कांड्रा/ Bipin Varshney पानी की किल्लत दूर करने और आम लोगों तक जल की सुविधा सुलभ कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा लगभग सभी गांव, मोहल्लो, टोलो में जल मीनार लगाए जा रहे हैं, लेकिन यहां जल मीनार को लगाने के उद्देश्यों को धत्ता बताते हुए ना सिर्फ सरकारी राशि का दुरुपयोग किया जा रहा है, बल्कि खानापूर्ति कर राशि की बेधड़क निकासी भी हो रही है.
जमीनी हकीकत का आलम देखिए कि गम्हरिया प्रखंड के रपचा पंचायत अंतर्गत धातकीडीह गांव के समीप कुम्हार टोला में महज 30 फीट की दूरी पर दो- दो जल मीनार लगाए जा रहे हैं. इनमें से तो 1 ग्राम पंचायत के स्तर से लगाए गए हैं, जबकि दूसरा पीएचडी विभाग द्वारा लगाया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि यहां कोई सघन आबादी है और यह किसी एक जगह का मामला है, बल्कि इसी पंचायत के सोसोडीह ग्राम में भी महज 30 फीट की दूरी पर ही दो- दो जल मीनार लगा दिए गए हैं. इस संबंध में पूछे जाने पर स्थानीय मुखिया सुकमती मार्डी ने शिकायत भरे लफ्ज़ों में कहा कि पंचायत स्तर से जो जल मीनार लगाए जा रहे हैं, वह बकायदा आमसभा में पारित है और पोर्टल पर लोडेड है.
स्थानीय लोगों की वार्ड मेंबर, ग्राम प्रधान की अनुशंसा पर ही स्थल चयन कर मीनार लगाने की स्वीकृति प्रदान की गई है, जबकि दूसरा जल मीनार पीएचडी विभाग द्वारा लगाया जा रहा है, लेकिन उनके द्वारा ना तो स्थानीय मुखिया को कोई जानकारी दी जाती है ना ही वार्ड मेंबर या ग्राम प्रधान को. बल्कि मनमाने तरीके से मनमानी जगह पर जल मीनार लगाकर खानापूर्ति की जा रही है. इससे आम लोगों का भला हो ना हो लेकिन विभागीय अधिकारियों का आर्थिक फायदा जरूर हो रहा है. आश्चर्य की बात यह है कि कई ऐसे मोहल्ले भी हैं जहां के लोग पानी के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक जाने को मजबूर हैं,लेकिन यहां जल मीनार लगाने की दिशा में पीएचडी विभाग सक्रियता नहीं दिखाता है. जल मीनार लगने वाले स्थल के चयन में स्थानीय मुखिया से लेकर जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि आम लोगों को शुद्ध जल सुलभ कराया जा सके. अन्यथा ये योजनाएं बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में कभी सफल नहीं हो सकेगी.
video