सरायकेला/ Pramod Singh मंगलवार को परंपरागत रथ यात्रा शुरू हो गया. भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ मौसी बाड़ी के लिए निकल गए है. मंगलवार को स्थानीय पाठगार चौक (बड़ दांड) में विश्राम करेंगे फिर बुधवार को मौसी बाड़ी को जाएंगे. वहां नौ दिनों तक रहने के बाद महाप्रभु वापस श्रीमंदिर को आएंगे. इससे पूर्व श्री मंदिर में पंडित की देखरेख में महाप्रभु के विशेष और भव्य पूजा अर्चना का कार्यक्रम किया गया. जिसके बाद भक्तों के गोद में सवार होकर महाप्रभु सहित बहन सुभद्रा और अग्रज बलभद्र के विग्रह को परंपरागत तरीके से पैदल चलते हुए हनुमान चौक पर खड़े रथ के समीप लाया गया.
इस दौरान परंपरा अनुसार सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने महाप्रभु के आगे चलते हुए छैंरा पौंरा की. रथ के समीप पहुंचने के पश्चात तीनों विग्रहों को रथ के समीप रखते हुए बतौर यजमान सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने महाप्रभु के मौसी बाड़ी प्रस्थान की पूजा- अर्चना की. जिसके बाद महाप्रभु श्री जगन्नाथ सहित बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के विग्रह को मंत्रोच्चार के बीच भक्तों द्वारा नंदीघोष रथ पर सवार कराया गया. और जय जगन्नाथ, जय जय जगन्नाथ के जयकारे के साथ मौसी बाड़ी के लिए रथ यात्रा प्रारंभ की गई.
तकरीबन 250 मीटर की दूरी रथ यात्रा कर तय करने के साथ रथ को गोपबंधु चौक लाकर रात्रि विश्राम के लिए प्रतिस्थापित किया गया. जहां पूजा अर्चना के पश्चात प्रथम दिन के मौसी बाड़ी यात्रा कार्यक्रम को संपन्न कराया गया. इस बार रथयात्रा में करीब 200 मीटर की रंगोली बनाई गई थी. जो रथ यात्रा का आकर्षण का केंद्र बना रहा.
रथ यात्रा पर्व का क्या है धार्मिक महत्व
कथा पुराणों के अनुसार माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होने से साधक को 100 यज्ञों के बराबर पुण्य का फल मिलता है. इसके कारण ही दुनिया भर से लोग अपनी और अपने परिवार की खुशहाली और मनोकामना के लिए इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं. बता दें कि, इस रथ यात्रा के अलावा देश के दूसरे भाग में भी यात्रा को धूम- धाम से मनाया जाता है.
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