सरायकेला : अविभाजित बिहार के समय से ही अंतिम सर्वे सेटलमेंट के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित करने का प्रावधान रहने के बावजूद झारखण्ड में अबतक स्थानीयता परिभाषित नहीं होना ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं का षड्यंत्र है. उक्त बातें शुक्रवार को हूल दिवस के अवसर झारखण्ड आंदोलनकारी मंच के मुख्य संयोजक श्री धनपति सरदार ने एक प्रेसवार्ता के दौरान कहीं उन्होंने आगे कहा कि बिहार सरकार के तत्कालीन श्रम एवं नियोजन विभाग के पत्र के आलोक में स्थानीय नीति का आधार जिला को ही माना गया है.
उन्होंने कहा कि उक्त जिले में पिछले सर्वे सेटलमेंट रिकॉर्ड में जिनका नाम या पूर्वजों के नाम दर्ज हैं उन्हें ही जिला के दायरे में स्थानीय माना गया है. इसी आदेश के आधार पर अविभाजित बिहार के समय ही स्थानीयता परिभाषित कर दी गई है और वर्तमान में बिहार में भी इसी आधार पर स्थानीय नीति तय की गई है. कुल मिलाकर यह स्थानीय नीति पूर्ण रूप से विधिसम्मत एवं सर्वमान्य है. बावजूद इसके बीते बाइस सालों में झारखण्ड की स्थानीयता परिभाषित नहीं किया जाना ब्यूरोक्रेट्स और कुछ बाहरी नेताओं की सोची-समझी साजिश है.
श्री सरदार ने आगे कहा कि अंतिम सर्वे सेटलमेंट के आधार पर स्थानीय नीति का विरोध वही लोग कर रहे हैं जो बाहर से आकर बसे हैं। उनकी मंशा दोहरा लाभ लेने की है. सूबे के शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन एवं राज्य सरकार की नौकरियों में इसकी बानगी लगातार देखने को मिली है. झारखण्ड सरकार के कार्मिक विभाग के नियमों के कठोरता से अनुपालन नहीं होने से झारखण्डियों का व्यापक हित प्रभावित हो रहा है. सरकार को चाहिए कि इस पर तत्काल संज्ञान लेते हुए यथाशीघ्र स्थानीय नीति तय कर देना चाहिए. मौके पर राजेश मुंडारी, राजकिशोर लोहार,हरिचरण पांड्या,सेलॉय बानरा, महेंद्र जामुदा, लखींद्र पूर्ति, वीरेंद्र पांड्या समेत अन्य लोग उपस्थित थे.