नजर आती है न ही समाज के मूल- मान्यताओं के दायरे में रहकर बयानबाजी का ढंग नजर आता है. जयराम महतो मुद्दों पर आधारित राजनीति से भटक रहे हैं. झारखंड में खतियानी आंदोलन को हवा देकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार जरूर कर ली है मगर इसमें जब उनका मुकाबला राजनीति के दिग्गजों से होगा तो उन्हें बुरी तरह से पराजित होना पड़ सकता है. बात- बात में बाहरी- भीतरी का मुद्दा बनाकर उनके कार्यकर्ता किसी से भी उलझ रहे हैं और जयराम मामले में चुप्पी साधे हुए हैं जो उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है. उन्माद सही है, मगर उन्माद की आड़ में हर किसी को कटघरे में खड़ा करना सही नहीं है. ये इतर है कि जयराम महतो समय की नाजकतता को भांप चुके हैं और वे अब इम्तिहान की तैयारी में जुटे हैं और अपनी जमीन पर फसल बोने की रणनीति तैयार कर रहे हैं, मगर लोकतंत्र की खेती में जनता कीटनाशक भी होता है और कीट भी, इसे ध्यान में रखना होगा. ऐसे में टाइगर जयराम महतो को अपने कार्यकर्ताओं पर कंट्रोल करने की जरूरत है अन्यथा उनकी खेती को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.