आदित्यपुर: एसपी के निर्देश पर साइकिल से बालू ढोने वालों के खिलाफ आदित्यपुर की पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कुछ लोगों को हिरासत में लिया है. जिससे उनके परिजनों के समक्ष रोजी- रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. उनके परिवार के सदस्य दो दिनों से थाने का चक्कर काट रही है. मगर ऊपर से आदेश का हवाला देते हुए थानेदार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. हताश/ परेशान महिलाओं ने अब जिला मुख्यालय का रुख किया है.
दरअसल देशभर में इन दिनों एनजीटी कानून प्रभावी है. इसके तहत नदियों से बालू उठाव और परिवहन दोनों बंद हैं. यदि ऐसा करते कोई पकड़ा जाता है तो उनके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है.
सरायकेला- खरसावां जिले में भी अवैध रूप से बालू खनन और परिवहन पर रोक है. जिले की सड़कों पर सरपट दौड़ते हाइवा से अवैध बालू परिवहन के कई मामले सामने आते रहे हैं. बालू माफिया रात के अंधेरे में हाइवा से बालू परिवहन कर रहे हैं. ये सभी बड़े रसूखदार सेठ हैं इनपर पुलिस और खनन विभाग की नजर नहीं पड़ती है.
थाने में इंसाफ की आस में बैठी महिलाएं
दूसरी तरह ये तस्वीर ये है इसमें वैसी आदिवासी महिलाएं हैं जिनका रोजगार बालू से जुड़ा है. ये महिलाएं नदियों से बालू बोरे में भरती हैं और इनके पति घरों तक बालू आपूर्ति करते हैं, जिससे इनका गुजारा चलता है.
दोनों तस्वीरों की दो कहानियां हैं, मगर पुलिसिया डंडा एक पर ही क्यों ! ये बड़ा सवाल है. यहां ये बताना जरूरी है कि ये सभी आदिवासी महिलाएं हैं. इनके पास रोजगार का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. यही वजह है कि पुलिसिया कार्रवाई के बाद ये आदित्यपुर थाने में अपने पेट की आग का समाधान मांगने जुटी है.
नदी से बोरे में बालू उठाव करते आदिवासी परिवार
झारखंड सरकार दावा करती है कि यहां आदिवासियों की सरकार है. मगर सरकार के उन दावों की हकीकत ये आदिवासी महिलाएं खोल रही है. जहां उनके जल- जंगल और जमीन से थोड़ा सा खनिज उठाने की इन्हें इतनी बड़ी सजा मिल रही है. जबकि खान माफिया यहां के खनिज संपदाओं को लूटकर देश और दुनिया में भेज रहे हैं. जिसपर सरकार और सरकारी तंत्र मेहरबान है, ऐसा क्यों ? बहरहाल इन आदिवासी महिलाओं को थाने से तो इंसाफ नहीं मिला अब इन महिलाओं ने जिले के उपायुक्त और एसपी के दरबार का रुख किया है. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या जिलाधिकारी और जिला पुलिस कप्तान इन पर मेहरबान होते हैं, या वहां भी इन्हें निराशा हाथ लगती है.