सरायकेला: भाजपा नेता सह पूर्व नगर पंचायत उपाध्यक्ष सह सरायकेला छऊ आर्टिस्ट एसोसिएशन के संरक्षक मनोज कुमार चौधरी ने वैश्विक छऊ नृत्य के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु झारखंड के गवर्नर डां सीपी राधाकृष्णन के सरायकेला आगमन पर वरीय कलाकारों संग स्मार पत्र सौंपा. स्मार पत्र में 5 बिंदुओं पर मांग रखी गई.
विश्वप्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य की महत्ता को हृदयंगम कर यूनेस्को द्वारा इसे इंटेजैवल आर्ट (अमूर्त कला) श्रेणी में रखा गया है.आज तक सरायकेला छऊ कला से जुड़े कलाकारों ने सात पद्मश्री, दस संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एवं विभिन्न मंचों में सैकड़ों सम्मान से विभूषित होकर झारखण्ड प्रदेश को गौरवान्वित किया है. लेकिन सबसे गंभीर विषय 1967 में स्थापित राजकीय छऊ नृत्य कला केन्द्र, सरायकेला में विगत वर्ष दो प्रमुख पद निदेशक और अनुदेशक के साथ कई सालों से ढोलवादक और बांसुरी वादक का पद भी खाली है.
अब कला केंद्र में सभी पदों पर रिक्तियों के फलस्वरूप कला केंद्र में छऊनृत्य शिक्षा पूर्णतः बंद हो गई है. 6अगर कला केन्द्र में अविलंब विभिन्न पदों पर नियुक्ति नहीं हुई तो इस वैश्विक कला को बचाए रखना मुश्किल है.
सरायकेला छऊ नृत्य एक विश्व प्रसिद्ध धरोहर है किंतु अब तक इसके प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा के लिहाज से साहित्य का भी निर्माण नहीं हो सका है. कला का संरक्षण, कला के उद्भव से कम महत्वपूर्ण नहीं है. उद्भव काल में राजतंत्र के संरक्षण की आवश्यकता थी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया परिणाम स्वरूप यह नृत्य स्थापित हो गया. किंतु इसके संरक्षण के लिए वर्तमान में ओजस्वी साहित्य के विकास की भी आवश्यकता है. जिसकी आवश्यकता सभी को महसूस होती रही है. लेकिन इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास अब तक नहीं किया गया, ना ही किसी लेखक को इस हेतु आबद्ध किया गया. अतः आग्रह है कि इस संबंध में सक्षम प्रयास किए जाएं ताकि इसकी संभावनाओं से समाज अवगत हो सकें और इस वैश्विक नृत्य को साहित्य द्वारा जान सके.
सरकार के उदासीनता का प्रमाण यह है कि झारखंड प्रदेश की मुख्य वेवसाईट पर वैश्विक सरायकेला छऊ का कहीं भी स्थान नहीं है, बल्कि प्रमुखता से पुरुलिया छऊ शैली की मुखौटे को स्थान दिया गया है.
पुर्व में छऊ अकादमी की घोषणा हो चुकी .है विगत कई सालों से विश्वविद्यालय स्तर पर सरायकेला छऊ नृत्य शैली को शैक्षणिक परिधि में लाने के लिए कोशिश की जा रही है परंतु संबंधित विभाग के ढुलमुल रवैया के कारण इसे पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जा सका है.
सरायकेला छऊ नृत्य दल के कलाकारों ने 1938 से आज तक करीब सौ देशों में और भारत के करीब सभी बड़े शहरों में अपने हुनर का प्रदर्शन कर छऊ को एक विशेष पहचान दिलाई है. लेकिन सरकारी रवैया के कारण आज अपने अस्तित्व बचाने के लिए गुहार लगा रहा है. यह व्यवस्थित एवं बौद्धिक समाज के लिए अफसोस का विषय है.
राज्यपाल झारखंड प्रदेश से गुहार है कि आप उपरोक्त सभी विषयों पर गंभीरता से विचार कर झारखंड की शान सरायकेला छऊ कला को बचाए रखने में आड़े आनेवाली समस्त अड़चनों को दूर करने में मददगार बन विश्व के एक अमूर्त धरोहर को संजोकर रखने में सहायता प्रदान करें.
स्मार पत्र सौंपने में मुख्य रूप से सरायकेला छऊ आर्टिस्ट एसोसिएशन के गुरु सुशांत महापात्र, गुरु मनोरंजन साहू, श्री सुनील कुमार दूबे, अविनाश कवि एवं सुमित महापात्र मौजूद थे.
Reporter for Industrial Area Adityapur