सरायकेला: जिले के आदित्यपुर थाने में पूर्व में पदस्थापित एक एएसआई का तबादला के बाद भी थाना क्षेत्र से मोह भंग नहीं हो रहा है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ट्रांसफर होने के बाद भी उनका नियमित हाजिरी हर दिन घंटों थाना क्षेत्र के सुधा मोड़ पर लगता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर एएसआई कितने रसूखदार हैं, कि उनके अधिकारियों को इसका कोई फिक्र नहीं है कि वे कब ड्यूटी बजा रहे कब छुट्टी पर रह रहे हैं.
हाल ही में जनाब 14 दिनों के अवकाश पर थे. 14 दिनों तक नियमित रूप से सुबह 9:00 बजे से लेकर 11:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से लेकर 7:00 बजे तक उनकी ड्यूटी सुधा मोड़ चौक पर लगती रही. सूत्र बताते हैं कि उन्हें सत्ताधारी दल के एक नेता का वरदहस्त प्राप्त है, यही वजह है कि वे ड्यूटी कम अपने क्लाइंट को ज्यादा समय देते हैं. सूत्र यह भी बताते हैं कि जब उन्हें कोई अधिकारी परेशान करता है, या उनसे जवाब- तलब करता है तो सफेदपोश नेता से उन अधिकारियों की शिकायत भरा चिट्ठी वरीय अधिकारियों के नाम लिखवाकर मिडियाबाजी कराने का काम करता है.
आखिर क्यों है आदित्यपुर से मोह ?
सूत्र बताते हैं कि आदित्यपुर में साहब कम समय में ही ब्राउन शुगर के कारोबारियों के काफी करीबी हो गए थे. थाने के बैरक में रहने के बजाए जनाब एक गेस्ट हाउस में रहते थे, जहां आज भी रह रहे हैं. जमीन माफियाओं से उनकी अच्छी सांठगांठ है. सुधा डेयरी मोड़ पर हर दिन उनका पुराने दोस्तों से गुप्तगू चलता है और उनका हिस्सा पहुंचता है. जरा सोचिए कि जिस अधिकारी का पदस्थापन नक्सल प्रभावित थाने में हुआ हो, जो इलाका आदित्यपुर से करीब 50 किमी दूर हो, वहां ड्यूटी बजाने अधिकारी मोटरसाइकिल से हर दिन कैसे जा सकता है और कितना वक्त अपने थाने में दे रहा है.
कई सवाल हैं, जो एएसआई की भूमिका को कटघरे में खड़ा कर रहा है. अंदरखाने की अगर मानें तो साहब की पहुंच ऊपर तक है, नहीं तो आदित्यपुर के एक कांस्टेबल पर मीडिया गैंग के भ्रामक खबर पर डीआईजी के आदेश मात्र से बड़े साहब एक्शन मोड में आ गए और बगैर जांच के उसे लाइन हाजिर कर दिया. जबकि ये साहब अपने मुख्यालय से लगातार दूर रह रहे हैं और किसी अधिकारी के कानों में जूं नहीं रेंग रहा यह बड़ा सवाल है.
ऊपर तक पहुंच रहा वसूली का हिस्सा !
सूत्र यह भी बताते हैं कि जनाब मोटे असामियों से अवैध वसूली कर ऊपर के अधिकारियों तक उनका हिस्सा पहुंचाता है. पोस्टिंग चाहे जिस थाने में हो अड्डा आदित्यपुर में ही जमता है. अचरज की बात ये है कि आदित्यपुर के एक गेस्ट हाउस में साहब सालों से रह रहे हैं और विभाग चुप है आखिर क्यों ? कहां से साहब लाते हैं इतने पैसे और कैसे चलता है उनका खर्चा. अब सोने का अंडा देनेवाले मुर्गी को हलाल कौन करे सब कुछ मैनेज होकर चल रहा है.