Bipin Varshney/ आषाढ़ के महीनों में ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पहले खेत गुलजार हुआ करते थे, मिट्टी की जुताई से लेकर धान के बिचड़े की रोपाई तक में किसान मशगूल रहते थे, वहीं इस बार मानसून की लुकाछिपी ने ना सिर्फ उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है, बल्कि किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैं.
अपने खेतों में फसल लगाने के लिए उनकी इंतजार की घड़ियां लंबी होती जा रही हैं, लेकिन आसमान में काले बादल तो रोज आशा के दीप जला रहे हैं. मगर इन बादलों से वर्षा की बूंदे धरती तक आकर धरती की प्यास बुझाने में सफल नहीं हो पा रही हैं. नतीजा यह है कि सूखे पड़े खेत पूरी तरह सूने नजर आ रहे हैं. वहां ना तो किसानों के हल- बैल, ना ट्रैक्टर और ना ही मजदूर नजर आ रहे हैं. इसकी वजह से किसानों में किसी प्रकार का उत्साह भी नजर नहीं आ रहा है.
कांड्रा और आसपास के क्षेत्रों में अभी तक ना तो खेतों की जुताई हो पाई है ना ही इन खेतों में जल की एक बूंद का अस्तित्व नजर आ रहा है. यही हाल पहाड़ी नालों और तालाबों का भी है. आमजन को जल उपलब्ध कराने वाले यह जल स्रोत आज स्वयं जल की अभिलाषा में दिन गिनते नजर आ रहे हैं. पूछे जाने पर ग्रामीणों ने बताया कि अब तक खेतों की जुताई पूरी हो चुकी होती है और धान के बिचड़े लगाने का काम शुरू हो जाता है. मगर इस बार मौसम की बेरुखी ने उनके माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. अगर एक पखवाड़े में बारिश नहीं होती है तो फिर किसानों को सूखे के हालात का सामना करना पड़ सकता है. अनावृष्टि से साग- सब्जी लगाने वाले किसानों की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं. भूमिगत जल का स्रोत काफी नीचे चला गया है, जिससे क्षेत्र के अधिकांश चापाकल दम तोड़ चुके हैं. ऐसे में जब लोगों को पीने के लिए पानी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है तो खेतों की सिंचाई कैसे संभव हो ?
मालूम हो कि क्षेत्र के किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर है. सिंचाई का कोई और वैकल्पिक स्रोत नहीं होने की वजह से अब धीरे- धीरे खेतीवाड़ी से किसानों का मन भरने लगा है और वे किसानी करने के बजाय दैनिक मजदूरी कर अपने परिवार का पेट भरना मुनासिब समझते हैं. सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले पालूबेड़ा ग्राम निवासी किसान लुगु राम सोरेन ने बताया कि प्रतिदिन एसएमएस के द्वारा अगले दो तीन दिन घंटों में भारी बारिश होने की सूचना प्रसारित की जाती है. लेकिन यह सब बिल्कुल फिजूल साबित हुई है और अब इस वर्ष किसान खेतों में पूंजी लगाने से कतरा रहे हैं.