आदित्यपुर: सरायकेला- खरसावां जिले के आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही और स्वस्थ्य विभाग के ढुलमुल रवैये की वजह से एक नवजात जिसने दुनिया का हवा भी नहीं देखा आज करीब डेढ़ महीने बाद दम तोड़ दिया.
यूं कहें तो सरकारी मशीनरी की वजह से बच्चे ने दम तोड़ दिया. इधर आक्रोशित परिजन शनिवार को बच्चे के शव को लेकर थाना पहुंचे और शहरी स्वस्थ केंद्र के नर्सों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. साथ ही सिविल सर्जन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.
*क्या है मामला*
दरअसल बीते अक्टूबर महीने की 15 तारीख को आदित्यपुर रेलवे कॉलोनी हरिजन बस्ती निवासी मनोज मुखी अपनी गर्भवती पत्नी साहिबा मुखी को प्रसव पीड़ा होने के बाद आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव के लिए शाम करीब 5:30 बजे के आसपास पहुंचा. जहां डॉक्टर की गैरमौजूदगी में नर्सों ने प्रसव कराया, मगर बच्चा गर्भवती के पेट में ही फंस गया काफी प्रयास के बाद आधी रात को किसी तरह महिला का प्रसव कराया गया. हैरान करनेवाली बात ये है कि इस दौरान किसी भी डॉक्टर ने गर्भवती की सुध नहीं ली, जबकि स्वास्थ्य केंद्र में तीन- तीन डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति है. आनन- फानन में नर्सों ने बच्चे को मेडिनोवा नर्सिंग होम ले जाने की सलाह दी. मरता क्या न करता परिजन नर्सों के कहने पर बच्चे को मेडिनोवा नर्सिंग होम ले गए. यहां आयुष्मान कार्ड के तहत बच्चे को भर्ती नहीं लिया गया, जिसके बाद परिजन उपायुक्त और सिविल सर्जन के पास शिकायत लेकर पहुंचे. उपायुक्त के निर्देश पर सिविल सर्जन ने पहल की और मेडिनोवा प्रबंधन को बच्चे को भर्ती लेने और इलाज करने का निर्देश दिया. जहां पिछले करीब एक महीने आयुष्मान योजना के तमत बच्चे का ईलाज डॉक्टर राजेश कुमार की देखरेख में किया गया. है. बच्चे की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती गयी अंततः मेडिनोवा के डॉक्टरों ने बच्चे को रांची के किसी निजी नर्सिंग होम ले जाने की नसीहत दी. जहां इलाज के क्रम में शनिवार को बच्चे ने दम तोड़ दिया.
*परिजनों का आरोप*
बच्चे के पिता ने बताया कि उसके पास पैसे नहीं थे. इसी वजह से सरकारी अस्पताल में पत्नी को प्रसव के लिए लाया, मगर यहां के नर्सों की लापरवाही की वजह से बच्चे की जान चली गई. जबतक आयुष्मान का कोटा समाप्त नहीं हुआ तबतक मेडिनोवा में ईलाज चलता रहा, जब सीमा पार हो गया बच्चे को रांची रेफर कर दिया गया. सिविल सर्जन ने भी सुध नहीं ली.
*कैसे सरकारी सिस्टम पर जगे भरोसा, कितना सुरक्षित संस्थागत प्रसव*
इस मामले ने साफ कर दिया है कि संस्थागत प्रसव को लेकर बड़े- बड़े दावे करने वाली स्वास्थ्य विभाग आज भी महिलाओं के सुरक्षित प्रसव कराने को लेकर गंभीर नहीं है. आदित्यपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र में संस्थागत प्रसव के नाम पर भले दो – दो डॉक्टरों के साथ नर्सों की तैनाती है, मगर डॉक्टर सरकारी मशीनरी का वो हिस्सा हैं जिन्हें मानवीय संवेदना से कोई लेनादेना नहीं और नर्स को इसी में खुशी मिलती है कि किसी तरह से बच्चे का प्रसव हो जाये और उन्हें नजराना मिल जाए, मगर जिस परिवार पर मुसीबत आए उसे सहारा कौन देगा ये बड़ा सवाल है. बहरहाल समय रहते यदि सरकारी मशीनरी सक्रिय नही हुई तो ऐसे कितने बच्चों की बलि चढ़ जाए कहना मुश्किल है.